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Gandki River: नेपाल की काली गंडकी नदी की शिलाओं से बनेगी अयोध्या में प्रभु राम और सीता की मूर्तियां

नेपाल के पोखरा स्थित शालिग्राम नदी जिसे काली गंडकी नदी Gandki River भी कहा जाता है से दो विशाल शालिग्राम शिलाये अयोध्या लाई जा रही है। इन शिलाओं से प्रभु श्रीराम और माता सीता की भव्य मूर्तियां बनायी जायेगी और अयोध्या में बन रहे मंदिर में स्थापित की जाएगी। कहा जा रहा है कि शालिग्राम नदी की ये शिलायें करीब 6 करोड़ साल पुरानी है। हालांकि इन शिलाओं से बनी मूर्तियां गर्भगृह में स्थापित होंगी या मंदिर परिसर में रखी जाएगी यह अभी तय नहीं हुआ है। इस पर अंतिम फैसला मंदिर ट्रस्ट को लेना है।

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बता दें कि शालिग्राम नदी से निकाली गई ये शिलायें जियोलाजिकल और आर्किलोजिकल विशेषज्ञों की देखरेख में निकाली गई है। इन शिलाओं को नदी से निकल कर ट्रक में 26 लोड किया गया। पूजा अर्चना के बाद ये 40टन वजनी शिलायें अयोध्या के लिए प्रस्थान कर चुकी है। जहां -जहां से शिलाये गुजर रही है ,लोग पूजा अर्चना कर रहे हैं। दो फरवरी को ये शिलायें अयोध्या पहुँच जाएगी।

राम मंदिर ट्रस्ट के ट्रष्टी कामेश्वर चौपाल ने कहा है कि हमें अभी इन शिलाओं को अयोध्या लाने को कहा गया है। जब शिलायें वहां पहुँच जाएगी ,त्रस्त अपना काम करेगा। माना जा जा रहा है कि ये शिलायें 6 करोड़ साल पुरानी है।
बता दें कि नेपाल की शालिग्रामी नदी, भारत में आते ही नारायणी नदी कहलाने लगती है। शालिग्राम नदी के काले पत्थर को शालिग्राम के रूप में पूजा जाता है। कहा जाता है कि शालिग्राम पत्त्थर केवल शालिग्राम नदी में ही मिलते हैं। यह नदी दामोदर कुंड से निकलकर बिहार के सोनपुर में गंगा नदी में मिल जाती है।

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इन शिलाओं के साथ करीब सौ लोग चल रहे हैं। विश्राम स्थल पर ठहरने की सुविधा बनाई गई है। विहिप के केंद्रीय उपाध्यक्ष जीवेश्वर मिश्र ,राजेंद्र पंकज और नेपाल के पूर्व उपप्रधान मंत्री कमलेन्द्र निधि ,जनकपुर के महंत भी इस यात्रा के साथ अयोध्या पहुँच रहे हैं। इस यात्रा में राममंदिर ट्रस्ट से जुड़े लोग भी हैं। एक फरवरी को शिलाओं से भरे ट्रक गोरखपुर पहुँच जायेंगे।
पुरातत्वविद व अयोध्या पर कई किताबे लिख चुके देशराज उपाध्याय ने कहा कि नेपाल की शालिग्राम में काले रंग के एक विशेष प्रकार के पत्थर पाए जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के इन्हे शालिग्राम भगवन के रूप में कहा जाता है। प्राचीन काल की मूर्तियां इन पथ्थरो से बनाये जाते रहे हैं। ये पत्थर काफी मजबूत होते हैं। मूर्तिकार इसी पत्थर से मूर्तियां बनाते रहे हैं।


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