Poll Panel Selection: मौजूदा समय में केंद्र सरकार का यही मानना है कि वह जो भी कर रही है वह सब ठीक है और सरकार कोई भी फैसला राष्ट्र निर्माण के लिए ही करती है और जो लोग सरकार के निर्णय का विरोध करते हैं या तो उन्हें देश की समझ नहीं है या फिर जनता के विरोधी हैं। ये तमाम तरह की बातें आज के दौर में कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रही है। मामला चुनाव आयोग (Election Commission) से जुड़ा है। मोदी सरकार ने राज्यसभा में गुरुवार को मुख्य निर्वाचन आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के चयन से सम्बंधित एक बिल पेश किया है। इस विधेयक के मुताबिक भविष्य में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमिटी करेगी। इस कमिटी में प्रधानमंत्री, एक कोई कैबिनेट मंत्री और एक विपक्ष का नेता होगा। लेकिन अब विपक्षी दलों द्वारा इस बिल का विरोध किया जा रहा है।
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दरअसल अभी कुछ महीने पहले ही चुनाव आयोग (Election Commission) में हो रही नियुक्तियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला दिया था कि अब से जो भी नियुक्ति होगी उसमें तीन सदस्य शामिल होंगे। एक प्रधानमंत्री होंगे, दूसरा विपक्ष का नेता होगा और तीसरा सीजेआई होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों के लिए संसद की ओर से कानून न बनाये जाने तक प्रधानमंत्री लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और सीजेआई की सदस्यता वाली समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा इन चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति की जाएगी।
लेकिन जो बिल राज्य सभा में पेश किया गया है उसमें सीजेआई को हटाकर एक केंद्रीय मंत्री को जोड़ा गया है। कह सकते हैं कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में केंद्र सरकार सीजेआई का हस्तक्षेप नहीं चाहती। इसी वजह से इस बिल का विरोध हो रहा है। हालांकि इस बिल के पास होने के बाद देश की राजनीति किधर जाएगी इसे भी देखने की जरूरत है लेकिन इतना साफ़ है कि केंद्र सरकार और शीर्ष अदालत के बीच अब टकराव की सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। विपक्ष का कहना है कि केंद्र सरकार लगातार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को पलट रही है और अदालत के फैसले का अपमान भी कर रही है।
बता दें कि बीजेपी अभी स्थिति में है वह कोई भी कानून बनाने की ताकत रख रही है। पूर्ण बहुमत में होने की वजह से सरकार ने कई कानून को बनाया है और अदालत के कई फैसलों को पलटा भी है। दिल्ली सेवा बिल लेकर भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदला गया। लेकिन एक बड़ी बात यह है कि जो बीजेपी आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले बदल रही है और नयी व्यवस्था में सीजेआई को तीन सदस्यीय टीम से हटाने को तैयार है, एक समय ऐसा भी था जब पार्टी के बड़े नेता आडवाणी ने खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से कहा था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में सीजेआई की सहभागिता हो। आडवाणी ने अपने पत्र में लिखा था कि ”मौजूदा प्रणाली जिसके तहत चुनाव आयोग (Election Commission) के सदस्यों काे राष्ट्रपति नियुक्त करते हैं उसमें सिर्फ प्रधानमंत्री की सलाह ली जाती है। जिसे लोगों में विश्वास पैदा नहीं होता। ऐसे जरुरी फैसले को सत्ताधारी पार्टी के विशेष अधिकार के तौर पर रखने से चयन प्रक्रिया में हेरफेर और पक्षपात की संभावनाएं बढ़ जाती है। इसलिए प्रक्रिया में संशोधन करने का वक्त आ गया है।”