Defying terror oppression आतंकियों ने 200 लोग मार गिराए मुझे धमकियां तक मिली तरह तरह की अडचनें आई लेकिन मेरा डांस नहीं रुका
Defying terror News : आतंकवादियों तक का सामना करना पड़ा। धमकियां तक मिली.चाहे कितनी भी अडचनें आई वो नही रूकी. ये कहानी है 72 साल की शीमा किरमानी की जो अपने ‘पसूरी’ गाने से दुनिया भर में मशहूर हो गईं है. डांसर शीमा किरमानी “coke studio “पाकिस्तान के इस गाने से दुनिया को जोड़ने वाली शीमा आर्ट, औरतों और मोहब्बत को बचाने की मुहिम चला रही हैं। इसके लिए उन्हें जनरल Zia-ul-Haq की पाबंदियों से लेकर आतंकवादियों तक का सामना करना पड़ा. लेकिन, उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने दिखा दिया कि कलाकार अपनी ताकत से दुनिया बदल सकते हैं। कला कैसे देशों और दिलों को जोड़ती है, . जब coke studio ने मुझे पसूरी गाने पर परफॉर्म करने को कहा, तब मैं बिल्कुल राजी नहीं हुई। मेरा तो सारा काम ही anti corporate है। फिर उन्होंने कहा कि आप गाना सुनें, आपको अच्छा लगेगा। गाना पंजाबी में था, इसलिए अंग्रेजी में समझना पड़ा। आखिर में उन्होंने मुझे मना ही लिया.
मुझे तो हैरानी होती है कि कैसे एक पंजाबी गाने से हिंदुस्तान और पाकिस्तान (hindustan- pakistan)के साथ साथ अमेरिका और अफ्रीका(america- africa) तक की युवा पीढी जुड गई . भाषा की बंदिशें टूट गईं. इससे डांस के प्रति पाकिस्तान के युवाओं का नजरिया बदला. वो लोग भी डांस सीखने आ रहे हैं।अगर हम साउथ एशियन(south asia) आपस में जुड़ जाएं, तो चीन, अमेरिका और रूस से भी ज्यादा ताकतवर हो जाएंगे। हमारा कल्चर, हमारे आर्ट्स की समानताएं हमें एक-दूसरे से जोड़ती हैं। 50 वर्ष पहले की बात है, मगर ऐसे लगता है जैसे कल की ही बात हो। पढ़ाई के दौरान मैं सपने देखती कि पाकिस्तान(Pakistan) में डांस और आर्ट को बढ़ावा दूंगी। लेकिन, इससे पहले कि मैं अपने सपनों को पूरा करती, साल 1977 में जनरल ज़िया-उल-हक़ ने तख्ता पलट दिया। इस्लामिक शासन को बढ़ावा मिला और खूब धार्मिक कट्टरता बढ़ी. music, आर्ट और औरतों पर बंदिशें लगीं. डांस पूरी तरह बैन हो गया. औरतों और कलाकारों को दबाने के कई कानून बन गए।
अंग्रेजों के जमाने के 150 साल पुराने कानून ‘Dramatic Performance Act’ को सख्ती से लागू कर दिया ताकि, लोग डांस, ड्रामा और म्यूजिक से विरोध न जता सकें. नाटक तक सेंसर होते. देश फासिस्ट माहौल में डूब गया. साल 1971 में ज्यादातर कलाकार मुल्क छोड़कर चले गए थे। जो बचे थे, उन्होंने सरकार की पाबंदियों से तंग आकर साल 1981 में पाकिस्तान छोड़ दिया थाउन दिनों मैं डांस सीखने भारत गई थी। कराची(karachi) से मेरे गुरु घनश्याम साहब ने फोन करके पूछा कि कब लौटोगी। वे मुझे अपना डांस स्कूल सौंपना चाहते थे. वह गैर-मुस्लिम थे और डांस स्कूल भी चला रहे थे। इसलिए उन्हें धमकियां मिल रही थीं.साल 1983 में मेरे कराची पहुंचने से पहले वे सपत्नी मुल्क छोड़कर चले गए थे.
