India Political News! देश के भीतर समस्याएं चाहे जितनी ही हो राजनीति अपने रास्ते पर चलती है। उसका एक ही रास्ता है सत्ता की प्राप्ति और उस प्राप्ति की राह में जो भी अड़चन हटाकर आगे बढ़ने की काबिलियत ही राजनीति का चरम लक्ष्य होता है। यही काम बीजेपी करती है। कहने के लिए तो सत्ता प्राप्ति के खेल में सभी पार्टियां लगी रहती है लेकिन समय का इकबाल ही कुछ ऐसा होता है कि राजनीति कुछ समय काल के लिए एक व्यक्ति ,एक पार्टी और एक समुदाय के इर्द गिर्द घूमने लगती है। आज बीजेपी की वही स्थिति है।
कोई भी पार्टी अजेय नहीं होती और नहीं कोई व्यक्ति ही अजेय होता है। इस देश ने बहुत से नेताओं के इकबाल को देखा है। सबके सब चले गए। जीते भी तो हारे भी। जब संसार ही नश्वर है तो विसात ! यह सब कोई जनता है लेकिन जब तक सांसारिक माया में हम हैं तब तक सामने वाले को परास्त करने में हम पीछे कहाँ हटते।
अगले साल लोकसभा चुनाव है। वैसे तो इस देश में कभी चुनाव रुकता नहीं। यह देश चुनावों का ही तो है। इंसान चाहे भूखों मर जाए ,बलात्कार का शिकार हो जाए ,दरिद्र बनकर फिरता रहे या फिर बेरोजगार हो कर भौंकता रहे उसकी परवाह किसे है ! मया के इस संसार में ऐसे लोगो को भी माया के घेरे में डाल दिया जाता है ताकि उसी में उठते बैठते रहो। पांच किलो अनाज और महीने में दो हजार की मदद के जाल में पूरा देश तर -बतर है। कोई भी देश मूर्खो से भरा नहीं होता लेकिन आडम्बर और जाल के जरिये उसे मुख कुछ समय के लिए तो बनाया ही जा सकता है। जैसे एक तरफ सरकार गाय को बचाने के नाम पर गाय को हिंदुत्व से जोड़कर धार्मिक राजनीति के जरिए वोट की राजनीति करती है तो दूसरी तरफ यही भारत दुनिया का सबसे बड़ा बीफ एक्सपोर्टर भी है। और मजे की बात तो यही है कि इस देश के जितने भी दर्जन भर बीफ एक्सपोइटर कंपनियां है वे सभी हिन्दू ही चलाते हैं। जानते हैं आप कि इस बीफ एक्सपॉयर्ट से भारत को कितनी आयी होती है। करीब 16 लाख करोड़ सालाना की आय है इससे। लेकिन इन सबके बीच गाय की राजनीति चरम पर है। गोरक्षा के नाम पर न जाने संस्थाए इस देश में खड़ी हो गई है कोई जानता तक नहीं। अचानक इस देश में इतने गो सेवक पैदा हो गए हैं जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
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शराब अधिकतर लोग पीते हैं। शराब से सरकार को आय होती है। राजस्व बढ़ता है। लेकिन दूसरी तरफ नशामुक्ति अभियान भी यही सरकार चलाती है। समाज का यह दोहरा चरित्र बहुत कुछ कहता है। सरकार और पार्टी के लोग दिन रात कोई मसाला ढूंढते रहते हैं। ऐसा मसाला जिससे उसे तुरंत लाभ हो। राजनीतिक पार्टियां यही खेल करती है और जनता को मुर्ख बनाकर आगे निकल जाती है।
अब विपक्ष पर भी एक नजर। मोदी को हारने के लिए सब हल्ला तो खूब करते हैं लेकिन एक होना नहीं चाहते। दक्षिण भारत में हाल में ही दो बैठके हुई। एक बैठक केसीआर ने की और दूसरी बैठक स्टालिन ने की। दोनों बैठकों में कई विपक्षी पार्टी जुमे लेकिन एकता की बात नहीं हो पाई। इधर नीतीश कुमार भी एकता की बात कर रहे हैं लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी है। खुद नीतीश कुमार अपनी ही पार्टी को बचाने में जुटे हैं। अध्यक्ष खड़गे कई दफा कह गए कि विपक्षी एकता जरुरी है लेकिन आगे बढ़ते नहीं दिख रहे। लगता है असमंजस की स्थिति है। ममता बनर्जी ने तो साफ़ ही कर दिया है कि वह अकेले ही चुनाव लड़ेगी ,हालत तो यह है कि बंगाल में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने एक सीट क्या जीत ली ममता बिफर सी गई है। अब वह कांग्रेस और वाम दाल को बीजेपी की कतार में ही खड़ी कर रही है। ऐसे में विपक्षी एकता की कहानी कैसे बनेगी ? विपक्ष के भीतर का यही असमंजस बीजेपी को मजबूत करता है और फिर मोदी के इकबाल को ठोस दिखाता है। यह सब समय का ही खेल है। कोई जादू नहीं। न ही कोई चमत्कार। संभव यह भी हो सकता है कि ममता बीजेपी के साथ भी खड़ी दिखे और सभी क्षत्रप अपने अपने इलाको आपस में ही लड़ता दिखे। बीजेपी को इसमें लाभ ही लाभ है। कह सकते हैं कि अगर सब ऐसे ही चलता रहे तो अगले चुनाव में बीजेपी और भी मजबूत होकर सामने आएगी और तब देश की जनता का चाहे जो भी हो विपक्ष का खात्मा तो हो ही जाएगा। लेकिन इसके लिए बीजेपी फिर दोषी नहीं हो सकती।