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आखिर बसपा सुप्रीमो मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान क्यों किया?

BSP News: एक तरफ जहां मुंबई में इंडिया और एनडीए की कल से बैठक होने जा रही है और अगले लोकसभा चुनाव में एक दूसरे को मात देने की तैयारी हो रही है ऐसे में बसपा प्रमुख मायावती (Mayawati) ने ऐलान किया है कि वह किसी भी गठबंधन के साथ नहीं जा रही है। वह अकेले चुनाव लड़ेगी। इसके साथ ही उन्होंने बड़े ही साफ़ शब्दों में कहा है कि जो मीडिया वाले किसी के कहने से फेक न्यूज़ चलाते हैं वे ऐसा नहीं करें नो फेक न्यूज़ प्लीज।

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सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि मायावती ने आखिर कहा क्या है? उन्होंने सोशल मीडिया के जरिये कहा है कि एनडीए और इंडिया गठबंधन अधिकतर गरीब विरोधी, जातिवादी, साम्प्रदायिक, धन्नासेठ समर्थक और पूंजीवादी नीतियों वाली पार्टियां हैं। जिनकी नीतियों के विरुद्ध बसपा अनवरत संघर्षरत है और इसलिए इससे गठबंधन करके चुनाव लड़ने का प्रश्न ही नहीं उठता। इसलिए मीडिया से अपील है -नो फेक न्यूज़ प्लीज।

मायावती (Mayawati) ने आगे कहा है कि बसपा, विरोधियों के जुगाड़, जोड़-तोड़ से ज्यादा समाज के टूटे बिखरे हुए करोड़ों उपेक्षितों को आपसी भाईचारा के आधार पर जोड़कर उनके गठबंधन से 2007 की तरह अकेले आगामी लोकसभा चुनाव तथा चार राज्यों में विधानसभा का चुनाव लड़ेगी। मीडिया के लोग बार-बार भांति न फैलाएं। मायावती ने यह भी कहा कि वैसे तो बसपा के साथ गठबंधन करने को सभी गठबंधन आतुर हैं लेकिन ऐसा नहीं करने पर विपक्षी खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे की तरह बीजेपी से मिलीभगत का आरोप लग रहे हैं। इनसे मिल जाए तो सेक्युलर हो जाए न मिले तो भाजपाई! यह घोर अनुचित तथा अंगूर मिल जाए तो ठीक वरना अंगूर खट्टे हैं की कहावत चरितार्थ जैसी है।

तो ये सब तो थे मायावती (Mayawati) के बयान। लेकिन जानकारों का कहना है कि मायावती अब साफ कर चुकी है कि वह अकेले चुनाव लड़ेगी या फिर हो सकता है कि चुनाव के वक्त कुछ दलों के साथ उनकी आपसी सहमति भी हो। ओवैसी की पार्टी के साथ बसपा के समझौते की बात कही जा रही है। लेकिन सच्चाई क्या है इसकी अभी पुष्टि नहीं की जा सकती। लेकिन एक बात तो यह है कि मायावती आगामी लोकसभा चुनाव में भले ही सपा के साथ कोई गठबंधन नहीं करें लेकिन कांग्रेस के साथ उसके गठबंधन को नकारा नहीं जा सकता है। जानकार मान रहे हैं कि अभी चुनाव होने में 6 महीने से ज्यादा का वक्त है। लोकसभा चुनाव से पहले पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। अगर चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आते हैं तो निश्चित तौर पर बसपा की सोंच और समझ भी बदल सकती है और अगर बीजेपी के पक्ष में परिणाम आते हैं तो संभव है कि बसपा अभी मौन रहना ही चाहेगी। फिर लोकसभा चुनाव के बाद स्थिति बनेगी उसके बाद मायावती कोई बड़ा निर्णय ले सकती है।

मायावती (Mayawati) जानती है कि उसका वोट बैंक पहले से कम हुआ है। उसके बहुत से लोग दूसरी पार्टियों के साथ जुड़ गए हैं। उन्हें यह भी पता है कि उनका मुस्लिम वोट बैंक भी कमजोर हुआ है लेकिन मायावती को यह पता है कि उसका जातीय कोर वोट बैंक अभी उसके साथ है और जब तक कोर वोट बचा है उसकी राजनीति हाशिये पर नहीं जा सकती। मायावती इस बार यूपी के साथ ही कई अन्य में भी चुनाव लड़ने जा रही है। जाहिर है इस बार बसपा के लिए भी करो या मरो की बात है। इस बार पार्टी को कोई बड़ा लाभ नहीं हुआ तो कई सवाल उठेंगे और मायावती फिर बड़ा निर्णय भी ले सकती हैं।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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