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Manipur Violence Latest Update: राहत शिविरों में रह रहे लोगों ने कहा ”मैं क्यों दूँ वोट ”,चुनाव का कोई महत्व नहीं !

Manipur Violence Latest Update: पूरे देश में लोकसभा चुनाव को लेकर लोकतंत्र की दुदुम्भी बज रही है। सबके अपने दावे है। सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी किसी भी सूरत में इस बार भी चुनाव जीतने की तैयारी में है। पीएम मोदी की हर जगह मंच सज रहे हैं। वे खूब भसहाँ दे रहे हैं। उनकी सभा में भीड़ भी खूब जम रही है। मोदी के भाषण में विपक्ष को खूब टारगेट किया जा रहा है। पूरा का पूरा माहौल बीजेपी मय बनाने की कोशिश तो की जा रही है लेकिन इंडिया गठबंधन की पानी भी कुछ कहानी है। यह बात और है कि पीएम मोदी के इकबाल के सामने इंडिया गठबंधन की राजनीति फीकी जरूर है लेकिन उसे कमजोर तो नहीं कहा जा सकता। इंडिया गठबंधन भी पूरी तैयारी के साथ मैदान में है और उसे इस बार के चुनाव से उम्मीद भी बहुत कुछ है।

पूरा उत्तर भारत जहाँ बीजेपी के नारों से गूंज रहा है वही दक्षिण भारत में इंडिया गठबंधन की दुदुम्भी बज रही है। लेकिन चुनावी खेल से इतर उधर पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में सब कुछ शांत है। मणिपुर में तो ऐसा लगता है मानो वहां कुछ हो ही रहा हो। नेताओं में कोई उमंग गई और नहीं जनता में। जनता अपनी जिंदगी को संजोने में लगे हैं। साल भर से ज्यादा हो गए मणिपुर आज भी हिंसा से ग्रस्त है। हर दिन कोई न कोई घटना घट जाती है और फिर ऐसा बवाल होता है मानो जिंदगी ही नष्ट हो गई।

देश के भीतर चुनाव की शुरुआत 19 अप्रैल से हो रही है। लेकिन मणिपुर में क्या होगा यह कोई नहीं जानता। हिंसा ग्रस्त लोग राहत शिविरों में रहने को अभिशप्त हैं। उनके बच्चो की पढ़ाई लगभग समाप्त हो गई है। ऐसे में सामने चुनाव को देखते हुए जिन लोगों में कुछ सम्भावना भी बची थी वे भी निराश है। वे चुनावी प्रक्रिया में भाग भी नहीं लेना चाहते। मणिपुर में दो लोकसभा के लिए चुनाव पहले और दूसरे चरण में होने है। पहले चरण का चुनाव 19 अप्रैल को है तो दूसरे चरण का चुनाव 26 अप्रैल को होना तय है। लेकिन पिछले साल भर से राहत शिविरों में रह रहे लोग इस चुनाव को लेकर काफी निराश हैं। लोगों का कहना है कि ”मैं उस जगह के प्रतिनिधि को चुनने के लिए वोट क्यों दूँ जो जगह मेरी है ही नहीं। चुनाव का हमारे लिए कोई महत्व नहीं है।”

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राहत शिविरों में रह रहे लोगों के बीच अगर इस तरह की बात मन में बैठ गई है तो इसे लोकतंत्र के लिए बड़ा ख़तरा माना जा सकता है। देश के भीतर ही कोई कैसे अलग विचार रख सकता है ? यह बड़ा सवाल है। लोग कहते हैं कि मतदान का अधिकार जरुरी है लेकिन उससे भी जरुरी है जीने का अधिकार। मतदान से अधिक शांति मायने रखती है।

बता दें कि देश के दूर भाग की अपेक्षा मणिपुर में मतदान का प्रतिशत ज्यादा ही रहा है। पिछले 2019 के लोकसभ चुनाव में यहाँ 82 फीसदी लोगों ने मतदान किया था। लेकिन इस बार जातीय हिंसा ने लोगों को तोड़ दिया है। किसी भी लोगों के मन में चुनाव को लेकर कोई उत्सुकता नहीं है। स्थानीय लोगों के साथ ही नागरिक समाज समूह चुनाव कराने की प्रासंगिकता पर सवाल खड़े कर रहे हैं।

शिविरों में रह रहे लोगों ने कहा है कि सरकार सम्मान के साथ जीने के मेरे अधिकार को भी सुनिश्चित नहीं किया है और अब वे वोट देने के अधिकार को सुनिश्चित करने की बात कर रहे हैं। हमारे घर हमारी आँखों के सामने जला दिए गए। हमें रातोरात वहां से भागना पड़ा। आज हमें यह भी नहीं पता कि अब वहा क्या बचा है ?इसलिए अब चुनाव म्हारे लिए कोई मायने नहीं रखते। यह सब नौटंकी है।

मणिपुर के राहत शिविरों में करीब 50 हजार से ज्यादा लोग रह रहे हैं। सरकार इनके मतदान के लिए विशेष मतदान स्थल की व्यवस्था की है। लेकिन अब इनके मन में चुनाव को लेकर कोई उल्लास ही नहीं बचा है।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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