Political News NDA vs INDIA: कहानी वही पर आ टिकी है मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच और इन बड़े दलों को के साथ खड़े हैं विभिन्न प्रदेशों के सुरमा। कभी ये सभी सुरमा कांग्रेस के साथ थे तो कही समाजवाद का पटाखा फहरा रहे थे। बाकी के बहुत से दल तो आज के हैं जिनको आज भी राष्ट्रीय राजनीति से कोई लेना देना नहीं। उनकी राजनीति जाति से शुरू होती है और जाति पर ही ख़त्म होतीं है। अब तक यही सब चल रहा था। लेकिन अब 21 सदी का दौर है। लोग बदले हैं तो राजनीति भी बदली है लेकिन राजनीति करने वाले का चरित्र आज भी वही हैं। बांटो और राज करो। ठगो और चुनाव जीतो। धर्म ,भगवान् मंदिर ,मस्जिद ,मुसलमान ,जाति ,अगड़ा और पिछड़ा यही चुनावी खेल है। इससे आगे कोई नहीं बढ़ रहा। कहने को कांग्रेस सबसे पुरानी पर्त्य है लेकिन मौजूदा समय में सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी है और आज कांग्रेस कही दिख नहीं रही। जिधर देखों उधर ही बीजेपी के पौ बारह है। झूठ का बोलबाला है और मीडिया मिमिया रही है। पहले जो मीडिया शान से किसी के खिलाफ बोलने और लिखने को आतुर रहती थी आज उसके पाँव में बंधन है फिर भी उसके मुँह से आह तक नहीं निकल रहा ही .यह एक बड़ा परिवर्तन है और यही परिवर्तन लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा घातक है।
तो कहानी यही है कि बीजेपी को हराने के लिए इंडिया गठबंधन की रचना की गई थी। विपक्षी दलों ने एक साथ बैठक, जब बैठके की तो पता चला कि अगर गठबन्धन मजबूत बना रहा तो बीजेपी को हारने में कोई मुश्किल नहीं होगी। सब कुछ चलता रहा ,बढ़ता रहा। लेकिन जिस समय इंडिया गठबंधन क ऐलान हुआ उसी समय बीजेपी परेशान हो गई। संघ के मुँह उतर गए और हिंदूवादी शक्तियां जान गई कि आने वाले समय में अब उनका सब कुछ बिगड़ सकता है। देश के कोने -कोने में बैठके हुई। संघ ने बीजेपी का कान फूंका और फिर तय हो गया कि आगे बढ़ना है तो इंडिया गठबंधन को तोड़ो। कुछ ने ऐतराज जताय तो कहा गया कि जंग और प्यार में सब कुछ जायज है। अब हीउ नहीं करोगे तो सब कुछ नाश होगा। ,जेल भी जाना पडेगा। जिसको जेल भेज रहे हो कल वही तुमको भेज देगा।
सब कुछ रतय हो गया। जाँच एजेंसियों को कह दिया गया। जांच एजेंसियां आखिर क्या है ? राजनीति की कठपुतली। जिसका राज उसकी एजेंसी। बाकि सब देखा जयेगा। एक के बाद एक खेल शुरू हुआ। सबसे पहले जिस नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन की शुरुआत की वही बीजेपी के साथ चले गए। आज भले ही देश और बिहार के लोग उनके ऊपर कई के शहमात लगा रहे हों लेकिन सच तो यही है कि वह भी राजनीति ही करते हैं और राजनीति का चरित्र ही दोहरा होता है। जो दोहरा चरित्र का नहीं वह भला राजनीति क्या करेगा ?
बीजेपी की प्लानिंग आगे बढ़ी। सबको सतर्क किया गया। सारे कांटे बैठाये गए। नीतीश के बाद कुछ लोगों को भारत रत्न देकर खेल की शुरुआत की गई। फिर यूपी में जयंत चौधरी को साधा गया और उसे बीजेपी अपने साथ ले गई। जयंत भी हँसते हँसते चले गए। वे बिक गए। कभी कहते थे कि वे चवन्नी नहीं है कि इधर -उधर चले गए हैं। सूना है कि लोकसभा की दो सीट और राज्य सभा की एक सीट के साथ ही यूपी मंत्रिमंडल में दो लोगों को मंत्री बनाने की डील ने जयंत को बीजेपी के पास ले गया।
एनडीए का कुनबा अब आगे बढ़ने लगा है। पहले जो दल एनडीए के साथ थे उसमे कोई दम नहीं था। दो दर्जन से ज्यादा दलों के पास तो कोई सांसद भी नहीं है और दर्जन भर से जयदा दल तो आज तक लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़े हैं। जयंत के बाद केजरीवाल को भी साधा गया है। अब केजरीवाल एनडीए के साथ तो नहीं जायेंगे लेकिन वे पंजाब और दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ेंगे। पहले कांग्रेस के सातरः मिलकर चुनाव लड़ने वाले थे। इस खेल से बीजेपी को लाभ होना तय है। और यह सब इसलिए हो रहा है कि बीजेपी के पास सत्ता है और जांच एजेंसियां है और बड़ा सच यही है सभी दल लूट की सहभागी है। भला कौन बचेगा .आज इसकी बारी है कल उसकी बारी आएगी।
बीजेपी की कोशिश भी भी यही है ममता ,नीतीश डीएमके ,झामुमो,अकाली ,शिवसेना सब एनडीए में आ जाए। कोशिश भी जारी है कल क्या होगा कोई नहीं जानता। मौजूदा सच यही है कि अब बीजेपी की नजर अकाली और उद्धव शिवसेना पर है। बातचीत चल भी रही है। अगर कोई बड़ा ऐलान जल्द ही हो जाए तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं। कालो तक जो गलियां देते थे वे अचानक गीत गाने लगेंगे और इस ठगिनी राजनीति के भी इसी देश की जनता जैकारे लगने को अभिशप्त हो जाएगी। इसलिए इन्तजार कीजिये। बीजेपी का कुनबा और भी बड़ा होने वाला है। जब ममता ,उद्धव ,नविन पटनायक और चन्द्रबाबू नायडू और सुखबीर सिंह बदल एनडीए के साथ हो लेंगे तो फिर कांग्रेस की औकात ही क्या होगी। बड़े गिरोह के सामने भला छोटा और कमजोर गिरोह कहाँ टिक पायेगा ?