Nepal Protest: नेपाल में खत्म होगा लोकतंत्र, राजशाही आएगी वापस? जानिए क्या लिखा है संविधान में
नेपाल में राजशाही की वापसी और हिंदू राष्ट्र की घोषणा की मांग जारी है। प्रदर्शनकारियों का आंदोलन अब हिंसक हो गया है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या नेपाल में संविधान के खिलाफ राजशाही लागू होगी और लोकतंत्र खत्म हो जाएगा? जानिए नेपाल का संविधान क्या कहता है।
Nepal Protest: नेपाल में राजशाही की वापसी और हिंदू राष्ट्र की घोषणा की मांग को लेकर चल रहा आंदोलन हाल ही में हिंसक हो गया। इसमें दो लोगों की जान चली गई। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नेपाल में संविधान के खिलाफ राजशाही लागू होगी और लोकतंत्र खत्म हो जाएगा?
शाह वंश ने नेपाल पर 239 साल तक राज किया। नेपाल के राजा बीरेंद्र वीरबिक्रम शाह और उनके परिवार के आठ सदस्यों की हत्या के बाद ज्ञानेंद्र शाह को नेपाल का राजा बनाया गया, लेकिन इसके बाद वहां माओवादी सक्रिय हो गए और दंगे शुरू हो गए।
आखिरकार भारत की मध्यस्थता से 2006 में माओवादियों की हिंसा शांत हुई और 2008 में नेपाल में राजशाही खत्म हो गई। अंतरिम संविधान लागू करके वहां लोकतंत्र बहाल किया गया और पूर्ण संविधान लागू करने की प्रक्रिया शुरू हुई।
2015 में हुआ नेपाल का नया संविधान लागू
राजनीतिक अनिश्चितता के बीच नेपाल का पूरा संविधान बनने और लागू होने में सात साल लग गए। आखिरकार 20 सितंबर 2015 को नेपाल का संविधान लागू हुआ, जो नेपाल का सातवां संविधान है। इसके बाद नेपाल पूरी तरह से लोकतांत्रिक देश बन गया और राजशाही व्यवस्था के साथ ही हिंदू राष्ट्र का दर्जा भी खत्म हो गया। इससे पहले जब नेपाल में राजशाही थी तो मुखे कानून च व्यवस्था लागू थी। यानी राजा जो कहता था वही कानून होता था। लिखित संविधान लागू होने के बाद नेपाल में सिर्फ चुनी हुई सरकार ही कानून बना सकती है।
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अब एक लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष देश
नेपाल का नया संविधान जनता के प्रतिनिधियों द्वारा पारित पहला संविधान है जो 35 भागों, 308 अनुच्छेदों और 9 अनुसूचियों में विभाजित है। इससे नेपाल अब एक धर्मनिरपेक्ष देश बन गया है। इसके अनुसार नेपाल अब एक संघीय गणराज्य है और संघवाद इसका मूल सिद्धांत है। यानी अब नेपाल में राजशाही के लिए कोई जगह नहीं है। चूंकि धर्मनिरपेक्षता नेपाल के संविधान का दूसरा मूल सिद्धांत है, इसलिए नेपाल हिंदू राष्ट्र की बजाय एक लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष देश है।
नेपाल के संविधान में आर्थिक समानता के साथ समतावादी समाज की कल्पना की गई है। इसके लिए आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मूल अधिकारों की एक लंबी सूची है और इनका उल्लंघन होने पर अदालत में मामला चलाया जा सकता है।
केवल संसद ही बना सकती है कोई कानून
संविधान के अनुसार नेपाल में अब संसदीय सरकार है। नेपाल के शासन में हर नागरिक की समान भागीदारी है। नेपाल के संविधान की प्रस्तावना में बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था, वोट का अधिकार, मानवाधिकार, प्रेस की स्वतंत्रता और कानून आधारित समाजवाद का उल्लेख किया गया है। ऐसे में अगर देश में कोई नई व्यवस्था लागू करनी है तो संसद की मंजूरी की जरूरत होगी और संविधान में बदलाव करने होंगे। अब संसद ही नया कानून बना सकती है।
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संसद में आरपीपी की मौजूदगी नगण्य
