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क्या पांच राज्यों के चुनाव में दागी नेताओं को पर रोक लगाएगी पार्टियां ?

Election News 2023: पांच राज्यों के चुनाव में दागी नेताओं को लेकर फिर से बहस शुरू हो गई है। चुनाव आयोग ने कहा है कि सभी पार्टियों को दागी नेताओं को टिकट देने से बचना चाहिए। और कोई पार्टी टिकट देती भी है तो विज्ञापन के जरिये उसे यह बताना होगा कि उस दागी उम्मीदवार को मैदान में क्यों उतारा जा ? इस तरह के विज्ञापन तीन पार करने की बात है।
लेकिन क्या ऐसा हो पायेगा ? ऐसा नहीं है कि चुनाव आयोग ने कोई पहली बार इस तरह की हिदायतें दी है। सच तो यह है कि इस तरह की बात साल 2000 से ही की जा रही है लेकिन कोई भी पार्टी दागियों को टिकट देने से पीछे नहीं हटती है। हर चुनाव में दागी मैदान में पिछली संख्या उतरते हैं। जनता वोट भी डालती है और उम्मीदवार जीत कर भी आते है। आंकड़ों पर नजर है साल लोकसभ चुनाव से लेकर तमाम विधान सभा चुनाव में दागी खड़े हो हो रहे हैं और वे जीतकर भी आ रहे हैं।

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मजे की बात है कि चुनाव के बाद हर भाषणों में राजनीतिक पार्टियां और उनके नेता दागी उम्मीदवारों पर भाषण तो खूब देते हैं लेकिन जैसे ही चुनाव के दौरान उम्मीदवारों के चयन की बात आती है तो पार्टियां मौन हो जाती है। देश में कोई भी ऐसी पार्टी नहीं है जो दागियों को मैडन में नहीं उतरती है। जो जितनी बड़ी पार्टी है उसके उम्मीदवारों की संख्या भी उतनी ही बड़ी होती जा रही है। और यह सब लगातरा हो रहा ही। उस पर किसी का कोई बस नहीं चल रहा है।
कहने को भारत लोकतांत्रिक देश है लेकिन जिस तरह से राजनीति में दागियों की संख्या बढ़ती जा रही है उससे साफ़ लगता है कि दागियों ने लोकतंत्र को गिरवी बना लिया है। कोई भी पार्टी दागियों को रोकती नहीं है। दागी चुनाव जीत भी रहे हैं और सदन में बैठ कर कानून भी बना रहे हैं। जनता की हालत ऐसी होती है कि जो किसी पार्टी को अपना मानकर वोट डालने जाती है उसके सामने कोई दूसरा विकल्प नहीं होता और अंत में वह दागी को ही मानकर वोट डाल देता है। लगता है वोट के नाम पर प्रहसन चल रहा है।
पांच राज्यों में अभी चुनाव होने हैं। इन पांच राज्यों में कुल 677 विधायक चुने जाने हैं। लेकिन कोई भी पार्टी यह नहीं कह रहा है कि वह गाड़ियों को टिकट नहीं देगी। स्थिति ये है कि सबसे ज्यादा टिकट भी उन्ही लोगों को दिए जाते हैं जिनपर सबसे ज्यादा मुकदमे हैं। यह भी बता दें कि हमारे देश में 1990 के बाद से ही दागी नेताओं की इंट्री राजनीति में खूब हो रही है। समय -समय पर अदालतें इस प्रवृति पर रोक लगाने की कोशिश भी करती हैं और कई तरह के दिशा निर्देश भी जारी करती है लेकिन न दागी चुनाव लड़ने से पीछे हट्टे हैं और नहीं कोई भी पार्टी टिकट देने से बचती है।

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बता दें कि 2004 में एडीआर की एक रिपोर्ट के मुताबिक संसद में 24 फीसदी सांसद दागी पहुंचे थे। ये ऐसे संसद थे जिनपर गंभीर अपराध के मामले दर्ज थे। फिर 2009 में संसद में 30 फीसदी दागी नेता पहुँच गए। इनमे से 14 फीसदी पर गंभीर आरोप थे। 2019 के चुनाव में करीब 43 फीसदी दागी सांसद जीत कर संसद पहुँच गए।
चुनावी राज्यों की ही बात करें तो 2013 में एमपी में बीजेपी के 61 ,कांग्रेस के 91 बसपा के 54 दागी उम्मीदवार मैदान में खड़े हुए थे। फिर 2018 के चुनाव में ये संख्या और भी बढ़ गई। इस चुनाव में कांग्रेस ने 108 ,बीजेपी ने 65 और बसपा ने 37 दागियों को मैदान में उतारा था। यही हाल राजस्थान से लेकर तमाम राज्यों का भी था। ऐसे में बड़ा सवाल है कि नैतिकता की बात करने वाली तमाम पार्टियां इस बार दागियों से चुनाव को मुक्त करेगी ? जानकार कह रहे हैं कि यह संभव नहीं। पार्टियों को बस यही लगता है कि उसे ऐसे उम्मीदवार की जरूरत है जो किसी भी सूरत में चुनाव जीते। ऐसे में जब चुनाव जीतना और सरकार बनाना ही जब मकसद है तो दागियों को कौन छोड़ सकता है। निर्लज्ज राजनीति का यह चेहरा जनता जिस दिन समझ जाएगी उसी दिन लोकतंत्र पवित्र हो जायेगा

Akhilesh Akhil

Political Editor

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