Parliament Session: बीते 13 सितंबर की शाम को आखिरकार केंद्र सरकार ने बता दिया कि वह संसद (Parliament) का विशेष स्तर क्यों बुला रही है और इस सत्र के क्या महत्व हैं? सरकार ने विशेष सत्र की वजह को साफ़ कर दिया। सारे सस्पेंस को ख़त्म कर दिया। सरकार ने कहा कि वह देश की आजादी के बाद संविधान सभा के गठन से लेकर 75 सालों तक की देश की यात्रा, उसकी उपलब्धियां, अनुभवों, स्मृतियों और सीख पर चर्चा करने के लिए इस विशेष सत्र को बुला रही हैं। सरकार विपक्ष के साथ मिलकर इस पर चर्चा करेगी और एक तरह से 75 साल की आजादी में हमें क्या कुछ खोया और कुछ पाया इसका विश्लेषण भी करेंगी। ऊपर से देखने में यह एक बड़ी बात है। लोकतंत्र की समीक्षा और संविधान की समीक्षा के साथ ही आजादी के 75 साल की समीक्षा अगर की जाती है तो यह देश और यहां के नागरिकों के लिए भी बड़ी बात होगी और इस तरह की समीक्षा की भी जानी चाहिए।
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लेकिन इस समीक्षा के बीच ही सरकार (Parliament) उन चार बिलों को भी पास कराने की तैयारी में जो काफी अहम माने जा रहे हैं। इन विधेयकों में सरकार एडवोकेट संशोधन विधेयक 2023, प्रेस और आवधिक पंजीकरण विधेयक 2023 को लोकसभा में पेश करने की बात की जा रही है। ये दोनों बिल राज्य सभा से पहले ही पास हो चुके हैं। इन दो बिलों के अलावा डाकघर विधेयक 2023 और मुख्य निर्वाचन आयुक्त बिल को भी पास कराने की तैयारी है। बता दें कि निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति, सेवा शर्त विधेयक 2023 राज्य के लिए पेश किये जाने हैं। लोकसभा में यह बिल अभी सरकार कभी भी पास करा सकती है। हालांकि निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी कुछ फैसले लिए थे जिसे सरकार ने पलट दिया है। अब इस मामले आगे क्या होगा यह भी देखना बाकी है। अब जानकार कह रहे हैं कि बाकी सभी बातें तो ठीक है लेकिन जिस तरह से निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़े बिलों को लेकर सरकार ज्यादा चिंतित है इससे साफ़ लगता है कि सरकार अपने लोगों को इस जगह पर नियुक्ति की राह को साफ़ करना चाहती है ताकि चुनाव में उसे लाभ मिल सके।
लेकिन काफी अहम बात ये है कि जिन चार बिलों को पास कराने की बात कही जा रही है उसके लिए क्या संसद (Parliament) के विशेष सत्र को बुलाना ठीक है? क्या ये बिल महत्व के हैं ? जहां तक एडवोकेट संशोधन विधेयक 2023 की बात है इसे कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने मानसून स्तर में राज्य सभा में पेश किया था। अब इस पर चर्चा होनी है। इसमें जो भी खामियां है उसे बदलने की बात है और नयी बातों को जोड़ने क बात होगी। इस विधेयक में यह प्रावधान है कि सभी उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय, जिला मजिस्ट्रेट और राजस्व अधिकारी दलालों की सूची बना सकते हैं और उसे प्रकाशित भी कर सकते हैं। कानून की पढ़ाई और क़ानूनी प्रशासन में आवश्यक परिवर्तनों के लिए भी सरकार अहम कदम उठा सकती है।
जहां तक प्रेस और आवधिक पंजीकरण विधेयक की बात है इसके जरिये मीडिया को और भी सुगम बनाने की बात कही जा रही है। डिजिटल मीडिया बह रेगुलेशन के दायरे में आ जायेगा। यह बिल राज्यसभा से पास करा लिया गया है अब लोकसभा में इसे पास कराने की बात है। इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य पारदर्शी मीडिया को बनाने की है। इसके साथ ही इस विधेयक से पत्र-पत्रिका का पंजीयन प्रक्रिया भी आसान हो जाएगी। इस कानून के बनने के बाद आप जिला कलेक्टर के पास आवेदन करके ही अखबार या पत्रिका खोल सकते हैं।
इसी तरह से डाकघर विधेयक के जरिये कई तरह के सुधार की जरूरत है। यह विधेयक राज्य सभा में पेश हो चुका है। यह 1898 में बने कानून का जगह लेगा। इस विधेयक के जरिये डाकघर को कई तरह के ख़ास अधिकार मिल जायेंगे।