Holi Special: जानिए मथुरा और वाराणसी की होली के बारे में रोचक बातें!
Holi Special: हर जगह छाया है होली का त्योहार। जहां रंग है…गुलाल है…मीठे पकवान हैं…ये होली का त्योहार है। बात अगर देवों की नगरी में खेली जाने वाली होली की हो…और कान्हा की नगरी मथुरा का जिक्र न तो हो तो समझ लिजिए होली अधुरी है…मथुरा (Mathura) जहां बसता वृंदावन, गोकुल, और बरसाना…पहचान है होली के खुमार की।
पिचकारी की फुहार…रंग और गुलाल…किसी के हाथ ढ़ाल तो किसी के हाथ लट्ठ…ये कान्हा की नगरी है…होली है लट्ठमार। मथुरा में होली यानी पूरे एक महीने का रंगोत्सव…वृंदावन और बरसाना और गोकुल कान्हा की नगरी के नाम से विख्यात हैं… और यहां की होली भी कान्हा (Kanha Ki Holi) की होली के नाम से जानी है…जिसमें लठ्ठमार होली.,..लड्डू मार होली रंगों की होली और फूलों की होली शामिल है…
मथुरा, वृंदावन में होली के रंग भले ही अलग अलग हैं…लेकिन भाव एक…सिर्फ और सिर्फ प्रेम…कान्हा के प्रति प्रेम। मथुरा की होली आज पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान रखती है..देश-विदेश से लोग मथुरा-बरसाना सिर्फ और सिर्फ होली के रंगों में सराबोर होने पहुंचते हैं…यहां होली की परंपरा द्वापर युग से ही चली आ रही है। बरसाने की विश्व-प्रसिद्ध लट्ठमार होली….जिसमें महिलाएं, जिन्हें हुरियारिन कहते हैं, वे लट्ठ लेकर हुरियारों को यानी पुरुषों को मजाकिया अंदाज में पीटती हैं…और पुरुष सिर पर ढाल रखकर हुरियारिनों के लट्ठ से खुद का बचाव करते हैं….इस खास मौके पर महिलाओं और पुरुषों के बीच गीत संगीत की प्रतियोगिताएं भी होती है।
ये तो थी कान्हा की नगरी…यानी मथुरा की होली…जिसका खुमार पूरे एक महीनों तक लोगों के सिर चढ़कर बोलता है। अब एक रंग शिव की नगरी काशी का भी है। काशी यानी भगवान शिव की नगरी…जहां होली का अनोखा रंग आपको काशी में शिव की मौजूदगी का अहसास दिलाता है…यहां खेली जाने वाली मसान होली…जुड़ाव है भक्त और भगवान के बीच का।
भस्म है….भक्ति है….शिव की शक्ति है। ये काशी है…यहां मसाने की होली है। विश्व प्रसिद्ध मसाने की होली काशी की शाम मानी जाती है…क्योंकि ये शिव का नगरी है…और शिव साक्षात यहां भस्म से होली खेलते हैं। मान्यता के अनुसार मसाने की होली फाल्गुन माह की रंगभरी एकादशी के एक दिन के बाद मनाया जाता है।इसे आमलकी एकादशी या रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक मसाने की होली की शुरूआत भगवान शिव ने की थी. ऐसा माना जाता है रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती के साथ विवाह के बाद पहली बार काशी आए थे. उस दिन मां का स्वागत गुलाल के रंग से किया था. इसीलिए रंगभरी एकादशी का विशेष महत्व है. इस दिन शिव जी और माता पार्वती जी की विशेष पूजा का भी विधान है….रंगभरी एकादशी के अगले दिन भस्म होली या ‘मसाने की होली’ खेली जाती है…जिसकी शुरूआत भी भगवान शिव ने की थी…काशी के मर्णिकर्णिका घाट पर भोलेनाथ ने भूत-प्रेत, यक्ष, गंधर्व और प्रेत के साथ चिता की राख से भस्म होली खेली थी।