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BJP Campaign South India: क्या बीजेपी का दक्षिण का अभियान सफल होगा?

BJP Campaign South India: उत्तर भारत में राजनीति की पूरी कमाई कर चुकी बीजेपी अब दक्षिण भारत को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित है। उत्तर भारत में बीजेपी के लिए अब बहुत कुछ नही बचा है। ज्यादा से ज्यादा एक दो राज्यों में सरकार बनाने की बात अभी तक अधूरी रह गई। बिहार और उड़ीसा जैसे राज्यों में अभी तक बीजेपी की अपने दम पर सरकार नही बनी है। यही बीजेपी की परेशानी है। शायद बिहार में बीजेपी को यह लाभ मिले भी नही। बिहार का मिजाज अभी तक बीजेपी के लिए तैयार नहीं है। क्या होगा यह कौन जानता है लेकिन एक बात साफ है कि बीजेपी किसी भी पार्टी के सहारे सरकार में जरूर शामिल रहती है और शायद आगे भी रहे।

उधर ओडिशा की भी यही कहानी है। कह सकते है कि ओडिशा में भी अभी तक बीजेपी का दाल नही गला है। शायद अभी वहां भी बीजेपी की सरकार संभव नहीं। बंगाल की कहानी भी वैसी ही है। बंगाल में जबतक ममता की राजनीति चलेगी बीजेपी आगे नहीं बढ़ सकती। हालांकि पिछले कुछ सालों में बीजेपी बंगाल में बड़ी ताकत के साथ पहुंच गई है और उसकी उपस्थिति भी है। लोकसभा की सीटें भी है और बीजेपी बंगाल की मुख्य विपक्षी पार्टी भी हो गई है। बीजेपी की यह बड़ी उपलब्धि है।

लेकिन इन उपलंधियों के बाद भी बीजेपी अधूरी है। उत्तर भारत से लेकर पूर्वोत्तर भारत में भी बीजेपी हर जगह पहुंच गई है लेकिन दक्षिण भारत में आज भी उसकी बड़ी एंट्री नही हो पाई। कर्नाटक में बीजेपी जरूर है। उसकी सरकार भी बनती बिगड़ती रहती है लेकिन कर्नाटक के अलावा दक्षिण के किसी एयर राज्यों में बीजेपी की एंट्री अभी तक नही हो पाई है।

यही वजह है कि भले ही बीजेपी देश और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई हो लेकिन वास्तविक अर्थों में यह पूरे देश की पार्टी नही बन पाई है। दक्षिण की कमी बीजेपी को आज भी परेशान किए हुए है। बीजेपी को लग रहा है कि इस बार दक्षिण से कुछ पाकर ही वह संपूर्णता को भी प्राप्त कर सकती है और सत्ता भी पा सकती हैं।

बीजेपी इन्ही सब कारणों को ध्यान में रखते हुए इस बार दक्षिण का अभियान चला रही है। लेकिन बड़ा सवाल तो यही है कि क्या बीजेपी दक्षिण के अपने अभियान में सफल होगी?

ऊपर से देखने में बीजेपी को भले ही सबकुछ आसान लगे लेकिन दक्षिण की राजनीति उतनी सहज भी नही है। यहां की राजनीति उलझी हुई है और उत्तर की राजनीति से बिल्कुल अलग भी। वहां की सामाजिक और सांस्कृतिक स्थितियां भी अलग है। जबतक बीजेपी वहां की सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश में घुलमिल नही जाती है तब तक बीजेपी को वहां अपनी जगह बनाना आसान नहीं है।

कर्नाटक में भी बीजेपी की सहयोगी जेडीएस पार्टी है। जेडीएस निकल जाए तो बीजेपी सरकार बना नही सकती। कर्नाटक में बीजेपी लिंगायत समाज में पकड़ रखती है लेकिन अब लिंगायत लोग भी बीजेपी से विलग होते गए है। पिछले साल का विधान सभा चुनाव से साफ हो गया है कि बीजेपी की तरह कांग्रेस ने भी लिंगायत में तेजी से अपने सरोकार को तैयार किया है। फिर कर्नाटक से अलग बीजेपी की पकड़ दक्षिण के किसी भी राज्य में नही है।

तेलंगाना में ही उसे कुछ सीटें तो मिल जाती है और कुछ सांसद भी चुनाव जीत जाते है लेकिन अभी वहां सरकार बनाने की हालत में नही है। यही हाल आंध्र को है वहां बीजेपी के पास एक फीसदी वोट से भी कम है। यही वजह है कि इस बार बीजेपी टीडीपी और पवन कल्याण की पार्टी के साथ गठजोड़ कर सकी है। आंध्रप्रदेश में कम्मा और कापू समुदाय की मजबूत राजनीति चलती है। चंद्रबाबू नायडू कम्मा समुदाय की राजनीति करते हैं जबकि पवन कल्याण के पास कापु समुदाय का साथ है। इसके साथ ही बीजेपी के साथ भी राज्य की दो बड़ी पार्टियां है। ऐसे में चुनाव किसी तरह से जीते जायेंगे यह कुछ भी नही कहा जा सकता।

तमिलनाडु की हालत भी दूसरे तरह को है। तमिलनाडु में पहले बीजेपी का तालमेल अन्नाद्रमुक के साथ था जो खत्म हो चुका है। लेकिन बीजेपी कई और दलों के साथ तालमेल करती दिख रही है। तमिल मनीला कांग्रेस के साथ टीटीवी दिवाकरण और ओ पानीरसेलवम के साथ गठजोड़ करती दिख रही है। बहुत संभावना है की इस बार के चुनाव में तमिलनाडु में बीजेपी को कुछ हाथ लग जाए। उधर केरल में अभी तक बीजेपी को कुछ हासिल नहीं हुआ है। केरल में बीजेपी के पास एक छोटा वोट बैंक जरूर तैयार है लेकिन उसके पास कोई सीट नही है। ऐसे में इस बार बीजेपी कुछ खास करने को जुगत में है। बीजेपी कुछ कर पाती है तो उसे सरकार बनाने में मदद मिल सकती है और ऐसा नही हुआ तो बीजेपी की मुश्किल बढ़ सकती हैं।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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