Safalta Ki Kunji Motivational Thoughts! जिस तरह जीवन जीने के लिए सांस लेना जरूरी है, उसी तरह प्रेम जरूरी है। बिना प्रेम के आप जिंदा नहीं रह सकते। जब तक आप दूसरों से प्रेम नहीं करेंगे, तब तक इस जीवन में सफल नहीं हो पाएंगे। क्योंकि प्रेम ही आपको आगे बढ़ने का रास्ता दिखाता है और सफलता तक पहुंचाता है। प्रेम ही आगे बढ़ने की ऊर्जा और मार्ग दिखाता है।
प्रेम क्या है? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके समाधान की खोज प्राचीन काल से चली आ रही है। हर युग में आए दार्शनिकों ने भी प्रेम के स्वरूप की व्याख्या करने के अनेक प्रयत्न किए हैं। ‘प्रेम’ शब्द का प्रयोग हममें से अधिक लोग भिन्न-भिन्न संबंधों के प्रति अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिए करते हैं। जैसे माता-पिता और बच्चे में प्यार होता है तो भाई-बहन और रिश्तेदारों का भी आपस में प्यार होता है। मित्रों में प्रेम होता है। देश के प्रति भी प्रेम होता है। बहुत बार हमें अपनी संपत्ति के साथ भी लगाव होता है। पालतू जानवरों से भी लोगों को स्नेह होता है। आमतौर पर जब प्रेम के बारे में विचार किया जाता है तो हम स्त्री-पुरुष के आपसी प्रेम के बारे में विचार करते हैं।
कई बार हम सारी मानवजाति और सृष्टि के प्रेम के बारे में भी बात करते हैं। लेकिन प्रेम के हर रूप में कुछ न कुछ गुण एक जैसे होते हैं। जैसे कि इस संसार की किसी वस्तु के प्रति प्रेम के मामले में उस वस्तु से मोह होता है। जिसे हम प्रेम करते हैं उसकी हमें बहुत आवश्यकता होती है। उसके लिए हम अपने दिल में गहरा लगाव रखते हैं और हमें यह डर लगा रहता है कि कहीं वह वस्तु हमसे खो न जाए। चाहे प्रेम अपने परिवार के प्रति हो या मित्रों के प्रति, चाहे प्रेमी के प्रति हो या अपने सामान और अपने देश के प्रति, उसमें प्रेम के ये गुण हमेशा मौजूद रहते हैं।
संत-महापुरुष कहते हैं कि इस दुनिया का बाहरी प्रेम महज कुछ वक्त के लिए ही रहता है। इसके विपरीत यदि हम सदा-सदा का प्रेम पाना चाहते हैं तो वह हमें केवल प्रभु से ही मिल सकता है। प्रभु के प्रति प्रेम को अनुभव करने के लिए हमें संपूर्ण सृष्टि के प्रति प्रेम को अपने अंदर जगाना होगा। हममें से अधिकतर लोग अपने परिवार और मित्रों के छोटे से दायरे के प्रति ही प्रेम रखते हैं। पर जैसे-जैसे हम आध्यात्मिक तौर पर प्रगति करते हैं तो हमारा हृदय विशाल होने लगता है और हम अपने समुदाय, समाज, देश और संपूर्ण भूमंडल के प्रति प्रेम का विकास करने लगते हैं। प्रेम की अंतिम अवस्था ब्रह्मांड की समस्त सृष्टि के लिए प्रेम होना है।
हमें अपने परिवार और मित्रों से प्रेम होने पर जिस आनंद का अनुभव होता है उसका तो हमें अंदाजा है। यदि हम उस प्रेम को इतना फैला दें कि समस्त सृष्टि से हमें प्यार हो जाए तो हम स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि तब हमारे हृदय में कितना अधिक प्रेम होगा। ऐसा प्रेम पवित्र और आध्यात्मिक होता है। ऐसा ही प्रेम प्रभु को अपनी सृष्टि से होता है क्योंकि प्रेम दिव्य, ईश्वरीय और एक आध्यात्मिक गुण है। दिव्य-प्रेम में आत्मा को अपने पालनकर्ता, परमात्मा में फिर से एकमेव होने की आध्यात्मिक लगन होती है।
कहा जाता हैं भगवान सब आत्माओं के पिता है। जब वे आत्माएं इस जगत में एक जीवन से दूसरे जीवन में गुजरती हैं, तो प्रभु प्रत्येक आत्मा को याद करते हैं क्योंकि वह प्रत्येक आत्मा से प्रेम करते हैं और हरेक का ध्यान रखते हैं। इस बात का अंदाजा लगाना हमारे लिए कठिन नहीं है। एक से अधिक बच्चे होने पर भी माता-पिता अपने प्रत्येक बच्चे से प्रेम करते हैं। प्रभु सदा इंतजार कर रहे हैं कि आत्मा कब अपना ध्यान उनकी ओर लगाए और उनके पास वापस घर लौटें।