Karnataka Politics: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और दक्षिण कन्नड़ से पांच बार के विधायक यूटी खादर आज सर्वसम्मति से कर्नाटक विधानमंडल के अध्यक्ष चुन लिए गए। कर्णाटक के विधायकी इतिहास में खादर पहले ऐसे नेता हैं जो अध्यक्ष पद पर चुने गए हैं। विपक्ष के नेता बसवराज बोम्मई ,कर्नाटक के सीएम सिद्धरमैया और शिवकुमार खादर अध्यक्ष की पीठ तक गए। बता दें कि खादर के खिलाफ बीजेपी और जेडीएस ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था।
सीएम सिद्धरमैया ने कहा है कि आपके पिता एक विधायक थे और आपने सदन में सड़ना वीरा पुरस्कार जीता था। हम सभी यह भी जानते हैं कि आप बेहतरीन विधायक हैं। स्पीकर के पद पर बैठने वाले लोगों को पार्टी लाइन से हटकर काम करना चाहिए। विधान सभा में वरिष्ठ के युवा नेता भी हैं। राज्य में कई समस्याएं है। राज्य में कानून और व्यवस्था को बनाये जाने की जरूरत हैं और साथ करोड़ कन्नड़ लोगों का कल्याण किया जाना है। सीएम ने कहा कि अगर कानून और व्यवस्था सुनिश्चित नहीं होगी तो यहाँ कोई निवेश नहीं होगा। निवेश नहीं होगा तो उद्योग नहीं लगेंगे। उद्योग के अभाव रोजगार का सृजन नहीं होगा। सब एक दूसरे पर निर्भर है। इस पर सदन में चर्चा होनी चाहिए। रचनात्मक सुझाव देने होंगे। आप के कॉल और निर्णय पुरे सिस्टम को प्रभावित करेगा। आपको संतुलित होना चाहिए।
बसवराज बोम्मई भी बहुत कुछ बोले। उन्होंने कहा कि आपके पास बीस साल का लम्बा अनुभव है। आप एक प्रगतिशील आदमी हैं। आपने विधायक और मंत्री के रूप में भी काम किया है। आपने कभी धैर्य नहीं खोया। आप विपक्षी दल के उपनेता भी रहे। जो लोग इस कुर्सी पर बैठते हैं उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया। इसे ख्याति ही दिलाई। संविधान में इस पद का बड़ा महत्व है। आपको निष्पक्ष तरीके से काम करना होगा। आपने अपने क्षेत्र में सभी धर्मों और जातियों को साथ लेकर चले हैं। आप सभी के प्रति सम्मान भी रखते हैं। हमें विश्वास है कि आप सभी को साथ लेकर चलेंगे।
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बता दें कि खादर ने स्नातक और एलएलबी किया है। उनको बाइकिंग और कार रेसिंग का शौक है। उन्होंने राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर की चैम्पियनशिप में भी हिस्सा लिया है। वे एक बेहतरीन खेल प्रेमी हैं और क्रिकेट ,फुटबॉल ,हॉकी और टेनिस के खिलाड़ी भी हैं। खादर 1990 में एनएसयूआई के जिला महासचिव बने थे। उन्होंने 1994 से 1999 के बीच दक्षिण कन्नड़ जिला अध्यक्ष के रूप में भी काम किया। 2008 में खादर कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमिटी के सचिव बने थे। फिर 2008 में जब उनके पिता की मृत्यु हो गई तो खाली सीट का उन्होंने प्रतिनिधित्व किया और आज तक वे चुनाव जीतते रहे हैं। उन्हें सदना वीरा पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।