UP By Election Results 2024: सपा के गढ़ में भाजपा ने कैसे मारी बाजी!
लोकसभा चुनाव 2024 में पीडीए राजनीति के जरिए भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती पेश कर रहे अखिलेश यादव की उपचुनाव में एक नहीं चली। भाजपा सात सीटों पर जीती। वहीं, सपा के खाते में केवल दो सीटें आईं।
UP By Election Results 2024: यूपी उपचुनाव के नतीजों से हर कोई हैरान है। लोकसभा चुनाव 2024 में पीडीए राजनीति के जरिए भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती पेश कर रहे अखिलेश यादव की उपचुनाव में एक नहीं चली। भाजपा सात सीटों पर जीती। वहीं, सपा के खाते में केवल दो सीटें आईं।
लोकसभा चुनावों (Loksabha election) में SP के मुखिया अखिलेश यादव ने जिस PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की बदौलत 37 सीटों पर जीत हासिल की थी। महज 6 महीने बाद हुए उपचुनावों में अखिलेश यादव का वही PDA फॉर्म्युला धराशायी हो गया। SP नेता अखिलेश यादव ने इन चुनाव में भी PDA फॉर्मूला चलने की कोशिश की लेकिन मायावती, चंद्रशेखर और ओवैसी की पार्टियों ने अखिलेश यादव के हिस्से के वोट काटे और बीजेपी की जीत का रास्ता साफ हो गया। वहीं लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को बड़ी संख्या में दलित वोटों मिले थे। साथ ही मुस्लिम वोटों का भी बंटवारा नहीं हुआ था।
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यूपी की जिन 9 सीटों पर उपचुनाव हुए, वहां चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी ने बड़ी संख्या में दलित वोट अपने पक्ष में कर लिए। नतीजतन, समाजवादी पार्टी को 2022 के विधानसभा चुनाव में जीती हुई सीटों में से कटहरी और कुंदरकी दो सीटें गंवानी पड़ीं। वहीं एसपी की परंपरागत सीट करहल में जीत का अंतर सिमटकर 14,000 तक आ गया। कानपुर की सीसामऊ विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी ने करीब 8000 वोटों से जीत हासिल की।
क्या रहे एसपी के हार के कारण?
समाजवादी पार्टी ने फूलपुर, सीसामऊ, कुंदरकी और मीरापुर में चार मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा, जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा। सीसामऊ को छोड़कर अन्य सीटों पर हिंदू मतदाता ज्यादा हैं, इसलिए ये सीटें बीजेपी की ओर चली गईं। यहां पर सीएम योगी का ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा चल गया।
फूलपुर सीट पर भी मुस्लिम प्रत्याशी उतारने का निर्णय किसी को भी हजम नहीं हुआ। कांग्रेस ये सीट एसपी से मांग रही थी। अखिलेश ने लोकसभा चुनावों में जिस तरह से जाति के हिसाब से टिकट बंटवारा किया था। वैसा उपचुनाव में न करना एसपी के लिए भारी पड़ा।
टिकट बंटवारे में परिवारवाद हावी
करहल विधानसभा सीट से तेज प्रताप यादव, सीसामऊ से पूर्व विधायक इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी और अंबेडकर नगर की कटेहरी सीट से सांसद लालजी वर्मा की पत्नी शोभावती वर्मा उन तीन पारिवारिक सदस्यों में शामिल हैं जिन्हें राज्य की नौ सीटों में से तीन के लिए टिकट दिया गया है।
राजनीतिकारों का मानना है कि कार्यकर्ताओं के बीच परिवारवाद हावी रहा और ये मैसेज जनता के बीच सही तरीके से नहीं गया। वहीं इसी साल हुए लोकसभा चुनावों (Loksabha election) में समाजवादी पार्टी ने जातीय क्षत्रपों को टिकट देकर जीत हासिल की थी।
एकला चलो का चुना रास्ता
उपचुनाव के नतीजों से ये भी साफ हो गया कि अखिलेश का गठबंधन को तरजीह ना देना भारी पड़ गया। अखिलेश ने इंडिया गठबंधन के लड़ने की बात तो कही। मगर इंडिया गठबंधन के प्रमुख दल कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में वो सीटें नहीं दी। जो कांग्रेस चाहती थी। जिसकी वजह से अंदरखाने कांग्रेस के नेताओं ने भी इस चुनाव से दूरी बनाई।
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एसपी ने सात सीटों पर एकतरफा तौर पर प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया। जबकि कांग्रेस फूलपुर सीट पर उपचुनाव लड़ना चाहती थी। जानकार मानते हैं कि यदि कांग्रेस यह सीट जीतती और सपा के साथ मजबूती से चुनाव लड़ती तो परिणाम अलग होते।
आजाद समाज पार्टी से नुकसान
लोकसभा चुनावों (loksabha election) में समाजवादी पार्टी (samajwadi party) को मिली सफलता का एक बड़ा कारण था कि SP प्रत्याशी को उसकी जाति के साथ-साथ बड़े पैमाने पर दलित वोट मिले थे। साथ ही मुस्लिम वोटरों में भी किसी तरह का बंटवारा नहीं हुआ था। मगर उपचुनाव में ऐसा नहीं हो सका। उपचुनावों में समाजवादी पार्टी (Samajwadi party) को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया चन्द्रशेखर की आजाद समाज पार्टी ने…. जिसने सीसामऊ को छोड़कर सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे।
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