New CJI Justice: बीआर गवई बने देश के नए CJI… इन 10 बड़े मामलों में सुना चुके हैं फैसले
जस्टिस बीआर गवई सुप्रीम कोर्ट के नए CJI बन गए हैं। आज उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ दिलाई। जस्टिस गवई के पिता एक वरिष्ठ अंबेडकरवादी राजनेता थे। आइए जानते हैं जस्टिस बीआर गवई के वो 10 बड़े फैसले जो बेहद अहम रहे हैं।
New CJI Justice: कल यानी 13 मई को सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई संजीव खन्ना के रिटायर होने के बाद आज बीआर गवई ने सुप्रीम कोर्ट का कार्यभार संभाल लिया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गवई को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। वह देश के पहले सीजेआई हैं जो बौद्ध धर्म को मानते हैं। जस्टिस गवई के पिता – आरएस गवई उन चार लाख लोगों में से एक थे जिन्होंने 1956 में डॉ. भीमराव अंबेडकर के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था। जस्टिस गवई के पिता अंबेडकरवादी नेता थे और उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना की थी।
बीआर गवई के बारे में कई खास बातें हैं। लेकिन सबसे खास बात यह है कि वे दलित समुदाय से आने वाले दूसरे CJI होंगे। उनसे पहले केजी बालाकृष्णन 2007 में देश के पहले चीफ जस्टिस बने थे, जो दलित समुदाय से आते थे। बालाकृष्णन का कार्यकाल करीब 3 साल का था। वहीं, आज से शुरू होने वाला जस्टिस गवई का कार्यकाल 6 महीने से कुछ दिन ज्यादा- 24 नवंबर 2025 तक का होगा। आइए इस स्टोरी में जस्टिस गवई के न्यायिक सफर और उनके कुछ अहम फैसलों पर एक नजर डालते हैं।
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जस्टिस गवई का न्यायिक सफर
24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में जन्मे बीआर गवई ने बीकॉम करने के बाद अमरावती यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई पूरी की। बहुत से लोगों को शायद पता न हो लेकिन यह जानना दिलचस्प होगा कि जस्टिस गवई आर्किटेक्ट बनना चाहते थे। लेकिन उन्होंने अपने पिता को खुश करने के लिए वकालत का पेशा चुना। गवई के पिता अमरावती से लोकसभा सांसद थे। इसके अलावा कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान 2006 से 2011 के बीच वे बिहार, सिक्किम और केरल के राज्यपाल रहे।
बीआर गवई ने 25 साल की उम्र में वकालत शुरू की थी। यह साल 1985 था। गवई ने बॉम्बे हाई कोर्ट के साथ-साथ नागपुर बेंच के सामने भी अपनी दलीलें पेश कीं। इसके बाद नवंबर 2003 में वे बॉम्बे हाई कोर्ट के जज बने और मई 2019 तक वहीं रहे। हाई कोर्ट में बिताए करीब 16 साल के अनुभव के साथ जस्टिस गवई ने 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट में कदम रखा। सुप्रीम कोर्ट में जज रहते हुए वे अब तक करीब 700 बेंच का हिस्सा रह चुके हैं। साथ ही उन्होंने यहां 300 से ज्यादा फैसले लिखे हैं। इनमें संवैधानिक बेंच के फैसले भी शामिल हैं।
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जस्टिस गवई के 10 बड़े फैसले
जस्टिस बीआर गवई ने न्यूजक्लिक के संस्थापक और संपादक प्रबीर पुरकायस्थ को यूएपीए मामले में जमानत दी, जबकि दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को शराब नीति मामले में जमानत दी गई। इसके साथ ही यूएपीए और मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में गिरफ्तारी के लिए कई मानक तय किए। जस्टिस गवई की बेंच ने यह फैसला भी सुनाया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘बुलडोजर न्याय’ पूरी तरह से गलत है। जस्टिस गवई ने कानूनी प्रावधानों का पालन किए बिना लोगों के घरों को गिराना सही नहीं माना।
जस्टिस गवई उस 7 सदस्यीय पीठ का भी हिस्सा थे जिसने एससी-एसटी आरक्षण के उप-वर्गीकरण यानी कोटे के भीतर कोटा का रास्ता साफ किया था। इस फैसले में जस्टिस गवई ने ओबीसी की तर्ज पर एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर बनाने की वकालत की थी। वहीं, पिछले साल फरवरी में जब चुनावी फंडिंग यानी इलेक्टोरल बॉन्ड के प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने सूचना के अधिकार कानून का उल्लंघन मानते हुए असंवैधानिक करार दिया था, तब जस्टिस बीआर गवई उस संवैधानिक पीठ का हिस्सा थे।
जस्टिस गवई दिसंबर 2023 की उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे हैं जिसने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे- अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा था। जस्टिस गवई सुप्रीम कोर्ट की उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना मामले में अपना फैसला सुनाया था। जस्टिस गवई उन जजों में भी शामिल थे जिन्होंने मोदी सरकार के बड़े फैसलों में से एक नोटबंदी को संवैधानिक रूप से सही माना था।
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वक्फ मामले पर सुनाएंगे फैसला
जस्टिस गवई के बारे में एक घटना को लेकर काफी चर्चा है, जब उन्होंने राहुल गांधी के खिलाफ आपराधिक मानहानि मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। उस समय उन्होंने अपने परिवार, खासकर अपने पिता और भाई की कांग्रेस पार्टी से नजदीकी का हवाला दिया था। हालांकि, अब जब वे नए सीजेआई बन गए हैं, तो जस्टिस गवई के सामने वक्फ संशोधन अधिनियम जैसा अहम मामला होगा। इसके अलावा, इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर यादव और दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज यशवंत वर्मा से जुड़ा विवाद भी उनके सामने है।
शपथ लेने से पहले जस्टिस बीआर गवई ने कुछ बातें कही हैं। जो काफी अहम हैं। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के संसद को न्यायपालिका की तुलना में सर्वोच्च बताने वाले बयान से उपजे विवाद के बाद जस्टिस गवई ने कहा कि न तो संसद और न ही न्यायपालिका सर्वोच्च है। सही मायनों में संविधान सर्वोच्च है। जजों द्वारा रिटायरमेंट के बाद राज्यपाल और दूसरे राजनीतिक पद स्वीकार करने के सवाल पर जस्टिस गवई ने साफ किया कि मेरी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा बिल्कुल नहीं है। और मैं रिटायरमेंट के बाद कोई पद नहीं लूंगा।
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