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मणिपुर में क्या लौट पाएगी शांति?

Manipur News: दिल्ली में बैठे लोगों को मणिपुर की दर्दनाक कहानी से भले ही कोई वास्ता नहीं हो लेकिन मणिपुर के लोगों की कहानी को वहां के पडोसी राज्यों की जनता देखकर सिहर जाती है। जितने बड़े पैमाने पर मणिपुर के लोग मणिपुर से बाहर जाकर या फिर मणिपुर के भीतर ही शरणार्थी कैम्पो में रह रहे हैं उनकी दशा की वर्णन नहीं की जा सकती। सरकार के अपने दावे हैं। सेना की अपनी मजबूरियां होती हो और स्थानीय पुलिस के ऊपर चाहे जो भी दबाव हो ,मणिपुर का संकट बेहद ह गहरा है। मणिपु की पीड़ा बेहद दर्दनाक है यह सब राजनीति की ही देन है।
मणिपुर में अब मैतेई और कुकी क्या साथ रह पाएंगे ? क्या कुकी के इलाके में मैतेई जा पायेंगे ?और क्या मैतेई के इलाके में कुकी जाने का साहस करेंगे ? और सबसे बड़ी बात कि कुकी और मैतेई जो चुनाव के दौरान साथ मिलकर किसी पार्टी का विरोध या समर्थन करने के लिए गले लग जाते थे क्या या संभव हो पायेगा ?


कुकी और मैतेई के बीच अब सांप और नेवले की कहानी बनती दिख रही है। कोई किसी को देखना पसंद मनाही करता। यहाँ तक की कोई किसी के इलाके से भी घृणा करता है। राजधानी इम्फाल मैतेई बहुल है और वहां अब कुकी लोग नहीं जाते। किसी को कोई काम की जरुरत होती है तो सुरक्षा घेरे में वान जाने की कोशिश की जाती है। यही हाल मैतेई समाज का भी है। जिन इलाकों में कुकी की बहुतायत है वहां मैतेई लोग भी अब जाने से कतरा रहे हैं। पुलिस भी परेशान है और सेना भी। महिलाओं की दुर्दशा की कहानी अपनी जगह है और बच्चों के भविष्य की बर्बादी पर भला कौन नजर डालता है ?

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मणिपुर में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ अभी तक 160 लोगों की मौत हुई है। करीब 6 हजार से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हैं और करीब 80 हजार से ज्यादा लोग शरणार्थी कम्पों में रह रहे हैं। लेकिन यह दावा तो सरकार कर रही है। जो असलियत है वह इन आंकड़ों से परे हैं। लेकिन इन आंकड़ों से किसे मतलब है ? क्या सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार को इन आंकड़ों से कोई मतलब है या फिर केंद्र सरकार को ही। यह विपक्षी दलों को कोई मतलब है या फिर कुकी और मैतेई समाज को ह। भविष्य तो सबसे ज्यादा उन महिलाओं ,बच्चों और बूढ़ों के खराब हो गए जिनके ऊपर घर चलाने की जिम्मेदारी थी। महिलाओं के साथ क्या -क्या हुए हैं। कितनी यातनाएं उन्होंने झेली है यह कौन बता सकता है ?
इधर मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह दिल्ली ए और गृह मंत्री से मिले भी। क्या बातें हुई कौन जाने ! लेकिन खबर आयी है कि उन्होंने सरकार से निवेदन किया है कि जिन लोगों के घर जलाये जा चुके हैं ,बर्बाद हो गए हाँ उनके घर को सरकार बनाये। इसके साथ ही राज्य के कुकी विधायकों ने पांच जिलों के लिए अलग -अलग मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक की मांग की है। कुकी समुदाय के दस बीजेपी विधायक पहले ही कुकी लोगों के लिए अपना अलग कुकी प्रशासन की मांग कर चुके हैं। उनकी दलील है कि अब राज्य में दोनों समाज के लोग एक साथ नहीं रह सकते। दोनों में एक दूसरे के खिलाफ घृणा का भाव है और एक दूसरे को कोई देखना तक नहीं चाहता।

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यहाँ यह बताना जरुरी है कि मुख्यमंत्री बीरेन सिंह खुद मैतेई समाज से आते हैं। राज्य के मैदानी इलाकों में मैतेई समाज का ही वर्चस्व है और मणिपुर की आबादी में मैतेई करीब 53 फीसदी के करीब है। दूसरी तरफ कुकी जनजाति के लोग और भी दूसरी पर्वतीय इलाकों में रहते ऐन। मुख्यमंत्री सफाई देते हैं कि उनकी सरकार कुकी समाज के खिलाफ नहीं है। हालांकि असम राइफल की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। उधर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एक जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट भी अदालत को सौंप दी है। कई मामलों पर सीबीआई की जांच चल रही है लेकिन मणिपुर की रुदाली को कौन सुन रहा है ? किसने सोंचा था कि सुन्दर यह यह राज्य खून से लतपथ हो जायेगा और सब कुछ राजनीति की भेंट चढ़ जायेगा।

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