जब मैं दिल्ली से पाकिस्तान लौटी, तो सब चौपट हो चुका है। पहले तो समझ ही नहीं आया करूं क्या, फिर तय किया कि सारी जिंदगी यहीं रही हूं, ये मेरा वतन है. मैं भी देखती हूं कौन रोकता है। मैं डांस करती रही। लोगों की नजरों में मेरा डांस political statement बन गया कि एक औरत बैन के बावजूद साड़ी पहनकर नाच रही है। यह सब आसान नहीं था। हर इवेंट के लिए NOC लेनी पड़ती। सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटती रही लिखकर देती कि डांस नहीं कर रही। फिर भी इजाजत नहीं मिलती।Cultural evening के नाम पर छिप-छिपाकर डांस करते। पोस्टकार्ड के जरिए लोगों को स्थान, तारीख और समय बताती। तब जाकर कहीं कुछ कर पाते. हम डांस के साथ थिएटर भी करते, लेकिन हर नाटक की script sensor होती। आखिर में हमने परमिशन लेना ही छोड़ दिया। हम किसी पार्क में जाते, वहां छोटा सा नाटक करके वापस आ जाते। यह सब मैं अपनी टीम के साथ रिस्क लेकर करती। धमकियां मिलतीं रहतीं, परफॉर्मेंस होती रहती। लाठियां भी चलतीं, हम जैसे-तैसे बच निकलते। लेकिन, strit threater में इतना रिस्क तो रहता ही है।
सभी संस्कृतियों की विविधता के बीच मैं बड़ी हुई, जिसे आज मिस करती हूं। माता पिता को गानो और किताबों से बहुत लगाव था। मैंने 8 साल की उम्र से पियानो(piono) और western classical music सीखा। जब भारत अपने ननिहाल जाती, 2-3 महीने वहां रहती। नानी के घर पर उस्ताद मां को भरतनाट्यम और सितार सिखाने आते। मैंने भी वहीं डांस सीखने की शुरुआत की नानी के घर से कराची(karachi) लौटने के बाद मेरे लिए उस्ताद की खोज शुरू हुई। फिर घनश्याम साहब मिले, जो मेरे पहले डांस गुरु बने। वह कलकत्ते(kolkata) से और उनकी पत्नी नीलिमा मणिपुर से थीं। दोनों ने अल्मोड़ा में उदयशंकर के प्रसिद्ध स्कूल में तालीम हासिल की थी। 13-14 साल की उम्र में घरवालों ने मुझे उनके पास भेजना शुरू किया। जैसे-जैसे मैं सीखती गई, डांस(dance) में मेरी दिलचस्पी बढ़ती गई। london के क्रॉयडन कॉलेज (Croydon College)में फाइन आर्ट्स की पढ़ाई की। वहां से लौटकर पेंटिंग्स बनाईं, एग्जिबिशन लगाईं, लेकिन उसमें मुझे अकेलापन महसूस होने लगा, तो फिर मैने पूरी तरह से डांस(dance) को ही अपना लिया।
खुद को तराशने के लिए 1981 में मैं दिल्ली(delhi) गई। मंडी हाउस में श्रीराम भारतीय कला केंद्र में तालीम ली। भरतनाट्यम सीखा। 1983 में कराची लौटी और देखा कि भरतनाट्यम के लिए कराची में कोई musician नहीं है। दोबारा भारत गई। फिर odisa और कथक भी सीखा। 1989 में मुझे इंडियन काउंसिल ऑफ कल्चरल रिलेशंस (ICCR) से schoolerschip भी मिली। जिसके बाद कई साल दिल्ली (delhi)में रहकर सीखती रही। पढ़ाई के दौरान ही मैं यह समझ गई थी कि देश की राजनीति का महिलाओ पर क्या असर पड़ता है। साल 1979 में england से लौटने के बाद देखा कि पाकिस्तान में अमीर और अमीर होते जा रहे हैं, गरीबी बढ़ती जा रही है। औरतों के हालात भी बद से बदतर हो गए हैं। तब मैंने मजदूर औरतों के साथ जुड़कर उनके हक के लिए लड़ना शुरू किया और ‘’Tehreek-e-Niswan” की स्थापना की।
