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Karpoori Thakur: फटे कुर्ते, टूटी चप्पल में रहने वाले कौन हैं कर्पूरी ठाकुर जिन्हें मिला भारत रत्न, जानिए पूर्व सीएम की पूरी कहानी

Bharat Ratna to Karpoori Thakur: कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग बुधवार को होने वाले उनके जन्म शताब्दी समारोह में विपक्षी दल करते। इसके पहले ही केंद्र सरकार ने उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा कर दी। विपक्षी दलों के पास अब बिहार में बड़े जुटान का मकसद अधूरा रह गया। इसलिए कि शताब्दी समारोह में सभी दल कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग जरूर करते। अब तक न दिए जाने पर भाजपा नीत केंद्र सरकार को कोसते भी।


कर्पूरी ठाकुर के जन्म शताब्दी समारोह के आयोजन के बहाने बिहार में कई राजनीतिक दल अपनी ताकत दिखाने की बुधवार को कोशिश करेंगे। बिहार के भूतपूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर की इस बार जयंती इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि तीन महीने बाद ही लोकसभा का चुनाव होना है। पिछड़े वोटरों पर पकड़ बनाने के लिए जेडीयू, आरजेडी और बीजेपी के अलावा उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोक जनता दल ने भी पूरी तैयारी की है। लेकिन सबके मंसूबों पर भाजपा ने जयंती समारोह की पूर्व संध्या पर ही पानी फेर दिया है। कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की केंद्र सरकार ने घोषणा कर दी है।

Bharat ratna देने की होती रही है मांग

बिहार के लिए कर्पूरी ठाकुर के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। वे 2 बार बिहार के सीएम रहे। वर्ष 1952 से वे लगातार विधायक चुने जाते रहे। साल 1967 में वे बिहार के उप मुख्यमंत्री, वित्त मंत्री और शिक्षा मंत्री भी रहे। पहली बार वे 1970 में मुख्यमंत्री बने, मगर उनकी सरकार अधिक दिनों तक नहीं चल पाई। दूसरी बार उन्होंने 1977 में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। उनका दूसरा कार्यकाल 1979 तक रहा। अपने राजनीतिक करियर में कर्पूरी ठाकुर सिर्फ एक बार चुनाव नहीं जीत पाए थे। वर्ष 1984 में वे लोकसभा चुनाव हार गए थे। इसलिए कि उसी साल इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी। इसकी वजह से कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति लहर थी।

आरक्षण देकर मसीहा बने थे ठाकुर

मुख्यमंत्री रहते कर्पूरी ठाकुर ने सरकारी नौकरियों में पिछड़ों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया। उनकी सादगी और ईमानदारी को आज भी लोग शिद्दत से याद करते हैं। जीवित रहते उन्होंने न कोई संपत्ति खड़ी की और परिवार के किसी व्यक्ति को राजनीति में कदम रखने दिया। उनके निधन के बाद ही परिवार का कोई सदस्य राजनीति में आ पाया। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने उनके बेटे रामनाथ ठाकुर को राज्यसभा भेजा। कर्पूरी ठाकुर अगर जीवित रहते तो शायद ही बेटे को राजनीति में आने देते। इसलिए कि शुरू से ही वे इसके विरोधी रहे। भ्रष्टाचार के वे सख्त विरोधी थे। यह अलग बात है कि आज जिन नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं, वे ही अपने को उनका सच्चा अनुयायी साबित करने के प्रयास में जुटे हुए हैं।



घर नहीं बनवा सके थे कर्पूरी ठाकुर

कर्पूरी ठाकुर अपने राजनीतिक जीवन में विधायक से लेकर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे, पर गांव के पैतृक मकान के अलावा उनके पास कोई दूसरा मकान नहीं था। गांव में भी उनका पुश्तैनी मकान भी कायदे का नहीं था। आज के अघाए नेता कर्पूरी ठाकुर को भुनाने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं, पर वे उनकी सादगी और ईमानदारी से जरा भी सीख नहीं लेते। वोट के लिए उन्हें भुनाने की खूब कोशिश हो रही है, पर किसी ने यह नहीं सोचा कि उनके आदर्शों पर थोड़ा भी अमल कर लें। आज किसी को भी यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि बिहार में एक सीएम ऐसा भी रहा, जिसने अपने परिवार को इसलिए गांव में रखा कि उसे मिलने वाली तनख्वाह से यह संभव नहीं था।

कार नहीं खरीद पाए

किसी को भी यह बात हजम वही हो रही कि कर्पूरी ठाकुर अपने लंबे राजनीतिक जीवन के बावजूद एक कार तक नहीं खरीद पाए। विधायकों या सांसदों की कौन कहे, आज तो मुखिया तक कार की सवारी करते हैं। सबके पास अपने वाहन हैं। कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बनने पर रिक्शे की सवारी करने में थोड़ा भी संकोच नहीं करते थे। 3 वर्ष पहले RJD सुप्रीमो लालू यादव को जब चारा घोटाले में जमानत मिली तो उन्होंने अपनी पुरानी जीप निकाली और बड़े फख्र से कहा कि कर्पूरी जी को वे इसी जीप से घुमाया करते थे। हालांकि सच ये नहीं है। कहा जाता है कि विधानसभा में लालू और कर्पूरी ठाकुर (Kapoori thakur) साथ बैठे थे। किसी काम से कर्पूरी जी को बाहर जाना था। उनके पास वाहन तो था नहीं। इसलिए एक पर्ची लिख कर उन्होंने लालू की ओर बढ़ाई। लालू ने पर्ची पर लिख कर वापस कर दी कि जीप में पेट्रोल (petrol) नहीं है। आप खुद क्यों नहीं गाड़ी खरीद लेते हैं।

कुर्ते के लिए चंदा मांगा गया

कर्पूरी ठाकुर के निजी सहायक (PA) रह चुके वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर बताते हैं कि वर्ष 1977 में पटना के कदमकुआं स्थित चरखा समिति भवन में जयप्रकाश नारायण का जन्मदिन मनाया जा रहा था। वहां बड़े समाजवादी नेताओं का जुटान हुआ था। भूत पूर्व PM चंद्रशेखर, नानाजी देशमुख जैसे नेता वहां आए थे। कर्पूरी ठाकुर तब बिहार के CM थे। जब वे वहां पहुंचे तो उनके कुर्ते पर चंद्रशेखर की नजर पड़ी। कुर्ता फटा हुआ था। चप्पल भी टूटी हुई थी। अचानक चंद्रशेखर उठे और अपने कुर्ते का अगला भाग फैला कर सबसे चंदा देने को कहा। उन्होंने कहा कि कर्पूरी जी के लिए कुर्ता फंड बनाना है। तत्काल कुछ लोगों ने उनके फाड़ में कुछ रुपये दिए। पैसा देते हुए चंद्रशेखर ने कहा कि कर्पूरी जी, इन रुपयों से अपने लिए एक कायदे का कुर्ता-धोती खरीद लीजिए।Kapoori thakur ने पैसा ले लिया और कहा कि इसे हम CM राहत कोष में जमा करा देंगे।

Prachi Chaudhary

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