कब है इंदिरा एकादशी? पितृ पक्ष की एकादशी का क्यों है खास महत्व?
Indira Ekadashi : इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) पितृपक्ष में पड़ने वाली वह एकादशी है जिसका व्रत करने से आपके लिए मोक्ष के द्वार खुलते हैं। इंदिरा एकादशी के दिन श्रद्धापूर्वक व्रत करने और पूजा करने से आपके पितरों को भी मुक्ति मिलती है। उनकी आत्मा को शांति मिलती है। आइए जानते हैं कब है इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) और क्या है इसका विधि विधान।
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इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) पितृपक्ष में आने वाली एकादशी को कहते हैं। यह एकादशी इसलिए और खास मानी जाती है इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए साथ पितरों का श्रद्धापूर्वक स्मरण किया जाता है। ऐसा मानते हैं कि इस दिन ब्राह्मणों को सम्माधनपूर्वक घर बुलाकर भोजन करवाने और सामर्थ्यल के अनुसार दान-पुण्य करने से हमारे पूर्वज हमसे प्रसन्न होते हैं। इंदिरा एकादशी इस साल 10 अक्टूबर को है। आइए आपको बताते हैं इंदिरा एकादशी का महत्वं, शुभ मुहूर्त और पूजाविधि।
इंदिरा एकादशी को लेकर ऐसा माना जाता है जो भी इस एकादशी का व्रत करता है उससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और साथ ही उसे पूर्वजों का भरपूर आशीर्वाद भी मिलता है। शास्त्रों में इंदिरा एकादशी को लेकर ऐसा बताया गया है कि यदि आप इंदिरा एकादशी का व्रत करके उसका पुण्य पितरों को दान करते हैं तो आपके वे पूर्वज जिन्हें किन्ही कारणों से मुक्ति नहीं मिल पाई है। उनकी आत्मा को शांति मिलती है। इसके साथ ही यह भी बताया गया है कि व्रत करने वाले को भी नरक में नहीं जाना पड़ता है।
इंदिरा एकादशी का शुभ मुहूर्त
इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) 9 अक्टूबर को दोपहर में 12 बजकर 36 मिनट पर शुरू होगी और 10 अक्टूबर को 3 बजकर 8 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। इसलिए उदया तिथि की मान्यता के आधार पर इंदिरा एकादशी का व्रत 10 अक्टूबर, मंगलवार को रखा जाएगा। व्रत का पारण 11 अक्टूबर को किया जाएगा। व्रत के पारण का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 19 मिनट पर शुरू होगा और 8 बजकर 38 मिनट पर खत्म हो जाएगा। इस एकादशी का व्रत करने के बाद व्रतियों को अनाज, फल और सामर्थ्य। के अनुसार धन राशि का दान किसी जरूरतमंद ब्राह्मण को करना चाहिए।
इंदिरा एकादशी का व्रत कैसे करें
इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) का व्रत पितृपक्ष के दौरान पड़ता है इसलिए व्रतियों को श्राद्ध के भी कुछ नियमों का पालन करने की बात शास्त्रों में कही गई है। व्रत का आरंभ करने से पूर्व दशमी तिथि में पवित्र नदी में तर्पण करें और स्नान करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाकर स्वयं भोजन करें। दशमी तिथि को सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए। उसके बाद अगले दिन एकादशी तिथि में सुबह जल्दी स्नान करके व्रत का संकल्प लें। श्राद्ध तर्पण करें और फिर से ब्राह्मणों को भोजन करवाएं। उसके बाद अगले दिन द्वादशी तिथि में दान दक्षिणा देने के बाद ही व्रत का पारण करें।