नेपाल में इस समय नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) की सरकार है, जबकि राजशाही के समर्थन में प्रदर्शन कर रही राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) के पास मात्र सात सांसद हैं। ऐसे में संसद में इस मांग को समर्थन नगण्य है। वहीं, नेपाल के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे राजशाही को फिर से लागू किया जा सके।
राजतंत्र दो तरह का होता है। एक तो निरंकुश राजतंत्र, जो पहले नेपाल में था। यानी इस व्यवस्था में राजा सर्वोच्च होता है। दूसरा संवैधानिक राजतंत्र। इसमें राजा या रानी देश के शासक होते हैं, लेकिन उनकी सारी शक्तियाँ संविधान में निहित होती हैं। ब्रिटेन में भी ऐसी ही व्यवस्था है।
चूंकि नेपाल का संविधान जनता द्वारा चुनी गई सरकार द्वारा बनाया और लागू किया गया है। इसका मतलब यह है कि संविधान को नेपाल की जनता का समर्थन प्राप्त है। ऐसी स्थिति में भी इस व्यवस्था में बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं दिखती। मीडिया रिपोर्ट्स में विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया है कि अगर किसी तरह नेपाल में राजशाही की वापसी हो भी जाती है तो वह पूरी तरह से निरंकुश नहीं होगी और लोकतंत्र खत्म नहीं होगा। फिर दुनिया में ऐसा कोई उदाहरण नहीं है कि लोकतंत्र लागू होने के बाद किसी देश में राजशाही की वापसी हुई हो।
लोकतंत्र का विकल्प मजबूत लोकतंत्र है, राजतंत्र नहीं
काठमांडू में नेपाल हेडलाइन डॉट कॉम के प्रधान संपादक उपेंद्र पोखरेल कहते हैं कि दुनिया के किसी भी देश में लोकतंत्र स्थापित होने के बाद कभी खत्म नहीं होता और नेपाल में भी यही सच है। लोकतंत्र का विकल्प और मजबूत लोकतंत्र है, राजशाही नहीं। इसलिए नेपाल में राजशाही कभी वापस नहीं आएगी। छोटे-छोटे समूहों के हिंसक विरोध प्रदर्शनों के दम पर राजशाही की वापसी की कोई संभावना नहीं है। ये विरोध प्रदर्शन तब भी हुए थे जब नेपाल में संविधान लागू किया जा रहा था।
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पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर जनता को भरोसा नहीं
इसके अलावा जनता भी लंबे समय बाद अचानक सक्रिय हुए पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह और उनके परिवार को अधिकार देने के पक्ष में नहीं है, क्योंकि उनका लोकतंत्र में विश्वास नहीं है। इसलिए अगर वह फिर से गद्दी पर आते हैं तो नेपाल में तानाशाही थोपने की कोशिश करेंगे। ऐसे में संविधान के जरिए मिले अधिकारों के अलावा नेपाल में कोई भी व्यक्ति ज्ञानेंद्र शाह के परिवार को वंशवाद को आगे बढ़ाने का अधिकार देने के बारे में सोच भी नहीं सकता। हाल ही में हुए हिंसक प्रदर्शनों ने ज्ञानेंद्र शाह और उनके परिवार पर जनता के भरोसे को पूरी तरह से खत्म कर दिया है। इसलिए अब निकट भविष्य में उनकी गद्दी पर वापसी संभव नहीं है।
राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश
नेपाल हेडलाइन डॉट कॉम के प्रधान संपादक उपेंद्र पोखरेल का निश्चित रूप से मानना है कि नेपाल में हिंदू राष्ट्र को लेकर प्रबल भावनाएं हैं। चूंकि नेपाल अब धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बन चुका है, इसलिए हिंदू राष्ट्र के लिए अब अंतरराष्ट्रीय समर्थन नहीं मिलेगा। इसलिए नेपाल के फिर से हिंदू राष्ट्र बनने की कोई संभावना नहीं है।
राजशाही के समर्थन में नेपाल में जो कुछ भी हो रहा है, वह राजनीतिक पैंतरेबाजी के अलावा और कुछ नहीं है। राजशाही और हिंदू राष्ट्र का मुद्दा उठाकर कुछ राजनीतिक दल पहाड़ी और तराई में बंटे नेपाल के लोगों की भावनाओं से लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, इससे अब नेपाल के स्वरूप पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है।
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