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विदेशी धरती पर खालिस्तान  (Khalistani) की आवाज़!

अलग पंजाब राज्य बनने के बाद जो आंदोलन खत्म हो गया था उसे आजाद भारत में पहली बार जगजीत सिंह चौहान ने ही हवा दी. ब्रिटेन में जगजीत सिंह चौहान ने ही खालिस्तान आंदोलन की शुरूआत की. चौहान को पाकिस्तानी सेना के तानाशाह याह्या खान ने आमंत्रित किया था. 1971 में वो पाकिस्तान गए और वहीं से उन्होंने सिख नेता होने का तमगा हासिल किया. पाकिस्तान ने उनके कंधे का इस्तेमाल कर सिखों को ब्लैकमेल करना शुरू किया. विभाजन के दौरान कई महत्वपूर्ण सिख अवशेष पाकिस्तान में ही रह गए थे

Latest Australia News! ऑस्ट्रेलिया (Australia) में 29 जनवरी को खालिस्तान (Khalistani) समर्थक एक जनमत संग्रह कराने जा रहे हैं. ये जनमत संग्रह भारत के एक हिस्से को खालिस्तान बनाने के पक्ष में है. इसकी तैयारी के लिए ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में खालिस्तानी समर्थकों ने 15 जनवरी को एक रैली भी निकाली थी और इसमें दो हजार लोगों के शामिल होने का दावा किया गया था. इस रैली में खालिस्तानी समर्थकों (Khalistani supporters) ने भारत के एक हिस्से को खालिस्तान बनाने की बात कहते हुए कई पोस्टर प्रदर्शित किए थे. उन्होंने कुछ पोस्टर ऐसे भी प्रदर्शित किए थे जिसमें भारत विरोध की बातें थी. ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले दूसरे भारतियों ने भारत विरोध वाले इन पोस्टरों का विरोध किया और कुछ पोस्टर फाड़ दिए. इसके बाद वहां के कुछ हिंदू मंदिरों (Hindu temples) में हमले होने की खबरें आई. कुछ हिंदू मंदिरों में भारत विरोधी स्लोगन भी लिखे गए. मेलबर्न (Melbourne) में खालिस्तान के समर्थन में जिसने ये आंदोलन शुरू किया है उस संगठन का नाम है सिख फॉरजस्टिस (SFJ).इस संगठन ने रैली के नाम पर इंदिरा गांधी के उन हत्यारों का महिमा मंडन किया जिन्हें 34 साल पहले फांसी दी गई थी.

इससे पहले कनाडा में भी ऐसे ही प्रदर्शन और जनमत संग्रह की गतिविधियां सामने आ चुकी हैं. वहां भी इन गतिविधियों को अंजाम देने वाला सिख फॉर जस्टिस (SFJ)संगठन ही था. कनाडा से जो खबरें आई थी उसकी तस्वीरें भी ऑस्ट्रेलिया से कोई बहुत ज्यादा अलहदा नहीं थीं. वहां भी इस संगठन ने पहले रैली आयोजित की थी और एक विशाल समुदाय के इसमें शिरकत करने का दावा किया था. इस जनमत संग्रह और रैली को नहीं रोक पाने को लेकर मोदी सरकार के विदेश नीति की आलोचना भी हुई थी. कनाडा से भी कुछ छिटपुट हिंसा की खबरें सामने आई थी. जिसके बाद भारत सरकार ने कनाडा में रह रहे भारतीयों के लिए सावधान व सतर्क रहने की अपील जारी की थी. जिसमें ये कहा गया था कि कनाडा में भारत विरोधी गतिविधियां हो रही हैं, भारतीय छात्रों को एहतियात बरतनी चाहिए. इस अपील को खालिस्तानी समर्थकों ने अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताया था. भारत सरकार के चाहने के बाद भी कनाडा की सरकार ने खालिस्तानियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. कनाडा में अलग राजनीतिक राय रखने को तब तक गलत नहीं माना जाता है जब तक कि इस मामले में किसी समुदाय पर हमला या हिंसा नहीं होता. कनाडा (Canada) और ऑस्ट्रेलिया के बाद ये तो तय है किसिख फॉर जस्टिस (SFJ)संस्था किसी और देश में ऐसी ही गतिविधियां कर सकता है.

