Supreme Court: दूध की धुली तो कोई सरकार होती नहीं है और यह भी सच है कि जनता के लिए जो खर्च सरकार करती है वह भी किसी की जेब से नहीं की जाती। लेकिन सरकार अक्सर यह कहती है हमारी सरकार ने जनता के लिए यह सब किया है। लेकिन बातों से इतर महत्वपूर्ण बात यह है कि इस देश में सभी सरकारें अपने चेहरे को चमकाने के लिए विज्ञापन पर खूब खर्च करती है। कोई भी सरकार इससे अछूती नहीं है। केंद्र की मोदी सरकार पर विज्ञापन पर किये गए खर्चे पर भी बार-बार सवाल उठते रहे हैं।
लेकिन इस बार दिल्ली की आप सरकार (Delhi government) सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की रडार पर आ गई है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली मेरठ रीजनल रैपिड सिस्टम परियोजना के निर्माण के लिए धन देने में असमर्थता व्यक्त करने के बाद दिल्ली सरकार के विज्ञापनों पर खर्च का ब्यौरा मांगा है। न्यायमूर्ति एस के कॉल और सुधांशु धुलिया की पीठ ने केजरीवाल सरकार को पिछले तीन सालों में विज्ञापनों पर खर्च किये गए धन का विवरण देने के लिए दो सप्ताह के भीतर एक हलफनामा पेश करने का आदेश दिया है।
कहा जा रहा है कि शीर्ष अदालत के इस आदेश के बाद केजरीवाल सरकार (Arvind Kejriwal) की मुश्किलें बढ़ सकती है। जानकारी के मुताबिक जैसे ही दिल्ली सरकार के वकील ने अदालत में कहा कि धन की कमी की वजह से परियोजना के लिए पैसे नहीं दिए जा रहे हैं इसी पर शीर्ष अदालत ने सवाल किया कि अगर आपके पास पैसे नहीं है तो विज्ञापन पर पैसे कहां से खर्च हुए हैं ? आपके पास उस परियोजना के लिए पैसे क्यों नहीं है जो सुचारु परिवहन सुनिश्चित करेगी।
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अदालत (Supreme Court) ने संकेत दिया कि अगर जरुरत पड़ी तो वह विज्ञापन के लिए आबंटित धनराशि को रैपिड रेल परियोजना को पूरा करने में लगाने के लिए आदेश दे सकती है। न्यायमूर्ति कॉल ने मौखिक रूप से कहा कि ”आप चाहते हैं कि हमें पता चले कि आप कौन सा फंड कहां खर्च कर रहे हैं? विज्ञापन के लिए सभी फंड इस परियोजना के लिए लगाए जायेंगे। क्या आप उस तरह का आदेश चाहते हैं ? आप इसके लिए मजबूर कर रहे हैं।’
बाद में अदालत ने आदेश दिया है कि ‘दिल्ली सरकार ने साझा परियोजना के लिए धन का योगदान करने में असमर्थता व्यक्त की है। चूंकि इस परियोजना में धन की कमी एक बाधा है इसलिए हम दिल्ली के एनसीटी से एक हलफनामा दायर करने का आह्वान करते हैं। जिसमें विज्ञापन के लिए उपयोग किये गए धन का विवरण दिया जाए क्योंकि परियोजना काफी महत्वपूर्ण है। पिछले तीन वर्षों का विवरण प्रस्तुत किया जाए।