This Reason Ganapati Is Different From All Lords: भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में गणेशोत्सव देशभर में उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसी शुभ दिन गणेश जी का जन्म (load genesha birthday) हुआ था। इस का बड़ा आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्त्व है। इसलिए इस दिन व्रत किया जाता है एवं अनेक विशिष्ट प्रयोग संपन्न किए जाते हैं। किसी भी मांगलिक कार्य में सबसे पहले गणपति का ध्यान और पूजन किया जाता है क्योंकि यह विघ्नों का नाश (ganesh chaturthi) करने वाले तथा मंगलमय वातावरण बनाने वाले कहे गए हैं। गणपति जी ही एक ऐसे देवता हैं, जो भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार की सफलताओं को एक साथ देने में समर्थ और सक्षम हैं।
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जानें गणेश का अर्थ
क्या है गणेश शब्द का अर्थ? जो समस्त जीव-जाति के ईश अर्थात् स्वामी हों। गणानां जीवजातानां यः ईशः-स्वामी स गणेशः। गणेशजी (lord ganesha) सर्वस्वरूप, परात्पर पूर्ण ब्रह्म साक्षात् परमात्मा हैं। गणपति- अथर्वशीर्ष में ‘त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रः’ के द्वारा उन्हें सर्वरूप कहा गया है। सृष्टि की उत्पत्ति के बाद उसके संचालन में आसुरी शक्तियों द्वारा जो विघ्न-बाधाएं उपस्थित की जाती हैं, उनका निवारण करने (ganesh chaturthi) के लिए स्वयं परमात्मा गणपति के रूप में प्रकट होकर ब्रह्माजी के सहायक होते हैं।
इस कारण से सर्वपूज्य हैं बप्पा
ऋग्वेद-यजुर्वेद के ‘गणांना त्वा गणपतिं हवामहे’ आदि मंत्रों में भगवान गणेश जी ( lord ganesha ) का उल्लेख मिलता है। वेदों में ब्रह्मा, विष्णु आदि गणों के अधिपति श्री गणनायक ही परमात्मा कहे गए हैं। धर्मप्राण भारतीय जन वैदिक एवं पौराणिक मंत्रों द्वारा अनादिकाल से इन्हीं अनादि तथा सर्वपूज्य भगवान गणपति का पूजन-अभ्यर्थन करते आ रहे हैं। (ganesh chaturthi) अतः गणपति चिन्मय हैं, आनंदमय, ब्रह्ममय हैं और सच्चिदानंदस्वरूप हैं।
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इसलिए कहा जाता है विनायक
गणपति जी को विनायक भी कहते हैं। विनायक शब्द का अर्थ है-विशिष्ट नायक। जिसका नायक-नियंता विगत है अथवा विशेष रूप (ganpati sthapana) से ले जाने वाला। वैदिक मत में सभी कार्यों के आरंभ में जिस देवता का पूजन होता है- वह विनायक हैं। इनकी पूजा प्रांत भेद से, सुपारी, पत्थर, मिट्टी, हल्दी की बुकनी, गोमय दूर्वा आदि से (Lord ganesh) आवाहनादि के द्वारा होती है। इससे पता लगता है कि इन सभी पार्थिव वस्तुओं में गणेशजी व्याप्त हैं।
21 दुखों का होता है अंत
गणेश चतुर्थी (ganesh chaturthi) का पूजन 21 दुख विनाश का प्रतीक है। हवन के मौके पर 3 दूर्वाओं के प्रयोग का तात्पर्य है- आणव, कार्मण और मायिक रूपी 3 बंधनों को भस्मीभूत करना। इससे जीव सत्त्वगुण संपन्न होकर मोक्ष को प्राप्त करता है। शमी वृक्ष को वह्नि वृक्ष कहते हैं। वह्नि-पत्र गणेशजी का प्रिय है। वह्नि-पत्र से गणेशजी ganesh pujan) को पूजने से जीव ब्रह्मभाव को प्राप्त कर सकता है। मोदक (modak) भी उनका प्रिय भोज्य है। मोद-आनंद ही मोदक है। इसलिए कहा गया है- आनंदो मोदः प्रमोदः। गणेशजी को इसे अर्पित करने का तात्पर्य है- सदैव आनंद में निमग्न रहना और ब्रह्मानंद में लीन हो जाना।
इस तरह करें पूजन
गणपति पूजन (ganpati pujan) के द्वारा परमेश्वर का ही पूजन होता है। मान्यता है कि जो साधक पवित्रभाव से गणेश चतुर्थी का व्रत करता है, उसकी बुद्धि एवं चित्तवृत्ति शुद्ध होती है। गणेश चतुर्थी के व्रत में गणेश मंत्र के जप से प्रभाव बहुगुणित होता है। अतः अपने अभीष्ट की सिद्धि के लिए इस व्रत को विधिपूर्वक एवं श्रद्धा-विश्वास (ganpati decoration) के साथ करना चाहिए।