Sanatan Dharma: देहात में एक कहावत हैं – लड्डू में लड्डू लड़े तो बुंदिया झड़े – इसका मतलब है कि जब दो लोग आपस में लड़ते है तो तीसरे को लाभ होता है। सनातन पर विवाद जारी है। दक्षिण से उठा यह बयार अब उत्तर भारत को खाये जा रहा है। इस विवाद में कही भी जनता नहीं है। किसी भी जनता को इतनी फुर्सत कहा कि कोई उसके धर्म के बारे में क्या कहता है। वह जानता है कि वह जिस धर्म को मानता है वह सनातन है। उसके देवी देवता सब सनातन के ही रूप है और यह सब आस्था के जरिये चलता आ रहा है। गांव के वह लोग यह जानते है कि हजारो सालों का यह सनातन देश में जड़ पकड़ चुका है और इसी के सहारे ही हमारी जिंदगी चलती है। उस गांव के लोग यह भी जानते है कि दूसरे धर्म के लोग भी चाहे जिसे भी मानते हों, पूजते हों लेकिन सब एक ही है। सबकी पूजा उसी ईश्वर की पूजा है जिसे किसे ने देखा तक नहीं।
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गांव के लोग इसके आगे भी जानते हैं। वे वह सब जानते हैं कि देश की राजनीति कैसे चल रही है और आज की राजनीति में सनातन का क्या महत्व है। उत्तर भारत के लोग यह भी जानते हैं कि दक्षिण भारत के लोग क्या-क्या करते हैं। न जाने कितने पर्व त्योहार वहां होते हैं। न जाने क्या-क्या वहां के लोग खाते-पीते हैं? लेकिन उत्तर भारत के लोगों को दक्षिण भारत के लोगों के प्रति कभी कोई आपत्ति तो नहीं। ठीक यही कहानी काे दक्षिण भारत के लोग भी उत्तर भारत के लोगों अपना ही मानते हैं और इतना तो मानते ही है कि उत्तर भारत में सनातन की गहरी जड़ हैं और इसी जड़ के जरिए उत्तर भारत की राजनीति में जाति और धर्म का खूब बोलबाला है।
लेकिन राजनीति इस खेल में खूब मजे ले रही है। राजनीति को लग कि इस खेल को जितने बड़े पैमाने पर खेला जाए उसके परिणाम अलग-अलग हो सकते हैं। उसके लाभ हो सकते हैं और सामने वालों को गिरा भी सकते हैं। आज सनातन के नाम पर जो कुछ भी होता दिख रहा है उसके मूल में सनातन पर कोई खरा नहीं उतरा, सनातन के नाम पर राजनीति को आगे बढ़ाने की चुनौती है। कौन इसमें कितना लाभ कमा पाता है, इसकी लड़ाई चल रही है।
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दक्षिण से उठा यह सनातन का मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। देखिये जिस देश की 80 करोड़ जनता पांच किलो अनाज के लिए हर रोज लाइन में खड़े होने को तैयार है और किरानी, सरपंच से लेकर मुखिया के यहां कहते फिर रहे हो कि उनके नाम को भी राशन वाली सूची में जारी कर लें, उस देश के लोग क्या सनातन को लेकर लड़ने को तैयार हैं? हो सकता है कि देश के दो चार फीसदी लोग जिनका भोजन ही धर्म के नाम पर समाज को बांटने और उसका लाभ लेने का रहा है वह सनातन की डुगडुगी या फिर भाड़े के लोग बने लेकिन देश के भीतर सनातन को लेकर कोई लड़ाई नहीं। लोग जानते हैं कि अजर अमर है और इसे कोई मिटा नहीं सकता। यह इस देश के खून में है। उसकी जीवन शैली है। सनातन पर न जाने कितने प्रहार हुए लेकिन सनातन डिगा नहीं। लेकिन जिसने प्रहार किया वे सदा के लिए चले गए। इसलिए सनातन के सारे विवाद राजनीतिक हैं।
तो अब शीर्ष अदालत में उदयनिधि स्टालिन और ए राजा के बयानों के खिलाफ याचकाएं दाखिल की गई है। चेन्नई के एक वकील ने ये याचिका दाख़िल की है। अदालत आगे चलकर क्या कुछ करती है इसे देखना होगा लेकिन अभी बीजेपी इस, मसले को खूब हवा दे रही है। उसे लग रहा है कि आने वाले चुनाव में इसका लाभ लिया जा सकता है।