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News: चार चार करोड़पति बेटे होने के बावजूद भी बुजुर्ग मां को लेनी पडी वृद्धाश्रम में शरण

न मेरे पास पैसा है न बंगला है और न बैंक बैलेंस, मेरे पास मां है ये लाइन वैसे तो एक फ़िल्म की है जिसमें निर्देशक द्वारा इन लाइनों के जरिये ये बताने की कोशिश की गई कि अगर आपके पास मां है तो सबकुछ है । मगर आज की भागती दौड़ती जिंदगी में ये लाइनें सिर्फ फ़िल्म की लाइन बनकर रह गईं हैं । कहानी आगरा  की  है जंहा एक लाचार बुजुर्ग माँ अपने चार चार कारोबारी बेटों के होने के बाद भी वृद्ध आश्रम में अपना जीवन बसर करने को मजबूर है । हर माँ बाप का सपना होता है कि उसके बच्चे पढ़ लिखकर बड़े आदमी बनें और कुछ ऐसा करें कि बेटों के नाम के साथ साथ उनके मां बाप का नाम भी रोशन हो . लेकिन आगरा में इसका उल्टा हुआ । यहाँ चार कलयुगी बेटों ने जमीन जायदाद के लालच में न सिर्फ अपनी माँ को मारा पीटा बल्कि उन्हें घर से बाहर निकाल कर वृधाश्रम की दहलीज तक पहुंचा दिया ।

ये कहानी है पॉश कालोनी कमला नगर की। यहां की रहने वाली विद्या देवी के चार बेटे हैं। चारों बेटे आर्थिक रूप से बेहद संपन्न हैं। उनकी लोहे का कारखाना है। मगर, करोड़पति चार बेटों की मां इन दिनों वृद्ध आश्रम में अपना जीवन व्यतीत कर रही है। वृद्ध विद्या देवी अपने बेटों से इस कदर आहत है कि उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर वो मर भी जाएं तो इसकी खबर उनके बेटों को न दी जाए। 86 साल की विद्या देवी का आगरा की पॉश कालोनी कमला नगर में खुद की आलीशान कोठी है। लगभग 13 साल पहले उनकी पति की अचानत मृत्यु हो गई थी। पति की मौत के बाद मां ने सोचा कि अब उसके चार बेटे ही उसका सहारा बनेंगे। यही वजह रही कि पति की मौत के बाद मां ने बेटों को फैक्ट्री खुलवाई। उनकी शादी करवाई और इस लायक बनाया कि सभी बेटे समाज में अपना नाम कर सकें। लेकिन इस मां ने सोचा नहीं था कि जिन बेटों को वो अपने बुढ़ापे की लाठी समझ रही थी वहीं बेटे उसे वृद्धाश्रम की दहलीज तक पहुंचा देंगे। आज विद्या देवी चार बेटे होने के बाद भी वृद्धाश्रम में रहकर गुजारा कर रही हैं। बुजुर्ग मां विद्या देवी कहती है कि उसने एक बेटे को टै्क्टर्स के पार्ट की फैक्ट्री खुलवाई और अन्य तीन बेटों को खुद की बहुमंजिला इमारत बनाकर सौंपी। चारों बेटों के पास धन की कमी नहीं है। लेकिन अफसोस कि इन चारों के दिल में मां के लिए कोई जगह नहीं है।

 विद्या देवी ने बताया कि कुछ दिन पूर्व बेटों और उनकी पत्नियों ने उन्हें घर से निकाल दिया। जिन बच्चों को उन्होंने इतने प्यार से पाला, अब उन्हीं के बेटों को अपनी मां से बदबू आती है। पीड़ित मां आंखों में आंसू लिए कहती है कि सबसे पहले बडे़ बेटे ने उनसे घर और फैक्ट्री अपने नाम करवा ली, फिर मारपीट कर घर से बाहर निकाला दिया। उसके बाद दूसरे बेटे की शरण ली तो उसने भी पत्नी के कहने पर एक घंटे भी घर में रहने नहीं दिया। इसके बाद तीसरे बेटे की बारी आई। तो खाना और दवा तो दूर बेटा और उसकी पत्नी और बच्चे ये कहने लगे कि इस बुढ़िया को यमुना में फेंक आओ, इससे बदबू आती है और उसी राह पर चौथा बेटा भी चला। उसकी पत्नी से अपनी सास को आतंकवादी तक कह दिया। सब कुछ होने क बाद भी जब चारों बेटों ने सहारा नहीं दिया तो वृद्ध की बहन शशि गोयल ने उन्हें आगरा के रामलाल वृद्धाश्रम में पहुंचा दिया। आज ये बूढ़ी मां रोते हुए कहती है कि अब यही मेरा परिवार है। यहां पर रहने वाले युवा मेरे बेटे और बुजुर्ग महिलाएं मेरी बहन है। इस दौरान दिल में दर्द लिए इस बूढ़ी मां के जुबान से बस यही शब्द निकलते हैं कि अगर मैं मर भी जाऊ तो मेरे बेटों को इसकी खबर भी नहीं दी जाए।

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आश्रम के संचालक शिव प्रसाद शर्मा का कहना है कि कुछ दिन पूर्व वृद्धा की बहन शशि गोयल उन्हें लेकर आई थी। इनके चार बेटों हैं जो आर्थिक रूप से बेहद संपन्न हैं। सभी की फैक्ट्री और कोठियां हैं। और उनका एक बेटा तो वैश्य समाज का नेता भी है। उसके बावजूद भी ये मां हमारे यहां पर रह रही है। हमने इनके परिवार वालों से संपर्क भी किया, लेकिन परिवारीजन उलटा वृद्धाश्रम से कहते रहे कि आप हमें बदनाम कर रहे हैं,  लेकिन किसी ने भी मां को अपने साथ ले जाने की बात नहीं की। 

ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर आज के युवा ये कब समझेंगे कि कभी वो भी बुढ़ापे की दहलीज पर पहुंचेंग। अगर उनके बच्चे भी उनके साथ यहीं व्यवहार करेंगे तो उन पर क्या गुजरेगी। काश आज के समाज को ये बात समझ आ जाए तो किसी भी मां को वृद्धाश्रम में शरण नहीं लेनी पडे़गी।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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