साल 2005 में पाकिस्तान में रेप का मामला दुनियाभर में चर्चा का विषय बन गया एक गांव में रहने वाली मुख्तारन माई का गैंगरेप कर उन्हें बिना कपड़ों के गांव में घुमाया गया। वह न्याय के लिए लड़ीं। 2005 में Amnesty International ने उन्हें लंदन बुलाया, लेकिन पाकिस्तान सरकार ने उनके देश से बाहर जाने पर बैन लगा दिया। उस दौरान जनरल मुशर्रफ अमेरिका(america) गए। वहां मुख्तारन माई को लंदन जाने की इजाजत न देने के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने जवाब दिया कि पाकिस्तानी औरते कनाडा के वीजा और पैसे के लिए रेप होने को तैयार रहती हैं। उनके इस बयान से हम औरतों का गुस्सा उबल पड़ा। हमने सड़क पर चलते-चलते नाटक लिखा और press club पहुंचकर पेश किया। जिसमें विरोध के साथ सरकार का मजाक उड़ाया। सिंध के सेहवन शरीफ़ में पीर, सूफी संत और शायर लाल शाहबाज़ क़लंदर की दरगाह है। उन्हें यहां बहुत माना जाता है। सूफी गीत ‘Damadam Mast Kalandar ‘ उन्हीं के लिए लिखा गया है। उनकी दरगाह पर लोग ‘dhamal ‘ डांस में झूमते हैं। इसमें महिलाएं भी बेरोकटोक हिस्सा लेती हैं। जो संगीत और डांस के विरोधियों को पसंद नहीं आता। इसी कारण 2017 में suicide bombers ने आत्मघाती हमला किया
बम ब्लास्ट में करीब 200 से ज्यादा लोग मारे गए, बहुत से लोग घायल हुए। कई सालो से चल रही परंपरा एकदम से रुक गई। धमाल बंद हो गया। लेकिन, ठीक 3 दिन बाद हम आर्टिस्ट(artist) वहां पहुंचे और बस से उतरते ही सड़क से ‘dhamal’ शुरू कर दिया। धीरे धीरे लोग उसमें शामिल होने लगे। बंद दुकानें खुलने लगीं। हम पर फूल फेंके गए। हमारी हिम्मत बढ़ी। ‘dhamal’ दोबारा शुरू हुआ और आर्ट ने आतंकियों के मंसूबे नाकाम कर दिए।hindustan-pakistan में बढ़ीं नफरतें सद्भाव, कुदरत, प्यार और इंसानियत के रिश्ते को खत्म कर रही हैं। पता नहीं लोग मार दो, काट दो की भाषा क्यों बोलने लगे हैं। इस नफरत को सिर्फ art ही खत्म कर सकती है।
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हाल ही में भारत और पाकिस्तान से peace delegates करतारपुर साहिब पहुंचे। कुछ घंटों तक वहां बैठकर हमने बातें कीं। दोनों मुल्कों के बीच अमन और प्यार बढ़ाने के रास्ते तलाशे। जब बातचीत खत्म हुई तो सबने मिलकर गाया और डांस किया। तब सबके चेहरे पर जो खुशियां और मोहब्बत दिख रही रही थी, वही दिलों को करीब लाती है।पूरे कराची शहर में सिर्फ एक studio है। लेकिन, पाकिस्तान में आमतौर पर art के लिए सरकार और बिजनेस हाउस से मदद नहीं मिलती। बिना मदद के कराची जैसे शहर में जमीन लेकर institute बनाना बहुत मुश्किल है। अभी तो अपने घर को ही studio बना लिया है। मेरे लिए तो एक छोटा सा कमरा ही काफी है। इसलिए बाकी हिस्से में रिहर्सल होता है। डांस सीखते हैं। 50 लोगों का performance भी हो सकता है।