Dynastic Politics News India! भारतीय राजनीति में वंशवाद की शुरुआत कब से हुई यह कोई पुराना विषय तो है नही ।देश की आजादी के पहले भी वंशवाद की नीव थी और आजादी के बाद यह नीव थोड़ी और भी मजबूत होती चली गई ।आजादी से पहले देश के कई परिवार ऐसे थे जिसने आजादी की लड़ाई में बड़ी भूमिका निभाई थी ।बहुत कुछ बलिदान किया था और त्याग भी ।लेकिन आजादी के बाद जब देश को आगे बढ़ाने की बात हुई ,संविधान बनने के बाद जब चुनाव प्रक्रिया की बात हुई तो ऐसा नही था कि केवल वंशवादी लोग ही राजनीति को आगे बढ़ाते रहे ।इस देश की राजनीति को आगे बढ़ाने में देश की जनता से लेकर किसान मजदूरों की भी बड़ी भूमिका रही है ।
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आजादी के बाद जो दूसरे आज चुनाव हुए तब तक बहुत कुछ सामान्य था लेकिन उसके बाद जब जमींदारों की जमींदारी खत्म हुई और जमींदारों के हाथ से सत्ता गई तब वे लोग भी बड़ी तादात में राजनीति में आने लगे ।1952 में जमींदारी खत्म की गई थी लेकिन 60 के बाद जो चुनाव देश में हुए उसमे बड़ी संख्या में जमींदार और उनके परिवार के लोग राजनीति में आने लगे ।संसद से विधान सभाओं में जमींदारी से कूदे लोग आने लगे ।जिनको जनता पर शासन चलाने की आदत थी संसद और विधान सभाओं के जरिए अपनी ताकत को दिखाने लगे ।
तब नेतागिरी का दो ही मकसद था ।और दो तरह के लोग ही राजनीति में आए थे ।वी वर्ग तो वह था जो आजादी को लड़ाई लड़े थे ।इनमे शिक्षक थे ।वकील थे ।किसान थे और मजदूर संघ के बहुत से लोग थे ।कई शिक्षाविद भी थे जो देश में परिवर्तन चाहते थे ।नेतागिरी करने वाले दूसरे प्रजाति के लोग जमींदार थे और उनके परिजन भी थे । राजनीति उनके लिए आसान थी ।चुकी।लोग इनके ही थे जनता इनकी हो थी इसलिए वोट लेने के लिए उन्हें कोई तमाशा नही करना पड़ता था ।बहुत दिनों तक ऐसा ही चलता रहा।
पीढियां गुजरी। समाज बदला ।देश और दुनिया का भूगोल भी बदला ।लोगों की सोच समझ भी बदली ।नए नए लोग राजनीति में आने लगे ।नई पार्टियां चुनाव में हिस्सा लेने लगी । जाति के आधार पर पार्टियां बनने लगी ।जिसकी जाति कितनी बड़ी उसको राजनीति उतनी ही सफल ।देश के कई राज्यों में क्षत्रपों को उत्पत्ति हुई ।कांग्रेस के खिलाफ सबसे ज्यादा गोलबंदी हुई ।चुकी आजादी को लड़ाई में कांग्रेस और नेहरू परिवार को बड़ी भूमिका थी ऐसे में आजादी के बाद भी कांग्रेस और नेहरू गांधी परिवार को भूमिका बनी रही ।आज भी है ।लेकिन बहुत कुछ अब बदल चुका है ।लोकतंत्र काफी मजबूत हुआ है इसलिए बहुत हद तक परिवारवाद को राजनीति भले ही दिखती जरूर है लेकिन कोई असर नही होता।
बीजेपी की राजनीति 1980 से शुरू होती है ।इससे पहले जनसंघ था ।आज बीजेपी।को हालत कांग्रेस से भी खराब है ।अगर कांग्रेस में दस लोग परिवारवादी राजनीति कर रहे होने तो बीजेपी में इससे ज्यादा लोग हो परिवारवादी राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं ।और यह कभी कमजोर भी नही पड़ेगा ।फिर राज्यों में बड़े बड़े क्षत्रप हैं ।इनकी परिवारवादी राजनीति अपने तरह को है ।ऐसे में बीजेपी अगर परिवारवाद पर सवाल उठाती है तो उसे अपने ऊपर देखने को जरूरी है ।जिस तरह से दही नेताओं की राजनीति सबको पसंद है ठीक परिवारवादी राजनीति से किसी को परहेज नहीं ।