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Uniform Civil Code: जानिए आज क्यों है समान नागरिक संहिता की जरूरत

Uniform Civil Code: समान नागरिक संहिता को लेकर फिर से बहस जारी है। सरकार इस कानून के समर्थन में तर्क दे रही है कि जबकि मुस्लिम समाज समेत विपक्ष के भी कई नेता इस कानून के विरोध में तर्क दे रहे हैं। सबके अपने तर्क हैं लेकिन सरकार इस मानसून सत्र में समान नागरिक संहिता बिल को संसद में पेश करने को आतुर है। शायद ऐसा हो भी जाए। कहा जा रहा है कि सरकार मानसून सत्र में इस बिल को संसदीय समिति को भेज सकती है। तीन जुलाई को संसदीय समिति की बैठक बुलाई गई है।

वैसे देखा जाए तो समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) से कोई नुकसान नहीं है। इससे किसी धर्म को मानने और न मानने पर कोई रोक टोक नहीं है। कोई भी व्यक्ति किसी भी तरीके से शादी करें ,चाहे हिंदू तरीके से या मुस्लिम धर्म के तरीके से। समान नागरिक संहिता आपको वह अधिकार देता है जो भारत के नागरिक होते हुए आपके पास होने चाहिए। इस कानून को राजनीतिक चश्मे की बजाय समाज के नजरिये से देखने की जरुरत है। यह भारत के सभी नागरिकों के लिए समानता, सशक्तिकरण, जागरूकता, कानून का सम्मान और प्रगतिवाद लेकर आ सकता है।

saman nagarik sanhita kanoon

क्या है समान नागरिक संहिता?

समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का मतलब है सभी धर्मों के लिए सामान कानून। अभी यह होता है कि हर धर्म का अपना अलग-अलग कानून है और वह उसी हिसाब से चलता है। हिन्दुओं के लिए अपना अलग कानून है। जिसमें शादी ,तलाक और सम्पतियों से जुड़ी बातें शामिल हैं। मुस्लिमों का अलग पर्सनल लॉ है और ईसाइयों का अपना पर्सनल लॉ है। समान नागरिक संहिता का मतलब है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना है। यह देश में एक समान कानून का आह्वान करता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के भाग 4 में समान नागरिक संहिता कोड का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है।

भारत में सिर्फ गोवा में यह समान नागरिक संहिता कानून लागू है। दरअसल 11869 ई. में पुर्तगाली गोवा और डेमन को केवल उपनिवेशों से प्रांतीय अल्ट्रामरीन यानी कि विदेशी कब्ज़ा का दर्जा दिए जाने के बाद गोवा नागरिक संहिता लागू की गई थी। यहां सभी धर्मों के लिए यही कानून है।

बता दें कि जिस देश में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code in Hindi) होती है वहां किसी भी प्रकार का वैमनस्य नहीं होता। वह देश तेजी से आगे बढ़ता है। देश में हर नागरिक पर एक ही कानून लागू होता है। इससे देश की राजनीति पर कोई असर नहीं होता। फिर कोई भी वोट बैंक की राजनीति नहीं कर पाता। चुनाव के समय वोटों का ध्रुवीकरण नहीं होता।

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लेकिन जो लोग इस कानून के खिलाफ हैं उनके भी कुछ तर्क हैं। उनका तर्क यह है कि इससे धार्मिक स्वतंत्रता का हनन होता है। जो धार्मिक समुदायों को अपने संबंधित व्यक्तिगत कानूनों का पालन करने की अनुमति नहीं देता है। उदाहरण के लिए अनुच्छेद 25 सभी धार्मिक समूह को अपने मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है। हालांकि इन तर्कों में कोई जान नहीं है। इसके साथ ही कुछ लोग यह भी मानते हैं कि विवाह, तलाक, भरण-पोषण, उत्तराधिकार आदि जैसे मामले धार्मिक मामले हैं और संविधान ऐसी गतिविधियों की स्वतंत्रता की गारंटी देता है और इसलिए यह कानून इसका उल्लंघन करता है।
 
भारत में 1985 में शाहबानो केस के बाद समान नागरिक संहिता मुख्य रूप से मुद्दा बना था। बहस इस बात की थी क्या कुछ कानूनों को बिना किसी का धर्म को देखें  सभी पर लागू किया जा सकता है ? शाहबानो केस मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पर सवाल उठाये गए थे। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड शरिया कानून पर आधारित है जो एक तरफ़ा तलाक ,बहुविवाह को बढ़ावा देता है। 

क्या है शाहबानो मामला?

Shah Bano Case in hindi

इस की कहानी यह है कि शाहबानो की शादी इंदौर निवासी मोहम्मद अहमद खान से हुई थी। खान बड़े रईस और बड़े वकील थे। दोनों के पांच बच्चे भी थे। पहली शादी के 14 साल बाद खान ने दूसरी शादी कर ली। कुछ समय तक दोनों पत्नियां साथ रही लेकिन बाद में 62 वर्षीयां शाहबानो को तलाक दे दिया गया। तलाक के समय खान ने शाहबानो को हर महीने 200 रूपये देने का वादा था पर बाद में 1978 में 200 रुपये भी बंद कर दिए गए।

तब शाहबानो ने खान के खिलाफ केस किया और अपने बच्चों के गुजारे के लिए 500 रुपये हर माह देने की मांग की। खान ने अपने बचाव में दलील दी कि पैसे देना उनकी जिम्मेदारी नहीं है क्योंकि अब वे पत्नी-पति नहीं हैं। उन्होंने इस्लामिक कानून का हवाला देते हुए दूसरी शादी को जायज बताया था। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने आदेश दिया कि खान को गुजारा भत्ता देना होगा। इसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता की बात की थी

Akhilesh Akhil

Political Editor

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