![Electoral Bond News: How right and how wrong are the government's arguments on electoral bonds?](http://newswatchindia.com/wp-content/uploads/2024/04/ELECTORAL-BOND-780x470.png)
Electoral Bond News: आजादी के बाद इस देश में कई तरह के घोटाले हुए हैं। ऐसे – ऐसे घोटाले भी हुए जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। बिहार का चारा घोटाला कुछ इसी तरह का था। कोई जान भी नहीं सकता था कि चारे के नाम पर भी घोटाला हो सकता है लेकिन ऐसा हुआ। जो हुआ वह देश के सामने है और इस घोटाले के चक्रव्यूह में राजद नेता लालू यादव फसे और फसते ही चले गए। उन पर इस घोटाले को लेकर जेल की सजा भी हुई है। इन दिनों वे जमानत पर हैं।
इसी तरह इस देश के भीतर कई चर्चित घोटाले हुए हैं। नेहरू के काल से लेकर इंदिरा गांधी और फिर राव की सरकार से लेकर इंदिरा गांधी की सरकार कई घोटालों में फंसती रही। राजीव गांधी पर भी बोफोर्स घोटाले के आरोप लगे। अटल की सरकार पर भी दर्जनों घोटाले के आरोप लगे। इस देश में अब तक इतने घोटाले हो चुके हैं जिस पर मोती किताब भी लिखी जा सकती है। लेकिन मजे की बात तो यह है कि जितने लोग घोटाले करते रहे उनकी राजनीति भी खूब फलती फूलती रही। आरोप लगने और दोषी साबित होने के बाद भी राजनीति करते रहे और आज भी करते दिख रहे हैं।
इसी तरह का एक नया घोटाला चुनावी बॉंड को लेकर सामने आया है। चुनावी बांड की शुरुआत 2017 से शुरू हुई थी। पीएम मोदी कहते हैं कि इस योजना के जरिये काले धन पर रोक लगाने की कोशिश की गई थी। पीएम मोदी की बातों को माने तो यह योजना काफी सफल भी रही और इस देश के चुनावी खेल के लिए इससे बेहतर योजना कोई हो नहीं सकती है। लेकिन यह तो पीएम मोदी और बीजेपी के लोग कहते रहे हैं।
उधर सुप्रीम कोर्ट ने इस चुनावी बांड को ही असंबैधानिक घोषित किया और दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला करार दिया। अगर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को जनता के नजरिये के साथ ही कानून के नजरिये से देखा जाए तो आजाद भारत का यह सबसे बड़ा घोटाला है। अगर यही कहानी विपक्षी पार्टियों द्वार की गई रहती तो आज देश के भीतर कैसा बवाल मचा होता यह सब जानते हैं। इसकी जांच भी शुरू हो गई रहती। लेकिन मौजूदा समय में ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है। देश चुकी पार्टियों के बैनर में विभक्त है और जब जनता किसी पार्टी के समर्थन और विरोध में खड़ी हो जाती है तो देश की राजनीति कुछ अलग तरीके से चलती है। आज यही साब होता दिख रहा है। बीजेपी ने अपने समर्थकों को बता दिया है कि चुनावों बांड में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं थी। पीएम मोदी भी अब कह रहे हैं कि यह सब कालाधन को लाने के लिए लाया गया था।
पीएम मोदी की बातों पर कितने लोग यकीं कर रहे हैं यह तो जांच का विषय हो सकता है लेकिन जो लोग बीजेपी को वोट नहीं डालते हैं उनके मुँह को कोई कैसे रोक सकता है। बड़ा सवाल तो यही है कि अगर कलिसि अन्य घोटाले के बारे में जब कभी भी शीर्ष अदालत कोई बात कहेगा तो कोई उस पर कितना रिएक्शन करेगा?
चुनावी बांड भले ही काले धन को रोकने के लिए लाया गया हो लेकिव उस बांड के जो आंकड़े सामने आये हैं उससे तो यही पता चलता है कि कई कंपनियां केवल चंदा देने के लिए ही निर्मित की गई थी। आजाद भारत का यह खेल अपने आप में अजूबा है। तीन साल से कम पुरानी कंपनियों ने नियमो का उलंघन करके चंदा दिया है। कई कंपनियों ने तो अपने मुनाफे से सौ गुना ज्यादा चंदा दिया। कई कंपनियां इसलिए चंदा देने को तैयार हुई जब उस पर जांच एजेंसियों के दबाब पड़े।
यह भी खबर आई कि कई सौ करोड़ के बॉन्ड किसने खरीदे यह पता ही नहीं है। एक रिपोर्ट यह भी थी कि कुछ किसानों ने मुआवजे के कागज पर दस्तखत कराए गए और उनके नाम पर चुनावी बॉन्ड खरीद लिए गए। इन खबरों से चुनावी बॉन्ड में काले धन का खूब इस्तेमाल होने के संकेत मिलते हैं।