कब है अजा एकादशी व्रत? जानें शुभ मुहूर्त और विधि
Aja Ekadashi 2023: अजा एकादशी का व्रत भाद्रपद कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है। इस बार अजा एकादशी (Aja Ekadashi) पर बहुत ही शुभ संयोग बन रहा है। चलिए बताते है आपको अजा एकादशी (Aja Ekadashi) का व्रत कब रखा जाएगा? साथ ही जानें एकादशी की पूजा विधि।
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जानकारी के मुताबिक बता दें भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन अजा एकादशी या जया एकादशी का व्रत रखा जाता है। अजा एकादशी (Aja Ekadashi) के दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और धन-धान्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसी भी मान्यताएं हैं कि एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही इस बार अजा एकादशी (Aja Ekadashi) पर बहुत ही शुभ संयोग बन रहा है। आइए जानते हैं अजा एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा। साथ ही जानते हैं अजा एकादशी का महत्व और पूजा विधि।
कब रखा जाएगा अजा एकादशी का व्रत
एकादशी तिथि (Aja Ekadashi) का 9 सितंबर यानि शनिवार की शाम में 7 बजकर 17 मिनट से आरंभ होगा और अगले दिन यानि 10 सितंबर रविवार की रात्रि में 9 बजकर 28 मिनट तक रहेगी। साथ ही इस दिन पुनवर्स और पुष्य नक्षत्र का आरंभ भी हो रहा है। साथ ही इस दिन रवि पुष्य योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण भी हो रहा है। ऐसे में अजा एकादशी (Aja Ekadashi) का व्रत 10 सितंबर को ही रखा जाएगा।
अजा एकादशी का शुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त (Abhijeet Muhurta) सुबह 11 बजकर 50 मिनट से 12 बजकर 37 मिनट तक। इसके बाद विजय मुहूर्त दोपहर में 2 बजकर 11 मिनट से 2 बजकर 58 मिनट तक। अजा एकादशी पारण का वक्त 11 सितंबर को सुबह 6 बजकर 4 मिनट से 8 बजकर 34 मिनट तक।
एकादशी व्रत पूजा विधि
- एकादशी (Aja Ekadashi) के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े धारण करें।
- इसके बाद भगवान विष्णु (lord vishnu) का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। इसके बाद मंदिर में अच्छे से साफ सफाई करें।
- फिर पूजा की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर (Aja Ekadashi) और उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें।
- इसके बाद एक लोटे में गंगाजल (gangajal) लेकर उसमें तिल, रोली और अक्षत मिलाएं।
- भगवान विष्णु (Aja Ekadashi) को धूप, दीप, दिखाकर उन्हें पुष्प अर्पित करें।
- इसके बाद एकादशी (Aja Ekadashi) की कथा का पाठ करें। इसके बाद भगवान विष्णु को तुलसी जल और तिल का भोग लगाएं।
- साथ ही विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। साथ ही श्री हरि विष्णु के भजन करते हुए रात्रि में जागरण करें।