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41 करोड़ से ज्यादा किताबें, 100 साल पुरानी संस्था, जानिए गीता प्रेस की पूरी कहानी

Gorakhpur gita press news: PM मोदी ने गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार के लिए चुने जाने पर बधाई दी। उन्होंने ट्वीट कर लिखा, गीता प्रेस ने 100 साल में लोगों के बीच सामाजिक और सांस्कृत परिवर्तन को आगे बढ़ाने की दिशा में काफी सराहनीय काम किया है।

गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित संस्था या व्यक्ति को एक करोड़ की राशि भी दी जाती है। गीता प्रेस अपनी परंपरा के मुताबिक, किसी भी सम्मान को स्वीकार नहीं करता है। बोर्ड मीटिंग में तय हुआ है कि परंपरा को तोड़ते हुए पुरस्कार स्वीकार किया जाएगा, लेकिन इसके साथ मिलने वाली धनराशि नहीं ली जाएगी।

आपको बता दें कि,गीता प्रेस हिंदू धार्मिक ग्रंथों की दुनिया की सबसे बड़ी पब्लिशर है। इसकी स्थापना UP के गोरखपुर में हुई थी। 29 अप्रैल 1923 को जय दयाल गोयनका,घनश्याम दास जलान और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने मिलकर किया था। गीता प्रेस की स्थापना का उद्देश्य सनातन धर्म के सिध्दांतों को बढ़ावा देना था। हनुमान प्रसाद पोद्दार गीता प्रेस की कल्याण नामक मैग्जीन के आजीवन संपादक भी थे।

अपनी स्थापना के पांच महीने बाद ही गीता प्रेस ने 600 रुपए में प्रिंटिंग मशीन खरीद ली थी। गीता प्रेस के आर्काइव में 3,500 से पांडुलिपियां मौजूद हैं।

41 करोड़ से भी ज्यादा किताबें छापीं

गीता प्रेस गोविंद भवन कार्यालय की एक यूनिट है, जिसे सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत रजिस्टर्ड किया गया था। जानकारी के मुताबिक, गीता प्रेस अब तक 41.7 करोड़ से ज्यादा किताबें छाप चुका है।ये किताबें हिंदी के अलावा मराठी, गुजराती, ओडिय, तेलुगु, संस्कृत, कन्न्ड़, नेपाली, अंग्रेजी, बांग्ला, तमिल, असमिया और मलयालम समेत भाषाओं में हैं।

गीता प्रेस अब तक करीब 16.21 करोड़ से ज्यादा कॉपियां छाप चुका है। इसके अलावा 11.73 करोड़ तुलसी रचनाएं और 2.68 करोड़ पुराण और उपनिषद की कॉपिया छापी हैं।

गीता प्रेस क्या क्या छापती है?

गीता प्रेस में हिंदू धार्मिक ग्रंथों की छपाई होती है। इनमें श्रीमद्भगवद्गीता, रामचरितमानस, रामायण, पुराण, उपनिषद, तुलसीदास और सूरदास के सहित्य छपते हैं।इसके अलावा बच्चों के लिए धर्म की समझ बढ़ाने वाली किताबें भी यहां छपती हैं।ये संस्था अब तक बच्चों के लिए 11 करोड़ से ज्यादा किताबें छाप चुकी है। गीता प्रेस हर महीने कल्याण नाम से एक मैग्जीन भी निकलती है। इसमें भक्ति, ज्ञान, धर्म योग, वैराग्य, आध्यात्म जैसे विषय होते हैं। साथ ही हर साल किसी खास विषय या शास्त्र को कवर करने वाला विशेष अंक भी निकला है।

गांधी शांति पुरस्कार और गीता प्रेस

गांधी शांति पुरस्कार की शुरुआत 1995 में केंद्र सरकार की ओर से की गई थी।हर साल ये अवॉर्ड महात्मा गांधी के आदर्शों के प्रति याद के तौर पर दिया जाता है। जरुरी नहीं कि ये अवॉर्ड भारतीय संगठन को ही या भारतीयों को ये अवॉर्ड मिले,ये अवॉर्ड किसी को भी मिल सकता है।

इस पुरस्कार के तहत एक करोड़ रुपए की रकम, प्रशस्ति पत्र और एक पटिट्का दी जाती है। इसरो, रामकृष्ण मिशन, बांग्लादेश के ग्रामीण बैंक, विवेकानंद केंद्र, अक्षय पात्र, एकल अभियान ट्रस्ट और सुलभ इंटरनेशनल जैसी संस्थानों को ये पुरस्कार मिल चुका है।

कांग्रेस ने गीता गीता प्रेस को ये पुरस्कार दिए जाने की निंदा की कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्विट कर कहा, 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर की गीता प्रेस को दिया जा रहा है। अक्षय  मुकुल की 2015 में बहुत अच्छी बायोग्राफी आई थी। इसमें उन्होंने गीता प्रेस के महात्मा के साथ सामाजिक और धार्मिक एजेंडे पर उनके साथ चली लड़ाइयों का खुलासा किया है।जयराम रमेश ने आगे लिखा, ये फैसला वास्तव में उपहास है और सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है।

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