Bihar News बिहार न्यूज़! बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने पटना में संवाददाताओं से कहा, “मैं कहता रहता हूं। मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए। मेरा केवल एक ही सपना है। विपक्षी नेताओं को एकजुट होकर आगे बढ़ते हुए देखना। इससे देश को फायदा होगा। मेरी कोई व्यक्तिगत ख्वाहिश नहीं है।’उन्होंने आगे कहा कि ”मै खुद अभी समाधान यात्रा कर रहा हूँ और मुझे इस रैली की कोई जानकारी नहीं है। जिन लोगों को रैली में बुआलया गया होगा वे गए होंगे। ” पटना से लेकर दिल्ली तक विपक्षी एकता रही है और केसीआर की रैली में नीतीश (Nitish Kumar) के शामिल नहीं होने पर कई तरह के हैं। कहा जा है कि क्या विवक्षि एकता की बात बेमानी है ? क्या केसीआर की विपक्षी एकता के सामने नीतीश (Nitish Kumar) हार मान गए ? यह भी कहा जा रहा है कि नीतीश (Nitish Kumar) जब बिहार में गठबंधन को नहीं सम्हाल रहे हैं तो एकता की राजनीति को कैसे आगे बढ़ाएंगे बढ़ाएंगे ?और भी बहुत सारे सवाल हैं।
खम्मम में बुधवार को केसीआर की रैली। थी इस रैली में सपा मुखिया अखिलेश यादव , मुख्यमंत्री विजय ,दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान शामिल हुए थे। भाकपा नेता डी राजा भी शामिल हुए और रैली को सफल माना गया। इस रैली को ऊपर से देखे तो साफ़ है कि केसीआर के साथ अभी सपा ,माकपा ,आप और भाकपा नजर आये हैं। आना भी चाहिए। केसीआर चाहते हैं कि गैर बीजेपी और गैर कांग्रेस एकता की बात हो। यहाँ तक तो सही है। लेकिन ध्यान दें कि माकपा और भाकपा कांग्रेस के साथ भी जुड़े रहे हैं। बिहार में ही ये सारे दल महागठबंधन के हिस्सा हैं। ये वाम दल केरल में कांग्रेस के खिलाफ हैं लेकिन बिहार में एक हैं। ये दोनों दल यूपीए के साथ भी खड़े रहते हैं। सपा की भी वही कहानी है। ऐसे में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) अगर यह कहते हैं कि जिन्हे बुलाया गया वे रैली में गए तो इसमें नई बात कुछ भी नहीं।
दरअसल नीतीश (Nitish Kumar) भारत जोड़ो यात्रा के अंत होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सबसे पहले उनकी मुलाकात सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी के साथ होनी है। इसके बाद आगे की रणनीति बनेगी। नीतीश जानते हैं कि बिना सभी दलों को एक मंच पर लाये बीजेपी को चुनौती नहीं दी जा सकती। यही बात केसीआर भी कह रहे हैं। केसीआर की कांग्रेस से लड़ाई है। तेलंगाना में केसीआर और कांग्रेस आमने सामने हैं। जिस कांग्रेस ने तेलंगाना को बनाया वही कांग्रेस आज केसीआर के निशाने पर है। कांग्रेस से तो आंध्रा भी दूर हो गया। राज्य के बंटवारे के बाद एक हिंसा केसीआर के हाथ चला गया और दूसरा हिस्सा वाईएसआर कांग्रेस के पास। दोनों की कांग्रेस से परेशानी है।
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ऐसे में क्या मान लिया जाय कि किसी की परेशानी की वजह से को पार्टी वहाँ चुनाव ही न लड़े। उधर सपा की अपनी राजनीति है। सपा जानती है कि केसीआर यूपी में अभी कुछ करने की स्थिति में नहीं है। यही हाल भाकपा और माकपा की भी है। आप की भी यूपी में कोई बड़ा दबदबा नहीं है। फिर आप पहले से ही यूपी में चुनाव लड़ रही है। सपा को आप से कोई परेशानी नहीं है। लेकिन सपा को कांग्रेस से परेशानी है। सपा भी यही चाहती है कि अगर विपक्षी एकता बनती है तो यूपी को सपा के हवाले किया जाए। फिर सपा तेलंगाना में तो चुनाव लड़ती नहीं। अगर सपा तेलंगाना में चुनाव लड़ने पहुँच जाए तो केसीआर की क्या दशा होगी ? ऐसे बहुत से सवाल एकता के बीच सामने आ रहे हैं। ऐसे में सब अहम् सवाल है कि पहले एकता की बात बने। अपने अपने इलाके में में जो मजबूत है वह चुनाव लड़े और बाकी सीटों पर अपनी सहयोगी पार्टी को उतारे। कांग्रेस के गढ़ वाले इलाके में भी यही सब होना चाइये।
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) अगले महीने से विपक्षी एकता की धुरी बनगे यह तय माना जा रहा है। वे मौन है इसका मतलब कतई नहीं कि वे चुप है और विपक्षी एकता से मुकर गए हैं। कांग्रेस खुद चाहती है कि मजबूत विपक्षी एकता बने। कह सकते हैं कि शरद पवार के नेतृत्व में अगले महीने एकता को लेकर मजबूत बाते होंगी जिसमे नीतीश कुमार की भूमिका होगी। उस एकता में सपा भी होगी ,केसीआर भी होंगे और वाम दल भी।