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Indo-China Clash: UN में स्थायी सदस्यता के लिए नेहरु कितने ज़िम्मेदार? अमित शाह के दावों में कितना दम?

चीन सयुंक्त राष्ट्र (Indo-China Clash) का एक स्थायी सदस्य है और भारत जब भी इसकी सदस्यता के लिए प्रस्ताव रखता है तो चीन वीटो कर देती है। चीन की इस हरकत पर भारत में बैठी विपक्षी पार्टी भाजपा सरकार पर ही सवाल उठा देती और इसका ज़िम्मेदार ठहरा देती।

नई दिल्ली: 9 दिसंबर को भारत और चीन (Indo-China Clash) के बीच हुए झड़प के 2 दिनों चक भारत सरकार की चुप्पी ने विपक्षियों की तरफ से कई सवाल खड़े कर दिए थें। सरकार की चुप्पी पर कांग्रेस सहित और विपक्षियों ने भाजपा सरकार पर सवालों की बौछार कर दी है और पूछ रही है इतनी बड़ी बात पर आखिरकार सरकार चुप क्यों हैं? लेकिन अब विपक्ष की कांग्रेस सरकार सरकार अपने ही जाल में फंसती नज़र आ रही है।

अमित शाह ने पूर्व प्रधानमंत्र पर साधा निशाना

झड़प (Indo-China Clash) के बाद मंगलवार को जहां रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सरकार की करफ से अपना पक्ष रखा , वहींं अमित शाह ने भी कांग्रेस के ऊपर ही सवालिया निशान लगा दिए। साथ ही साथ अमित शाह ने कांग्रेस की नीति पर सवाल उठाते हुए देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु को ही कटघरें में खड़ा कर दिया है। अमित शाह का कहना है कि नेहरु जी के प्रेम का ही नतीजा है कि सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता नही मिल पाई।

चीन सयुंक्त राष्ट्र (Indo-China Clash) का एक स्थायी सदस्य है और भारत जब भी इसकी सदस्यता के लिए प्रस्ताव रखता है तो चीन वीटो कर देती है। चीन की इस हरकत पर भारत में बैठी विपक्षी पार्टी भाजपा सरकार पर ही सवाल उठा देती और इसका ज़िम्मेदार ठहरा देती। कांग्रेस के इस रव्वैये पर भाजपा हमेशा अपत्ति जताती आई है। भारत के पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 2004 में हुई एक प्रेस कान्फ्रेंस में द हिन्दू के रिपोर्ट की कॉपी दिखाते हुए कहा था कि भारत को जब सयुंक्त राष्ट्र की सदस्यता मिल रही थी तो जवाहरलाल नेहरू ने इसे लेने से इंकार कर दिया और इसे चीन को दिलवा दिया।

नेहरु जी ने सदस्यता से किया था इंकार

द हिन्दू ने अपने रिपोर्ट में कांग्रेस नेता शशि थरुर के किताब ‘नेहरू- द इन्वेंशन ऑफ़ इंडिया’ में लिखी बातों का इस्तेमाल किया है जिसमें लिखा है कि 1953 में जब भारत को UN से स्थायी सदस्यता मिल रही थी तो नेहरु जी ने इसे लेने से इंकार कर दिया और इसे ताइवान के बाद से चीन को देने की बात कही थी। रविशंकर द्वारा लगाए हुए आरोपों को अब अमित शाह भी सही बता रहें और कह रहे हैं जवाहरलाल नेहरु ने सदस्यता के इंकार करने का नतीजा आज भारत को भुगतना पड़ रहा है। वैसे बहुत से लोग इस बात से इंकार भी करते हुए नज़र आते हैं जो कहते हैं कि इन बातों को मानने वाले लाग और बातों और तथ्यों का ख़ंडन भी करते हैं।

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जवाहरलाल नेहरु ने कही थी ये बात

1955 में संसद में पंडित जवाहर लाल नेहरु ने ये बात स्पष्ट रुप से रही थी कि उन्हें सुरक्षा परिषद के तरफ से औपचारिक यै अनौपचारिक किसी भी तरह का प्रस्ताव नही मिला था। जब डॉ जे.एन पारेख ने संसद में उनसे इस बात को लेकर सवाल किया था तो जवाब देते हुए नेहरु जी ने कहा था कि ये जो हवाले दिए जा रहे हैं इनमें कोई भी सच्चाई नही है। सयुंक्त राष्ट्र मे जब सुरक्षा परिषद का गठन हुआ था तो इसमें सिर्फ कुछ ख़ास देशों को ही सदस्यता का प्रस्ताव दिया गया था।

यूएन चार्टर में कभी भी बिना संसोधन के कोई भी बदलाव नही किया जा सकता और ना ही किसी नए देश को सदस्यता दी जा सकती है। ऐसे में ये कहना कि भारत को सदस्यता दी गई और भारत ने उस लेने से इंकार कर दिया, ये सरासर झूठ है। नेहरु जी का ये मानने था कि जो भी देश सदस्यता पाने योग्य होगा उसे सदस्यता का प्रस्ताव ज़रुर दी जाएगी। एक बार पूर्व वित्त मंत्री भी 1955 में नेहरु जा द्वारा और मुख़्यमंत्रियों को लिखी हुई चिठ्ठी का हवाला देते हुए बता चुके हैं कि जवाहरलाल नेहरु ने चान का हमेशा समर्थन किया है। इसके अलावा चीन और कश्मीर को लेकर जो भी हुआ उसमे सिर्फ एक ही इंसान की गलती है।

क्या कहता है इतिहास?

ख़बरो के अनुसार 1950 में जब सयुंक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद में जब चीन को सदस्यता देने की बात की गई थी तो भारत उसका सबसे बड़ा समर्थक बनकर उभरा था और उस समय वो सीट ताइवान को पास थी। 1949 में चीन की पार्टी पीपुल्स ऑफ चाइना बनी। उस समय रिपब्लिक ऑफ चाइना के च्यांग काई-शेक चीन की कमान संभालते थें। इसी के साथ ही संयुक्त राष्ट्र ने भी पीपुल्स पार्टी को सदस्यता देने से इंकार कर दिया था। शशि थरुर की किताब में भी यही दावा किया गया है कि चीन की सदस्यता के लिए नेहरु जी ने वकालत की थी।

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Ashok Kumar

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