Collegium: आखिर जस्टिस नरीमन ने क्यों कहा कि देश अन्धकार में चला जायेगा
न्यायपालिका और केंद्र सरकार के बीच चल रहे खींचतान पर हालांकि देश की भी नजर है और कई मंचो पर इस पर बहस भी जारी है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस रोहिंग्टन फली नरीमन ने न्यायधीशों की नियुक्ति के लिए कोलेजियम प्रणाली के खिलाफ केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू की हालिया टिप्पणी को आलोचना करार दिया है।
न्यायपालिका और केंद्र सरकार के बीच चल रहे खींचतान पर हालांकि देश की भी नजर है और कई मंचो पर इस पर बहस भी जारी है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के पूर्व जस्टिस रोहिंग्टन फली नरीमन ने न्यायधीशों की नियुक्ति के लिए कोलेजियम प्रणाली के खिलाफ केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू की हालिया टिप्पणी को आलोचना करार दिया है। जस्टिस नरीमन ने कहा है कि अगर स्वतंत्र न्यायपालिका का आखिरी गढ़ गिर जाता है तो देश अंधकार के रसातल में चला जाएगा। उन्होंने यह भी कहा उन्होंने यह भी कहा कोलेजियम द्वारा सिफारिश किये गए नामो को रोकना लोकतंत्र के खिलाफ घातक है।
बता दें कि जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार और कॉलेजियम के बीच खींचतान जारी है। दरअसल सर्कार चाहती है कि कोलेजियम सिस्टम में सरकारी प्रतिनिधि भी शामिल हो या फिर बीजेपी के लोग उसमे शामिल हो ताकि अपने मन मुताबिक जजों की नियुक्ति की जा सके। सरकार को लगता है कई कई जज ऐसे नियुक्त हो जाते हैं जो सर्कार की नीतियों के खिलाफ चले जाते हैं ऐसे में जजों की की स्वतंत्र नियुक्ति पर सरकार नकेल कसना चाहती है। कॉलेजम इसका विरोध कर रहा है। अभी तक के नियम के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) और हाई कोर्ट का कोलेजियम द्वारा जजों की नियुक्ति की सिफारिश सरकार के पास की जाती रही है। हलाकि इसमें भी सरकार कई तरह की राजनीति करती रही है। लेकिन अब सरकार इस बात को आगे बढ़ाती नजर आ रही है कि कोलेजियम सिस्टम में सरकार के प्रतिनिधि शामिल हो। केंद्रीय काननू मंत्री रिजिजू का कहना है कि सरकार का काम कोलेजियम द्वारा भेजे गए नामो को केवल अप्रूव करना ही नहीं है।
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हालांकि यह कोई पहली बार नहीं है कि मोदी सरकार और न्यायपालिका के बीच तकरार जारी है। इससे पहले भी कई बार इस तरह की स्थिति पैदा हुई थी। लेकिन मौजूदा समय में कुछ ज्यादा ही तल्खी सरकार और न्यायपालिका के बीच है। सुप्रीम कोर्ट का काम संविधान का सुरक्षा काढ़ा है और संविधान के नियमो के मुताबिक लोकतंत्र को जीवित रखना है। लेकिन सरकार ऐसा नहीं चाहती। सरकार को लगता है कि न्यायपालिका को विधायिका से संचालित होना चाहिए। इस पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ की राय भी कुछ इसी तरह की है।