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Importance Of Guru: एक व्यक्ति के जीवन में क्या होता हैं गुरू का महत्व

Importance Of Guru | What is the importance of Guru?

Importance Of Guru: ज्योतिष शास्त्र में गुरु को अत्यंत ही शुभ ग्रह बताया गया है। गुरु की दृष्टि, वृद्धि का सूचक है। जन्मकुण्डली में जिस भी भाव पर देवगुरू बृहस्पति की दृष्टि पड़ती है, उस भाव से संबंधित रिश्ते मजबूत होते हैं। आइए जानते हैं गुरु ग्रह का जीवन पर प्रभाव।

ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक गुरु का सम्बन्ध बृहस्पति ग्रह से है जो आकाश तत्व का प्रतीक है, ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति को गुरु ग्रह भी कहते हैं। बृहस्पति का तत्व आकाश होने से कोई भी वस्तु गुरु के सानिध्य में आने से गई गुना बड़ जाती है, यानि की उसमें वृद्धि होती है। इसलिए ज्योतिष शास्त्र में गुरू की दृष्टि को अमृतमय माना गया है।

जन्मकुण्डली में जिस भी भाव पर देवगुरू बृहस्पति की दृष्टि पड़ती है, उस भाव से संबंधित रिश्ते प्रगाढ़ होते हैं एवं तत्वों की वृद्धि होती है। ज्योतिष शास्त्र में गुरु को अत्यंत ही शुभ ग्रह की संज्ञा दी गई है, बृहस्पति यानी गुरु की दृष्टि वृद्धि का सूचक है। गुरु दक्षिणा में रूप में जो भी वस्तु, धन आदि गुरु को समर्पित किया जाता है, उसकी कई गुना वृद्धि होकर देने वाले को वापस प्राप्त होती है। गुरु ग्रह धर्म स्थान का कारक है, इसलिए धर्मार्थ कार्य के लिए दान देना अथवा गुरु को गुरु दक्षिणा आदि देने पर कहा जाता है कि ऐसे कर्य करने के कभी भी धन घटता नहीं है, बल्कि बढता है।

क्या है जीवन में गुरू का महत्व

ज्योतिष-वास्तु, संगीत आदि विद्याएं गुरुमुखी हैं इसलिए इनका ज्ञान केवल पुस्तक पढ़कर अधूरा ही रहता है, जब तक किसी योग्य जानकार की शरण में ना जाया जाए। सफलता के लिए पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ किसी को भी गुरू बनाकर ज्ञान प्राप्त करने पर सफलता के प्रतिशत में वृद्धि होती है। इस संबंध में एक रोचक दृष्टान्त का संदर्भ आता है कि एक युवक को घुड़सवारी का शौक पैदा हुआ। उसने एक पुस्तकालय से घोड़ों तथा घुड़सवारी की जानकारी देने वाली पुस्तक प्राप्त की तथा उसका अध्ययन करने लगा।

पुस्तक के अध्ययन के बाद उसे गलतफहमी हो गई कि वह घुड़सवारी करना सीख गया है। युवक एक दिन पोलो क्लब के मैदान में जा पहुंचा। वहां के व्यवस्थापक से उसने कहा, मैं मैदान में कुछ वक्त घुड़सवारी करना चाहता हूं। व्यवस्थापक ने समझा कि यह घुड़सवारी करना जानता होगा। उसने एक घोड़ा उसके हवाले कर दिया। युवक बार बार घोड़े की पीठ पर बैठने का प्रयास करता रहा । परंतु निरंतर अभ्यास का सही तरीता न होनी की वजह से वो ऐसा करने में असफल रहा ।

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अंतिम बार रकाब में पैर डालकर वह उचककर घोड़े की पीठ तक पहुंच गया। कुछ क्षणों में घोड़े ने उछलकर उसे जमीन पर पटक दिया। उसका शरीर घायल हो गया। मरहम-पट्टी करने के बाद व्यवस्थापक ने पूछा, ‘‘तुमने घुड़सवारी का अभ्यास कहां किया था?’’ उसने उत्तर दिया, ‘‘मैनें किताब पढ़कर घुड़सवारी सीखी थी।’’ यह सुनकर व्यवस्थापक ने कहा, ‘‘आज इस अज्ञानता की वजह से तुम्हारी जान जा सकती थी।

केवल पुस्तक पढ़कर कोई कला नही सीखी जा सकती। इसके लिए शिक्षक अथवा गुरू का सानिध्य एवं प्रशिक्षण व सतत अभ्यास की जरूरत होती है।’’ जिस प्रकार एक चिकित्सक के लिए केवल चिकित्सा की किताबे पढ़ लेना ही पर्याप्त नहीं होता अपितु उसे अपने वरिष्ठ चिकित्सक रूपी गुरू के सानिध्य में चिकित्सा पद्धति का प्रायोगिक ज्ञान भी होना चाहिए, उसी तरह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता के लिए एक गुरू की आवश्यकता पड़ती है।

एक गुरु ही शिष्य को बताता है कि वह जो कर्म कर रहा है, वह कितने प्रतिशत सही है तथा शिष्य को आगे अपनी उन्नति के लिए क्या नहीं करना चाहिए और क्या नही करना चाहिए, यह सब गुरु के मार्गदर्शन से ही सम्भव है।

Prachi Chaudhary

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