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क्या बिहार में नीतीश कुमार फिर से पलटी मार सकते हैं ?

Political News Bihar: राजनीति में कौन, कब क्या कर दे यह कहाँ किसी को पता होता है ? पता चल जाए तो राजनीति कैसी ? ठगी और झूठ पर आधारित राजनीति आज समाज और देश को तबाह किये हुए है। सच तो यही है कि यह जितनी गन्दी खेल है जनता उतनी ही इस खेल में फंसती है। जनता ऐसा क्यों करती है उसके भी करण है। जनता लोभी होती है और बेचारी भी। पहले वह बेचारी ही होती है और बाद में लोभ से ग्रस्त हो जाती है। जहाँ लोभ होगा वहां ठगी भी होगी। अगर आप कुछ इच्छा जाहिर करते हैं तो ठगने वाले आपको लूटने को तैयार रहते हैं।
राजनीति करने वाला कोई भी आदमी सीधा नहीं होता। वह ठग ही होता है। वह अपना एक पैसा खर्च नहीं करता। पैसा भी जनता को खर्च करता है। और जनता के पैसे पर आराम करते हुए जनता को ही कहता है कि वह आपके लिए यह सब करेगा। जो जितना बड़ा झूठ या जितना बड़ा लकीर जनता के सामने रखता है उसकी जीत निश्चित होती है। किसी भी नेता के नाम को आगे बढ़ाने की जरूरत ही नहीं है। सत्ता की कुर्सी एक बार मिल जाए तो कौन छोड़न चाहता है ? सत्ता की कुर्सी का आनंद ही कुछ और है। यह कुर्सी ऐसी होती है कि जिस पर बैठकर किसी राजा का अनुभव होता है। पूरा देश उसकी कदमो पर लुटाता रहता है और राजा को जो मने करे वह करता है।


अब ज़रा बिहार की कहानी को जान लेते हैं। बिहार में नीतीश कुमार कई सालों से मुख्यमंत्री है। ,वैसे तो बिहार में सभी पार्टियां चुनाव लड़ती है लेकिन वहां मूल रूप से तीन प्रतियों का बर्चस्व सबसे ज्यादा है। ये पार्टियां है राजद ,बीजेपी और जदयू। राजद और जदयू मूलतः पिछड़ी और दलित जाति की रजनीती के साथ ही मुसलामानों की भी राजनीति करती है। उधर बीजेपी के पास बिहार के सवर्ण लोग खड़े रहते हैं। बिहार के सवर्ण कभी कांग्रेसी होते थे। बिहार में सवर्ण ,दलित और मुसलमान ही कांग्रेस के आधार थे। लेकिन जैसे ही क्षेत्रीय दलों का उभार हुआ और फिर बीजेपी का आगमन हुआ कांग्रेस हाशिये पर चली गई। आज बिहार में कांग्रेस ही तो जरूर लेकिन उसकी राजनीति काफी कमजोर है। बिहार में अभी कांग्रेस के 19 विधायक और एक सांसद हैं।
उधर नीतीश कुमार की राजनीति पहले कांग्रेस खिलाफ से शुरू हुई और फिर बाद में राजद के खिलाफ होती गई। वह कभी राजद के साथ तो कभू बीजेपी के साथ मिलकर बिहार को चलाते रहे। मौजूदा समय में बिहार की राजनीति इनहिओ तीन दलों के बीच चल रही है। जो दो दल एक साथ खड़े हो जाते हैं उसकी सत् सरकार बन जाती है। यही हाल लोकसभा चुनाव में भी अमूमन देखने को मिलते हैं। नीतीश कुमार लम्बे समय से बजप के साथ रहे हैं। वह एनडीए में रहकर राजद और कांग्रेस की राजनीति को नापते रहे। हालांकि उन्होंने दो बार बीजेपी का साथ छोड़ा भी। अभी भी वे बीजेपी स्वे अलग राजद और महागठबंधन बनाकर बिहार की सत्ता पर बैठे हुए हैं। लगता है कि सत्ता की कुर्सी के साथ उनक कुछ जयदा ही मोह हो गया है।


नीतीश कुमार चाहे राजद के साथ हों या फिर बीजेपी के साथ। पिछले 20 साल से मुख्यमंत्री वही रहे हैं। वे राजद के साथ भी रहते हैं तो सीएम खुद ही बनते हैं और बीजेपी के साथ जाते है तो भी सीएम वही रहते हैं। बिहार का खेल बड़ा मनोरंजक है। बीजेपी को नीतीश के साथ रहने का लाभ मिलता रहा है। लेकिन इस बार जब नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन के साथ है तो बीजेपी को लग रहा है कि अगर सभी विपक्षी उनके खिलाफ ेकलजुत हो गए तो खेल ख़राब हो सकता है। ऐसे में जो बीजेपी कल तक यह कहती थी कि नीतीश के लिए अब बीजेपी में कोई जगह नहीं है वही बीजेपी अब नीतीश का साथ पाने के लिए बेचैन है।
नीतीश आगे क्या कुछ करेंगे यह तो देखने की बात होगी लेकिन बिहार में कुछ नया हो सकता है। नीतीश या तो बीजेपी के साथ जा सकते हैं। ऐसा हुआ तो देश की राजनीति में एक बड़े बदलाव की सम्भावना हो सकती है। या फिर नीतीश कुमार बीजेपी के लिए ही कोई ऐसा खेल कर सकते हैं जिसमे बीजेपी की परेशानी बाउट बढ़ जाये। कहा तो यहाँ तक जा रहा है कि नीतीश कुमार विधान सभा भांग करने की तयारी भी कर रहे हैं। और ऐसा हुआ तो बीजेपी की परेशानी और भी बढ़ सकती ही।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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