Shardiya Navratri Puja Vidhi! नवरात्र के 9 दिनों में प्रतिदिन नवदुर्गा की एक शक्ति की पूजा का विधान है। नवरात्रि में घर घर मां दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती है। मान्यताओं के मुताबिक, शारदीय नवरात्र (Shardiya Navratri) व्रत का पारण करके दशमी को श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई की थी और उनको विजय हासिल की थी।
जो देवी पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मी रूप से, पापियों के यहां दरिद्रता रूप से, शुद्धान्तः करण वाले पुरुषों के हृदयों में बुद्धिरूप से सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से और कुलीन मनुष्यों में लज्जा रूप से निवास करती है, उन आप भगवती को हम सब श्रद्धापूर्वक नमन करते है। हे पराम्बा! समस्त विश्व का कल्याण कीजिए।
नवरात्र को आद्याशक्ति की आराधना का सर्वश्रेष्ठ काल माना गया है। संवत्सर (वर्ष) में 4 नवरात्र होते है। चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी पर्यन्त नौ दिन नवरात्र कहलाते है। इन 4 नवरात्रों में 2 गुप्त और 2 प्रकट, चैत्र का नवरात्र वासंतिक और, आश्विन का नवरात्र शारदीय नवरात्र कहलाता है। वासंतिक नवरात्र के अंत में रामनवमी आती है और शारदीय नवरात्र के अन्त में दुर्गा महानवमी इसलिए इन्हें क्रमशः राम नवरात्र और देवी नवरात्र भी कहते है। किंतु शाक्तों की साधना में शारदीय नवरात्र को विशेष महत्व दिया गया है। दुर्गा शप्तशती (Shardiya Navratri) में देवी स्वयं कहती हैं
‘शरदऋतु’ में जो वार्षिक महापूजा की जाती है, उस मौके पर जो मेरे महात्म्य (दुर्गा शप्तशती) को श्रद्धा-भक्ति के साथ सुनेगा, वह मनुष्य मेरी अनुकंपा से सब बाधाओं से मुक्त होकर धन, धान्य एवं पुत्रादि से सम्पन्न होगा। इसमें तनिक भी संदेह नही है। सम्भवतः इसी कारण बंगाल में दुर्गा पूजा मुख्यतः शारदीय नवरात्र में ही होती है। शारदीय नवरात्र-पूजा (Shardiya Navratri) वैदिक काल में प्रचलित थी। संसार के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ ऋृग्वेद की प्रारंभिक ऋचा में इसकी चर्चा है, जो आद्या महाशक्ति का ही एक रूप है। ऋृग्वेद में शारदीय (Shardiya Navratri) शक्ति दुर्गा पूजा का उल्लेख मिलता है। बंगाल में विशाल मृण्मयी प्रतिमाओं में सप्तमी, अष्टमी और महानवमी को दुर्गापूजा होती है। दशमी को प्रतिमाएं नदी में या तालाब में विसर्जित कर दी जाती है। जगन्माता को यहां कन्या रूप से अपनाया गया है, मानो विवाहिता पुत्री पति के घर से पुत्र सहित तीन दिन के लिए माता-पिता के पास आती है। मां दस भुजाओं में सभी प्रकार के आयुध धारण कर शेर पर सवार होकर, महिषासुर के कंधे पर अपना एक चरण रखे त्रिशूल से उसका वध कर रही होती है। वस्तुतः भारत के अन्य भागों में और समग्र पृथ्वी भर में इतना प्रकांड उत्सव बंगाल के बाहर कहीं नहीं होता।
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शारदीय शक्ति पूजा को विशेष लोकप्रियता त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम चंद्र के अनुष्ठान से भी मिली। देवी भागवत में भगवान श्रीराम द्वारा किए गए शारदीय नवरात्र (Shardiya Navratri) के व्रत तथा शक्ति पूजन का सुविस्तृत वर्णन मिलता है। इसके अनुसार, श्रीराम की शक्ति-पूजा संपन्न होते ही जगदंबा प्रकट हो गई थीं। शारदीय नवरात्र के व्रत का पारण करके दशमी के दिन श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई कर दी। कालांतर में रावण का वध करके कार्तिक कृष्ण अमावस्या को श्रीरामचंद्र जी भगवती सीता को लेकर अयोध्या वापस लौट आए। आदि शंकराचार्य विरचित-विश्व साहित्य के अमूल्य एवं दिव्यतम ग्रन्थ सौन्दर्य लहरी में माता पार्वती के पूछने पर भगवान शंकर नवरात्र (Shardiya Navratri) का परिचय इस प्रकार देते हैः
अर्थात् नवरात्र नौ शक्तियों से संयुक्त है। नवरात्र के नौ दिनों में प्रतिदिन एक शक्ति की पूजा का विधान है। सृष्टि की संचालिका कही जाने वाली आदिशक्ति की नौ कलाएं (विभूतियां) नवदुर्गा कहलाती है। मार्कण्डेय पुराण में नवदुर्गा का शैलपुत्री, बह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री के रूप में उल्लेख मिलता है।
देवी भागवत में नवकन्याओं को नवदुर्गा का प्रत्यक्ष विग्रह बताया गया है। उसके अनुसार नव कुमारियां भगवती के नवस्वरूपों की जीवंत मूर्तियां हैं। इसके लिए 2 से 10 वर्ष तक की कन्याओं का चयन किया जाता है। 2 वर्ष की कन्या कुमारिका कहलाती है, जिसके पूजन से धन-आयु-बल की वृद्धि होती है। 3 वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति कही जाती है। इसके पूजन से घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। 4 वर्ष की कन्या कल्याणी के पूजन से विवाहादि मंगल कार्य संपन्न होते है। 5 वर्ष की कन्या रोहिणी की पूजा से स्वास्थ्य लाभ होता है। 6 वर्ष की कन्या कालिका के पूजन से शत्रु का दमन होता है। 8 वर्ष की कन्या शांभवी के पूजन से दुःख-दरिद्रता का नाश होता है। 9 वर्ष की कन्या दुर्गा पूजन से असाध्य रोगों का शमन और कठिन कार्य सिद्ध होते हैं। 10 वर्ष की कन्या सुभद्रा पूजन से मोक्ष की प्राप्ति होती है।-