क्या है सिख फॉर जस्टिस (SFJ)

सवाल ये है कि ये सिख फॉर जस्टिस (SFJ)संस्था क्या है. इसे कौन और कहां से संचालित कर रहा है. ये संस्था भारत में ही क्यों खालिस्तान बनवाना चाहता है. सिख फॉर जस्टिस (SFJ)संस्था को भारत सरकार ने 2019 में ही प्रतिबंधित संगठन करार दे चुका है. सरकार ने यूएपीए कानून (UAPA law) के तहत इसे अवैध घोषित कर दिया है. ये संस्था तो अमेरिका से संचालित है. 2007 में अमेरिका में इसका गठन हुआ था. पंजाब यूनिवर्सिटी का लॉ ग्रेजुएट गुरपतवंत सिंहपन्नु इसका मुख्य चेहरा है. ये अमेरिका जाकर बस चुका है और वहीं वकालत भी करता है. ये इस संगठन का लीगल एडवाइज़र भी है. इस संगठन ने तय किया है कि खालिस्तान बनाने के लिए दुनिया के तमाम देशों में प्रदर्शन और जनमत संग्रह किया जाएगा. उत्तरी अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, कीनिया और मध्यपूर्व के देशों में ये जनमत संग्रह का लक्ष्य रखा गया है. इन देशों में प्रदर्शन और जनमत संग्रह करने के बाद ये संगठन अपना हक पाने के लिए संयुक्त राष्ट्र का दरवाजा खटखटाएगा.सिख फॉर जस्टिस (SFJ)संस्थाहो सकता है कि केवल दिखावे के लिए ही अमेरिका से संचालित है. क्योंकि खालिस्तान की जो मांग है उसके तार तो 1947 के भारत विभाजन से जुड़े हैं.

कहां से पैदा हुआ खालिस्तान ?

31 दिसंबर 1929 में लाहौर में कांग्रेस का एक अधिवेशन हुआ था. इस अधिवेशन में मोतीलाल नेहरू ने भारत के लिए पूर्ण स्वराज की मांग की थी. उनकी इस मांग का कांग्रेस के ही कुछ धड़ों ने विरोध किया था. पहला विरोधी धड़ा था मुस्लिम लीग जिसके नेता थे मुहम्मद अली जिन्ना, दूसरा धड़ा था दलित समुदाय का नेतृत्व करने वाला डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर का और तीसरा धड़ा था शिरोमणी अकाली दल का जिसके नेता थे तार सिंह. सरदार तारा सिंह (Sardar Tara Singh) ने ही पहली बार सिखों के लिए अलग देश की मांग की थी. 1947 में भारत की आजादी के साथ बंटवारा हुआ. पंजाब भी दो हिस्सों में बंट गया. आप अविभाजित पंजाब के नक्शे को देखेंगे तो पता चल जाएगा कि विभाजन के बाद पंजाब का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के पास चला गया और छोटा हिस्सा भारत के पास रह गया. अब अगर अलग देश की मांग होनी चाहिए तो कहां होनी चाहिए इसका जवाब आप खुद ही सोच सकते हैं. लेकिन 1947 में ही भारत में अकाली दल ने सिखों के लिए अलग सूबे की मांग शुरू कर दी.

ऐसे बना पंजाब और हरियाणा

19 साल तक चले आंदोलन के बाद आखिरकार 1966 में अकाली दल की मांग पूरी हुई. तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार ने भाषाई आधार पर राज्य का विभाजन कर दिया. अलग सूबे की मांग पूरी होकर खत्म हो गई. इस तरह पंजाब और हरियाणा राज्य अस्तित्व में आए. शायद इंदिरा गांधी को आगे की घटनाओं का अंदाजा था इसलिए इस विभाजन के समय उन्होंने काफी एहतियात बरती. उन्होंने दोनों राज्यों के बीच चंडीगढ़ बनाकर उसे केंद्र शासित कर दिया और दोनों ही राज्यों की राजधानी चंडीगढ़ को बना दिया. इसके बाद 1969 में पंजाब के लिए विधानसभा के चुनाव हुए. रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया के जगजीत सिंह चौहान टांडा सीट से उम्मीदवार बने और चुनाव हार गए. चुनाव हारने के बाद दांतों के डॉक्टर जगजीत सिंह ब्रिटेन चले गए. वो 1967 में एक बार विधायक रह चुके थे.

