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गए थे राहुल को सजा दिलाने लेकिन कोर्ट से दंडित होकर लौटे

Political News: चरित्रहीन राजनीति में नेता कितने चरित्रहीन हो जाते हैं इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। किसी भी पार्टी में ऐसे नेताओं की भरमार है जो अपने शीर्ष नेता को खुश करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। यह बात और है कि ऐसे नेताओं के बारे में समाज में एक धरना तो बन ही जाती है लेकिन पार्टी के भीतर उसकी कुछ समय के लिए पूछ जरूर हो जाती है। कुछ पद भी मिल जाते हैं। बीजेपी के भीतर कुछ ऐसे ही नेता आजकल ज्यादा दिख रहे हैं। राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता बहाली के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। इस याचिका को कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया गया है। मोदी सरनेम को लेकर की गई विवादित टिप्पणी मामले में राहुल को सूरत की एक अदालत ने दोषी करार दिया था। उसके बाद उनकी लोकसभा सदस्यता समाप्त हो गई थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अगस्त महीने में निचली अदालत के फैसले पर रोक लगाते हुए राहुल की सदस्यता को बहाल कर दिया था।

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लेकिन मामला केवल राहुल की सदस्यता की बहाली ही नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट ने सदस्यता बहाली के खिलाफ दायर याचिका को भी ख़ारिज कर दिया था। उसे आधारहीन कहा था। इसके साथ ही याचिकाकर्ता अशोक पांडेय पर लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल की सदस्यता बहाली को चुनौती देने के लिए एक लाख रूपये का हर्जाना भी लगाया था। पांडेय का कहना है कि जबतक कोई ऊपर की दलित में निर्दोष साबित न हो जाए तबतक उसे सदन में वापस नहीं लिया जाना चाहिए। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने चार अगस्त को सूरत की अदालत के फैसले पर रोक लगाईं थी। जिसमे निचली अदालत ने पाया था कि राहुल मान हानि मुक़दमे में दोषी हैं।

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सूरत की दलित ने उन्हें दो साल की सजा सुनाई थी। इसके साथ ही राहुल गाँधी की लोकसभा सदस्यता ख़त्म हो गई थी। इसके बाद राहुल गाँधी फिर गुजरात हाई कोर्ट गए और फिर सुप्रीम कोर्ट भी गए। गुजरात हाई कोर्ट से राहुल को राहत नहीं मिली थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले पर रोक लगाकर राहुल को राहत दे दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राहुल गाँधी को अधिकतम दो साल की सजा देने का कोई औचित्य नहीं है। जस्टिस बीआर गवई,जस्टिस पीएस नरसिम्हा जस्टिस संजीव कुमार की पीठ ने कहा था कि ट्रायल जज के जरिये अधिकतम सजा देने क कोई कारण नहीं बताया गया है .अंतिम फैसला आने तक दोषसिद्धि के आदेश पर रोक लगाने की जरूरत है। पीठ का कहना था कि ट्रायल कोर्ट के आदेश के प्रभाव काफी व्यापक हैं।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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