जातियों पर आधारित देश की राजनीति का सच यही है कि कोई भी पार्टी आजतक विकास के नाम पर चुनाव नही लड़ती है। सत्तारूढ़ पार्टी सरकार में रहते हुए कहती है कि देश में सबसे ज्यादा विकास उसी ने किया है। लेकिन चुनाव की बारी आती है तो एजेंडा विकास से हटकर जाति पर केंद्रित हो जाता है। यह काम कांग्रेस भी करती थी और आज बीजेपी भी कर रही है ।क्षेत्रीय दलों की तो बात ही मत पूछिए। उसकी राजनीति तो जाति आधारित रही है।
इधर जहां बीजेपी को मात देने के लिए विपक्षी पार्टियां एक होकर मंडल को राजनीति को उभारने में लगी है वही बीजेपी हिंदुत्व के सहारे आगे बढ़ रही है। लेकिन एक बड़ा सच ये भी है बीजेपी हिंदुत्व और ओबीसी की राजनीति सबसे ज्यादा करती है और इसका लाभ भी उसे मिलता रहा है। पिछले दो चुनाव के आंकड़े को देखिए तो बीजेपी के पक्ष में सबसे ज्यादा वोट ओबीसी समुदाय से ही आए है। विपक्षी और खासकर क्षेत्रीय दलों को भी बीजेपी ने ओबीसी वोट में पछाड़ दिया है।
विपक्षी दल अब जातिगत जनगणना की मांग कर रहे है। उसकी राजनीति यह है कि अभी तक ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलता रहा है लेकिन एक बड़ा सच यह है कि ओबीसी का जो वर्ग आरक्षण का लाभ लेता रहा है उसने कुछ जातियां ही सबसे आगे रही है। बाकी जातियों को इसका लाभ न के बराबर मिलता रहा है। बता दें कि मौजूदा समय में ओबीसी की आबादी 52 फीसदी बताई जाती है। हालाकि यह आंकड़ा भी दशकों पुराना है। लेकिन इसी आंकड़े को माना जाए तो 52 फीसदी आबादी को 27 फीसदी आरक्षण का लाभ कैसे दिया जा सकता है। नियम के मुताबिक तो यह आरक्षण 27 फीसदी से ज्यादा होना चाहिए था। लेकिन अभी ऐसा ही चल रहा है ।
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बीजेपी को पता था कि आने वाले समय में ओबीसी की राजनीति काफी अहम होगी। उसे यह भी पता था कि ओबीसी आरक्षण का लाभ कुछ जातियां ही उठाती रही है। इसलिए बीजेपी ने सभी ओबीसी को अपनी आबादी के मुताबिक आरक्षण देने के लिए रोहिणी आयोग का गठन किया। यह असयोग 2017 में बना और इसका काम था यह पता लगाना कि पिछड़ी जातियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति क्या है। आयोग को यह भी करना था कि पिछड़ी जातियों में सबसे ज्यादा लाभ किसे मिला।इसके साथ ही आयोग को यह भी पता करना था की पिछड़ी जातियों में कितनी ऐसी जातियां है जिन्हे आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है। कुल मिलाकर इस आयोग का बड़ा काम था।और कह सकते हैं कि इस आयोग का मुख्य काम पिछड़ी जातियों में कई श्रेणी को चिन्हित करना था ताकि पता चले कि कौन सी जातियां ज्यादा लाभ ले रही है और किसे लाभ नहीं मिल रहा है। यानी ओबीसी आरक्षण को सब कैटोगरी में बांटना था। बता दें कि ओबीसी में करीब 3 हजार से ज्यादा जातियां है।
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पहले इस आयोग को साल भर के भीतर अपनी रिपोर्ट देनी थी लेकिन ऐसा नही हुआ। 13 बार इस आयोग का विस्तार हुआ लेकिन रिपोर्ट नही आई। लेकिन अब जाकर रोहिणी आयोग की रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी गई है। जस्टिस रोहिणी दिल्ली हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस रह चुकी है और इन्ही की देखरेख में रिपोर्ट तैयार को गई है। अब इस रिपोर्ट में क्या कुछ कहा गया है अभी इसकी जानकारी नहीं मिली है। लेकिन इतना तो साफ है कि इस रिपोर्ट के बाद जातीय खेल और बड़ा होगा। बीजेपी इस रिपोर्ट पर अब क्या कुछ करती है देखना होगा क्योंकि इस रिपोर्ट की अधिकतर बाते वही होंगी जो उसका लक्ष्य निश्चित किया गया था। विपक्ष लगातार जाति जनगणना की मांग कर रहा है। ऐसे में यह रिपोर्ट राजनीति को और भी गर्म कर सकती है।