क्या होता हैं हल षष्ठी का व्रत और क्यों रखा जाता है ? जानें व्रत का महत्व और शुभ मुहूर्त
Hal Shashti 2023: हल षष्ठी का व्रत जन्माष्टमी से 2 दिन पहले षष्ठी तिथि को रखा जाता है। यह व्रत इस बार 5 सितंबर को रखा जाएगा। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की सुख समृद्धि और दीर्घायु के लिए व्रत करती हैं। इस व्रत को करने की विधि के साथ आइए जानते हैं इस हल षष्ठी (Hal Shashti) महत्व, डेट और शुभ मुहूर्त।
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हल षष्ठी भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह कृष्ण जन्माष्टमी से 2 दिन पहले षष्ठी (Hal Shashti) को मनाया जाता है। इस दिन माताएं अपने पुत्र की दीर्घायु के लिए पूजापाठ करती हैं और व्रत रखती हैं। वहीं नवविवाहिता इस व्रत को संतान सुख की कामना के लिए करती हैं।
सावन के महीने के समापन के बाद 31 अगस्त से भाद्रपद मास का आरंभ हो जाएगा। भाद्रपद मास में भगवान कृष्ण। और उनसे भाई बलराम की पूजा का खास महत्व माना जाता है। इस क्रम में हल षष्ठी (Hal Shashti) भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। हल षष्ठी का व्रत महिलाएं 5 सितंबर को रखेंगी। महिलाएं ये व्रत अपनी संतान की तरक्की और सुख समृद्धि के लिए रखती है।
हल षष्ठी का शुभ मुहूर्त
हल षष्ठी (Hal Shashti) की शुरुआत 4 सितंबर की शाम को 4 बजकर 41 मिनट पर होगी। इसका समापन 5 सितंबर को दोपहर में 3 बजकर 56 मिनट पर होगा। इस तरह हिंदू पंचांग के मुताबिक उदया तिथि के नियमों को ख्याल में रखते हुए 5 सितंबर को यह व्रत रखा जाता हैं।
Hal Shashti के व्रत का महत्व
यह व्रत भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलरामजी को समर्पित होता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, द्वार युग में भाद्रपद मास की षष्ठी को श्रीकृष्ण के जन्म से पहले शेषनाग ने बलराम के रूप में जन्म लिया था। मान्यताओं के अनुसार बलरामजी का प्रमुख शस्त्र हल और मूसल थे। इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है। यही वजह है कि उनके जन्मोत्सव के दिन को हल षष्ठी (Hal Shashti) के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन हल से जोती गई किसी भी वस्तु को सेवन नहीं करना चाहिए। खास तौर पर जो महिलाएं व्रत रखती हैं उन्हें भूलकर भी जमीन से पैदा हुई चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं तालाब में पैदा होने वाली वस्तुएं जैसे तिन्नी का चावल, केर्मुआ का साग, पसही के चावल खाकर व्रत रखती हैं। इसके साथ ही इस व्रत में गाय के दूध, दही और की घी का सेवन भी नहीं करते हैं। बल्कि इस दिन भैंस के दूध, दही और घी का सेवन किया जाता है।
Hal Shashti की पूजा विधि
इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और पूरे घर की अच्छे से साफ-सफाई करती हैं। फिर पूजास्थल को अच्छे से साफ करके उसे गंगाजल से पवित्र करते हैं। उचित दिशा चुनकर दीवार पर छठी मईया (Hal Shashti ) की आकृति बनाकर उसकी विधि विधान से पूजा की जाती है। अगर आपके घर में कच्ची जमीन है तो उसे गोबर से लीपकर एक गड्डा करके उसमें पानी भरकर उसे तालाब का रूप दे सकते हैं। इस तालाब में झरबेरी और महुआ के पेड़ की शाखा गाढ़ देते हैं। पूजा में 7 तरह का अनाज चढ़ाया जाता है। रात्रि में चंद्रमा दर्शन के बाद व्रत का पारण किया जाता है। कुछ महिलाएं अगले दिन सप्तमी को व्रत का पारण करती हैं।