सत्ता गई और Nepali Congress में घमासान पर India की निगाहें !
देउबा ने अपने बचाव में पार्टी प्रवक्ता प्रकाश शरण महत को आगे किया। महत ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर देउबा की भूमिका का बचाव किया और गठबंधन टूटने के लिए दहल के अवसरवाद को दोषी ठहराया। उन्होंने दावा कि ‘अवसरवादी ताकतों’ के मेल से मिली नई सरकार ज्यादा दिन नहीं टिकेगी।
मोदी सरकार (Modi Government) की नजर नेपाल की हर एक घटना पर टिकी है। नेपाल की हर घटना भारत को प्रभावित करता है इसलिए नेपाल के भीतर की राजनीति भारत के लिए अहम् हो जाती है। खासकर जबसे नेपाल चीन के साथ जाता दिख रहा है और नेपाल की मौजूदा सरकार चीन के ज्यादा नजदीक है ,ऐसे में नेपाली कांग्रेस (Nepali Congress) के भीतर चल रहे उथल पुथल के खेल भारत को और भी आकर्षित करते हैं। खबर के मुताबिक नेपाली कांग्रेस को उम्मीद थी कि नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के साथ मिलाकर वह सरकार बना लेगी। लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सका। कम्युनिस्ट पार्टी के नेता पुष्प कमल दहल उर्फ़ प्रचंड ने कांग्रेस गठबंधन से निकलकर पूर्व प्रधानमंत्री ओली (former prime minister oli) के साथ जा मिले और प्रधानमंत्री बन गए। भारत के लिए यह झटका ही था। लेकिन अब नेपाल की राजनीति में जो होता दिख रहा है वह और भी गंभीर है। लगता है नेपाली कांग्रेस में टूट होगी और ऐसा हुआ तो भारत की परेशानी बढ़ सकती है। याद रहे नेपाली कांग्रेस और उसके नेता शी बहादुर देउआ भारत के साथ हमेशा सम्बन्ध बनाये रखना चाहते हैं। बता दें कि सत्ता हाथ से निकलने के दो हफ्तों के अंदर नेपाली कांग्रेस पार्टी के अंदर गृह युद्ध जैसा माहौल बन गया है। 25 दिसंबर की सुबह तक यह तय माना जा रहा था कि नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन नई सरकार बनाएगा। लेकिन प्रधानमंत्री पद को लेकर नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (Communist Party of Nepal) (Maoist Center) के नेता पुष्प कमल दहल में ऐसा झगड़ा खड़ा हुआ कि दोपहर बाद तक गठबंधन बिखर गया। तब से देउबा (deuba) विरोधी गुटों ने पूर्व प्रधानमंत्री को पार्टी प्रमुख पद से हटाने की मुहिम छेड़ रखी है।
देउबा ने अपने बचाव में पार्टी प्रवक्ता प्रकाश शरण महत को आगे किया। महत ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर देउबा की भूमिका का बचाव किया और गठबंधन टूटने के लिए दहल के अवसरवाद को दोषी ठहराया। उन्होंने दावा कि ‘अवसरवादी ताकतों’ के मेल से मिली नई सरकार ज्यादा दिन नहीं टिकेगी।
लेकिन नेपाली कांग्रेस में देउबा विरोधी गुट ऐसी दलीलों को सुनने के लिए तैयार नहीं दिखते। पार्टी सूत्रों के मुताबिक वरिष्ठ नेता शेखर कोइराला और पार्टी महासचिव गगन थापा आर-पार की लड़ाई लड़ने के मूड में हैं। कोइराला-थापा गुट ने गुरुवार को एक बैठक कर अपनी रणनीति को आखिरी रूप दिया। नेपाली कांग्रेस के संसदीय दल की बैठक शनिवार को है। अनुमान है कि इसमें यह गुट देउबा पर सीधा हमला बोलेगा।
नेपाली कांग्रेस की केंद्रीय कार्यसमिति की बैठक 12 जनवरी को है। संभव है कि उसमें भी देउबा गुट और कोइराला-थापा गुटों के बीच सीधा टकराव हो। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कोइराला-थापा गुट ने रणनीति बनाई है कि इन बैठकों में पार्टी के हाथ से सत्ता निकलने का सारा दोष देउबा पर डाला जाएगा। यह गुट आरोप लगाएगा कि प्रधानमंत्री बनने की देउबा की जिद के कारण न सिर्फ पार्टी के नेतृत्व वाला गठबंधन बिखर गया, बल्कि राष्ट्रपति और प्रतिनिधि सभा के स्पीकर जैसे महत्त्वपूर्ण पद भी उसके हाथ से फिसल गए।
देउबा विरोधी गुट के नेता अर्जुन नरसिंह केसी ने अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा- ‘अगर देउबा गुट अपनी गलती और जिम्मेदारी नहीं स्वीकार करता है, तो हम पार्टी का नीति सम्मेलन बुलाने की मांग करेंगे, ताकि पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के सामने अपना रुख विस्तार से बता सकें। अगर नीति सम्मेलन में असंतुष्ठ खेमे की राय शामिल नहीं की जाती है, तो हम नेतृत्व को पार्टी का विशेष अधिवेशन बुलाने के लिए मजबूर कर देंगे।’
आगे नेपाल में क्या घटनाये घटती है इस पर सबकी निगाहें तो है ही ,खासकर भारत सरकार की भी निगाहें टिकी है। चीन किसी भी सूरत में देउआ की राजनीति को कमजोर करना चाहता है जबकि भारत हमेशा नेपाल के विकास के साथ खड़ा रहा है। दोनों देशों के बीच बेटी और रोटी का सम्बन्ध है लेकिन एक दशक से नेपाल भारत से दूर चीन के नजदीक जाता दिख रहा है। नेपाली कांग्रेस के भीतर आज जो भी कुछ हो रहा है उसमे चीन की भूमिका को अहम् माना जा रहा है।