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Caste Census : बीजेपी (Bjp) को हिन्दू विभाजन का डर तो नीतीश को उपजाति विभाजन की चिंता

बिहार (Bihar) की राजनीति फिर से नए उफान पर जाती दिख रही है। बीते सात जनवरी से बिहार में जातिगत जनगणना शुरू हो गई है। लेकिन इस खेल का दूसरा पक्ष कई सवालों को जन्म दे रहा है। बिहार में जातिगत जनगणना तो शुरू हो गई लेकिन उपजातियों की गणना नहीं होगी। लगता है कि नीतीश कुमार उपजातियों के विभाजन से बचना चाहते हैं।  नीतीश कुमार ने बीजेपी से अलग होने के बाद जातिगत जनगणना पर जोड़ दिया था। उनकी समझ रही कि जातिगत जनगणना कराकर ओबीसी (OBC) की सही स्थिति का आकलन होगा और फिर आरक्षण की नयी राजनीति शुरू होगी।  इसके साथ ही समाज के विकास के लिए योजना बनाने में मदद मिलेगी। उधर  बीजेपी (Bjp) हमेशा इसका विरोध करती रही है। बीजेपी की परेशानी अपनी तरह का है। वह जातीय खेल तो करती ही है उसकी असली परेशानी हिन्दू समाज के विभाजन को लेकर है। बीजेपी (BJP) को डर है कि हिन्दू समाज में विभाजन के बाद उसका हिन्दू वाला कार्ड भोथरा हो सकता है। यही वजह है कि केंद्र सरकार जातिगत जनगणना (Caste Census) से बचती रही है। लेकिन नीतीश कुमार नहीं माने और अब बिहार में अगले सात जनवरी से जातिगत जनगणना की शुरुआत हो गई है।  बिहार से शुरू हुई यह गणना अब देश की राजनीति को प्रभावित करेगी। देश के तमाम राज्यों में इसकी मांग बढ़ेगी और फिर एक नयी राजनीति की शुरुआत होगी। इसे आप मंडल पार्ट 2 की राजनीति कह सकते हैं। सात जनवरी से आरंभ हुई  जाति गणना में लोगों से 26 तरह के सवाल पूछे जा रहे हैं।लोगों को अपनी जाति संबंधी प्रमाण पत्र की प्रति लगानी होगी। संभवत: जाति प्रमाण पत्र का नंबर कालम में अंकित करना होगा। जिन लोगों के पास जाति प्रमाण पत्र नहीं उपलब्ध होगा, उनकी जाति की प्रमाणिक पुष्टि आस पड़ोस के लोगों से पूछ कर की जायेगी।

नीतीश को उपजाति विभाजन की चिंता

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केंद्र सरकार की मंजूरी मिले बिना बिहार सरकार अपने खर्च पर जातिगत जनगणना करा रही है। इसके परिणाम अंत में जो भी हो लेकिन  इसमें जातियों के साथ साथ आर्थिक स्थिति का भी पता लगाया जाएगा। लेकिन जाति आधारित जनगणना शुरू होने से एक दिन पहले  मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) का आया बयान बहुत कुछ कहता है। उन्होंने कहा कि  सिर्फ जातियों की गिनती होगी, उप जातियों को नहीं गिना जाएगा। अचानक नीतीश कुमार के इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि जिस तरह से बीजेपी को हिंदू समाज के अंदर जातियों के विभाजन की वजह से जाति जनगणना कराने से दिक्कत है वैसे ही नीतीश कुमार को जातियों के उप जातियों के विभाजन की चिंता है।

 ध्यान रहे बिहार में अब जाति की राजनीति बहुत निचले स्तर तक चली गई है। अब हर क्षेत्र में एक ही जाति के कई उम्मीदार खड़े होते हैं और फिर उप जातियों के आधार पर वोट मांगा जाता है। खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के क्षेत्र में उनकी अपनी जाति की कम से कम चार बड़ी उप जातियां हैं। एक उप जाति के नीतीश हैं तो दूसरी उप जाति के नेता आरसीपी सिंह हैं, जो कुछ समय पहले तक नीतीश की पार्टी के नंबर दो नेता होते थे और अभी पार्टी से बाहर हो गए हैं। अगर उप जातियों की गिनती होती है तो सत्ता या पार्टियों की शीर्ष पर बैठे कई नेता कम आबादी वाली उप जाति के प्रतिनिधि निकलेंगे और तब दूसरी उप जातियों से उनके खिलाफ आवाज उठ सकती है। तभी बिहार सरकार ने उप जातियों की गिनती नहीं कराने का फैसला किया है। अभी जाति आधारित जनगणना का इतना मकसद है कि अन्य पिछड़ी जातियों की बड़ी संख्या सामने आए, जिससे राजद (RJD) और जदयू (JDU) की राजनीतिक जमीन मजबूत हो।     उधर ,बीजेपी इस पूरे खेल को देख और समझ रही है। बीजेपी भी इसका काट तलाश रही है ताकि उसका आधार वोट काम नहीं हो पाए। लेकिन बिहार के इस खेल का असर दूसरे राज्यों पर भी पडेगा। अगर बिहार के परिणाम नीतीश की सोंच के मुताबिक आते हैं तो यूपी ,मध्यप्रदेश ,राजस्थान समेत कई राज्यों में जातिगत गणना की मांग बढ़ेगी।

Prachi Chaudhary

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