Religion and Remidies News Today: जीवन में सुख और दुख का एक ही कारण न होकर अनेक कारण होते हैं, जिनमें व्यक्तिगत समस्याएं, सामाजिक संबंध, नौकरी-व्यवसाय, धन का अभाव, स्वास्थ्य कष्ट, गृह कलह आदि शामिल हैं। संसार से मिलने वाले सुख-दुख का सृजन मनुष्य अपने विचार एवं व्यवहार के माध्यम से अपनी ओर आकर्षित करता है। विचार और हमारी मनः स्थिति का सीधा संबंध ग्रहों की स्थिति से जुड़ा हुआ है जो आगे जाकर शुभाशुभ परिस्थितियों का सृजन करती हैं। ज्ञान दान करने से आपका ज्ञान कम नहीं होगा।
अक्सर लोगों के मन में यें सवाल होता हैं कि जीवन में आने वाले सुख और दुख, क्या भाग्य पर निर्भर करते हैं। जीवन में सुख और दुख की वजह के एक कारण न होकर अनेक कारण हैं, जिसमें व्यक्तिगत समस्याएं, सामाजिक संबंध, नौकरी-व्यवसाय, धन का अभाव, स्वास्थ्य कष्ट, गृह कलह आदि शामिल हैं। देखा जाए तो कारण कोई भी हो, सुख-दुख मन की अवस्था है, जो ग्रहों के द्वारा नियंत्रित एवं संचालित होती है। क्या आपको पता है, हमारे अपने ही विचार हमारे सुख-दुःख का कारण बनते हैं क्योंकि संसार से मिलने वाले सुख-दुख का सृजन मनुष्य अपने विचार एवं व्यवहार के माध्यम से अपनी ओर आकर्षित करता है। यदि हम अपने जीवन से असंतुष्ट हैं और अपने जीवन को बदलना चाहते हैं तो सर्वप्रथम अपने विचार और व्यवहार के प्रति सजग रहकर उसमें परिवर्तन लाना होगा क्योंकि विचार और हमारी मनः स्थिति का सीधा संबंध ग्रहों की स्थिति से जुड़ा हुआ है जो आगे जाकर शुभाशुभ परिस्थितियों का सृजन करती हैं।
संसार मनुष्य के विचारों की छाया
किसी के लिए संसार का सुख स्वर्ग के समान है, तो किसी के लिए सांसारिक यातनाएं नरक के समान पीड़ादायक हैं। किसी व्यक्ति के लिए यह संसार अशांति, क्लेश, पीड़ा का सागर है तो किसी के लिए यही संसार सुख, सुविधा, संपन्नता के उपवन के समान है। एक ही जैसी परिस्थिति में, एक समान सुख, सुविधा, समृद्धि से युक्त 2 व्यक्तियों में अपने स्वयं के विचारों की भिन्नता के कारण असाधारण अंतर देखा जाता है। विचार जब सकारात्मक होते हैं, तो एक व्यक्ति अपनी परिस्थितियों से संतुष्ट रहकर जीवन के लिए ईश्वर को धन्यवाद देता है, वहीं दूसरी तरफ मन में अन्तर्द्वन्द और नकारात्मक विचार होने पर दूसरा व्यक्ति अनेकानेक सुख-सुविधा पाकर भी हमेशा असंतुष्ट रहता है और दूसरों की गलतियां खोजकर उन्हें कोसता रहता है। उदाहरण के तौर पर, विचार भिन्नता के कारण, एक ही ओर की खीर खाने पर, एक व्यक्ति खीर की तथा उसे बनाने वाले को खराब कहता है, दूसरा व्यक्ति उसी खीर की तथा पकाने वाले की प्रशंसा करता है। अपनी भावना के कारण दोनों व्यक्ति उसी खीर को खाकर सुख अथवा दुख पाते हैं। बुराई की भावना के कारण एक व्यक्ति एक ही साधन से दुख पाता है और दूसरा व्यक्ति प्रशंसा की भावना से सुख तथा आनंद प्राप्त करता है। मानव जीवन में सुख-दुःख, धूप-छांव की तरह आता-जाता रहता है, विद्वानों के अनुसार सुख-दुख मनुष्य मन की सापेक्ष अवस्थाएं हैं।
अहं छोड़कर नम्रता लाने पर मिलता है सुख एवं सम्मान
अध्यात्मिक जगत में कहा जाता है कि हमारे दुःख का कारण है, अज्ञानता, सत्य को नहीं जानना, सत्य में अविश्वास, भ्रमपूर्ण भावना, गर्व एवं अहंकार आदि। यदि आपको जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता एवं लोगों का अपेक्षित सहयोग चाहिए तो अहंकार का त्याग कर नम्रतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए। यदि आप किसी एक व्यक्ति को भी बौद्धिक अथवा आध्यात्मिक ज्ञान दे सकें, तो निश्चय ही यह उसकी सबसे बड़ी सहायता होगी। भगवान बुद्ध ने असंख्य लोगों के जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैलाकर उनकी आध्यात्मिक सहायता कर युग-युगांतर तक लोगों के लिए पथ-प्रदर्शक बनकर उनका कल्याण
किया है। उन्हीं की देन है कि आज हम लोगों में करुणा, सहानुभूति, प्रेम, सेवा आदि भावनाओं के प्रति आदर और श्रद्धा विद्यमान है। ज्ञान का दान सभी दान में श्रेष्ठ माना गया है, नीतिशास्त्रों का मत एवं विद्वानों का कहना है कि जो थोड़ा-बहुत ज्ञान आपके पास उपलब्ध है, उसे दूसरों में बांटिए, इससे आपका ज्ञान कम नहीं होगा। एक दीपक से अनेक दीपक प्रज्वलित किए जाते हैं और इससे किसी दीपक के प्रकाश में कोई कमी नहीं आती।