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खालिस्तान में पाकिस्तान की एंट्री

अलग पंजाब राज्य बनने के बाद जो आंदोलन खत्म हो गया था उसे आजाद भारत में पहली बार जगजीत सिंह चौहान ने ही हवा दी. ब्रिटेन में जगजीत सिंह चौहान ने ही खालिस्तान आंदोलन की शुरूआत की. चौहान को पाकिस्तानी सेना के तानाशाह याह्या खान ने आमंत्रित किया था. 1971 में वो पाकिस्तान गए और वहीं से उन्होंने सिख नेता होने का तमगा हासिल किया. पाकिस्तान ने उनके कंधे का इस्तेमाल कर सिखों को ब्लैकमेल करना शुरू किया. विभाजन के दौरान कई महत्वपूर्ण सिख अवशेष पाकिस्तान में ही रह गए थे. पाकिस्तान ने जगजीत सिंह को वो अवशेष सौंप दिए. इन्हीं अवशेषों के माध्यम से जगजीत सिंह ने सिखों को इमोशनल ब्लैकमेल किया. 13 अक्टूबर को उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स में स्वतंत्र सिख राज्य के गठन के लिए विज्ञापन दिया. सिख प्रवासियों ने उन्हें लाखों डॉलर दिए. जगजीत सिंह भारत भी लौटे लेकिन उनकी देश विरोधी गतिविधियां जारी रही. भारत में उन्हें गिरफ्तार करने की बात होने लगी तो वो फिर से ब्रिटेन भाग गए. 1980 में भारत सरकार ने उन्हें भगोड़ा आतंकी घोषित किया और उनका पासपोर्ट भी रद्द कर दिया. खालिस्तान आंदोलन के लिए उन्होंने लंदन में खालिस्तानी करेंसी जारी करके भी एक बार सनसनी मचा दी थी.

पाकिस्तान का खालिस्तानी रेफरेंडम (Khalistani Referendum)

21 साल तक ब्रिटेन में रहने के बाद 2001 में वो भारत लौट आए. 4 अप्रैल 2007 को 80 साल की उम्र में टांडा में उनका निधन हो गया. जगजीत सिंह के माध्यम से पाकिस्तान ने भारत को तोड़ने की जो साजिश रची थी वो बदस्तूर जारी रही. सिख फॉर जस्टिस (SFJ) संस्था के लोगों का पाकिस्तानी कनेक्शन कई बार उजागर हो चुका है. खुफिया रिपोर्ट में ये कई बार खुलासा हो चुका है कि पाकिस्तान में खालिस्तानी समर्थक नेताओं की बैठकें होती हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सिख फॉर जस्टिस (SFJ) संस्था ने सैकड़ों फेक ट्वीटर एकाउंट बना रखे हैं. इन ट्वीटर एकाउंट के माध्यम से खालिस्तान रेफरेंडम (KHALISTAN REFERFNDUM) वाली साजिश रची जाती है.इस मामले में पाकिस्तान के इन्वॉल्वमेंट और भारत विरोधी गतिविधियों का खुलासा हो जाता है. क्योंकि जिन ट्वीटर एकाउंटों से खालिस्तान के समर्थन में ट्वीट किए जाते हैं उन्हीं ट्वीटर एकाउंट से हिजाब बैन, अलग कश्मीर और पाकिस्तानी सेना से जुड़े हैशटैग वाले ट्वीट भी किए जाते हैं. और इस तरह के ज्यादातर एकाउंट के पाकिस्तान से ही हैंडल किए जाने की जानकारी का खुलास भी हो चुका है. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के लोग कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में बैठे हैं और भारत को अस्थिर करने के लिए खालिस्तान के मुद्दे को हवा दे रहे हैं. पैसे दे रहे हैं.

Kamal

Political Editor

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