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इंडिया गठबंधन के भीतर कई उप गठबंधन से परेशान होती कांग्रेस

Political News Indian Alliance: राजनीति के कितने रंग हैं यह किसको पता है ? जो राजनीति करते हैं उन्हें भी रंगों की जानकारी नहीं होती। कभी -कभी कुछ रंग स्वयं कहि तैयार हो जाते हैं। जरूरत के हिसाब सेतो कुछ रंग बनाये जाते हैं। प्रयोग के तौर पर। कुछ सफल भी हो जाते हैं तो कुछ विफल और बेकार। लेकिन राजनीतिक रंगों का यह खेल हमेशा चलता ही रहता है। यही वजह है कि राजनीति को बहुत से लोग ठगिनी कहते हैं तो कुछ लोग चरित्रहीन भी।
बड़े अरमान से इंडिया गठबंधन बना। क्या -क्या बातें नहीं की गई। लेकिन आज इंडिया गठबंधन कहाँ है और उसके नेता क्या -क्या कर रहे हैं इसकी जानकारी पा कर आप भी सन्न हो सकते हैं। सबको अपनी चिंता है। सबको अपनी सरकार बनानी है। सबको पनि जीत से मतलब है और सबको अपनी सीट की चिंता है। भला ऐसे इंडिया गठबंधन की कहानी को कुन आगे बढ़ा सकता है ?

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खेल देखिये .दक्षिण भारत तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने तमिलनाडु में वीपी सिंह की मूर्ति का अनावरण किया तो उस समारोह में सपा नेता अखिलेश यादव को बुलाया गया। डीएमके भी आरक्षण की राजनीति को आगे बढ़ा रही है। देश में आरक्षण की राजनीति को स्थापित करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ही हैं। उन्होंने ही मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया था। जो लोग आरक्षण पा रहे हैं वे सभी वीपी सिंह को भगवान् मानते हैं। दक्षिण राज्य तमिलनाडु में स्टालिन अभी इस आरक्षण की राजनीति को धार दे रहे हैं।
लेकिन सपा का स्टालिन की सभा में जाने का मतलब क्या हो सकता है ? स्टालिन के इस समारोह में अखिलेश यादव तो पहुँच गए लेकिन कांग्रेस वाले नहीं थे। क्या वजह हो सकती है ? किसी के पास कोई जवाब नहीं। बता दें कि स्टालिन और कांग्रेस के साथ मधुर सम्बन्ध रहे हैं। अब जानकार कह रहे हैं कि स्टालिन के इस वीपी सिंह की मूर्ति वाले खेल से डीएमके को कितना लाभ होगा यह अब ही किसी को पता नहीं। लेकिन अखिलेश यादव यूपी में इसका लाभ उठा सकते हैं।
अखिलेश यादव की पूरी राजनीति अभी यादव और मुस्लिम समीकरण पर स्थिर है। बदलती राजनीति में सपा को भी अन्य ापिछडी जातियों का भी वोट चाहिए। कहा जा रहा है कि तमिलनाडु जाकर अखिलेश यादव ने आरक्षण की राजनीति को हवा दी है और इसका लाभ सपा को मिल सकता है। और मिलेगा भी।

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इधर सपा और कांग्रेस के बीच सम्बन्ध ठीक नहीं बताये जा रहे हैं। एमपी चुनाव के दौरान सीट बंटवारे को लेकर दोनों पार्टी के बीच खटपट हो गई और अखिलेश यादव काफी नाराज हो गए। उन्होंने कांग्रेस पर बहुत कुछ कहा। तीखा हमला तक किया। झूठी पार्टी बताया। कांग्रेस ने अभी तक कुछ भी नहीं कहा है। सपा की चाहत यही है कि यूपी में इंडिया गठबंधन उसके इशारे पर चले। ऐसा होना भी चाहिए क्योंकि सपा यूपी की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है और उसका जनाधार भी है। लेकिन सपा की दिक्कत भी यही है कि वह कांग्रेस को एकदम कमजोर मान कर आगे चलना चाहती है और उसे मात्र आठ से दस सीटोए ही देना चाहती है।
उधर कांग्रेस की यूपी इकाई भी आगे बढ़ती दिख रही है। कांग्रेस को भी लग रहा है कि पांच राज्यों के चुनाव परिणाम पार्टी के पक्ष में आते हैं तो वह अकेला भी आगे लड़ने को तैयार हो सकता है। कायदे से कांग्रेस इसका आंकलन भी कर रही है। कांग्रेस यह भी चाहती है कि यूपी में सपा की जगह उसकी बसपा के साथ गठजोड़ हो लेकिन अभी बसपा इस पर मौन है। कहने का मतलब है कि इंडिया गठबंधन के भीतर सबकुछ ठीक नहीं है।
ऐसा नहीं है कि केवल सपा और डीएमके ने ही एक नया गठबंधन तैयार किया है। बिहार में भी राजद और जदयू ने कांग्रेस को हाशिये पर खड़ा कर दिया है। नीतीश की सरकार में कांग्रेस कोटे से अभी दो मंत्रियों को बनाया जाना था लेकिन नीतीश और लालू मिलकर कोई फैसला नहीं कर रहे हैं। इसके साथ ही बिहार में राजद और जदयू ने राज्य की 40 सीटों में से 15 -15 सीटों पर लड़ने का दावा किया है। कांग्रेस को चार से पांच सीटें देने की बात की जा रही है जबकि कांग्रेस कम से कम आठ सीट मांग रही है। खेल बड़ा ही विचित्र हो गया है। आरक्षण और जातिगत गणना को लेकर जो भी बाते की जा रही है उसमे बिहार में कांग्रेस को पीछे कर दिया गया है और सभी लाभ राजद और जदयू ही उठा रहे हैं।
उधर महाराष्ट्र में भी उद्धव शिवसेना और शरद पवार एक साथ मिलकर सीटों का बंटवारा कर रहे हैं दोनों नेता आपस में मिलकर सीटों की बात तो कर रहे हैं और कांग्रेस से कोई बात नहीं हो रही है। कांग्रेस सब देख रही है लेकिन मौन है। हालांकि महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले काफी कुछ बोल रहे हैं और वे अकेले ही महाराष्ट्र में चुनाव लड़ने की बात भी कर रहे हैं। यही हाल बंगाल में भी चल रहा है। बंगाल में टीएमसी और वाम दलों की अपनी तैयारी है। झारखंड में हेमंत सोरेन अपनी तैयारी कर रहे हैं और उस तैयारी में कांग्रेस शामिल नहीं है। ऐसे में लगता है कि इंडिया गठबंधन आगे क्या कुछ करेगा कहना कठिन है। इस गठबंधन के भीतर कई उप गठबंधन खड़े हो गए हैं। पांच राज्यों के परिणाम के बाद आगे क्या होगा यही देखना है।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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