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भारत का एक ऐसा शहर जहां कुछ घंटों के लिए पुरुष बन जाते हैं महिलाएं !

अगर आपने कपिल शर्मा का कॉमेडी शो देखा होगा तो आपने ये जरूर देखा होगा कि कैसे वहां के मेल कॉमेडियन महिलाओं की भूमिका में लोगों को हंसाते नजर आते हैं.. लेकिन ये सबकुछ काल्पनिक होता है। ये अदाकारी भले ही लोगों को हंसाने के लिए की जाती है मगर रील लाइफ से परे रीयल लाइफ में सचमुच में ऐसा होता है..अपने ही देश के एक शहर के पुरूषएक खास मौके पर महिला बन जाते हैं।

ये सुनने में आपको थोड़ा अटपटा जरूर लग रहा होगा लेकिन ये सच है, तो आइए आपको लेकर चलते हैं पश्चिम बंगाल के एक ऐसे ही शहर चंदन नगर में जहां पर अपने प्राचीन सामाजिक परंपरा को जिंदा रखने के लिए वहां के पुरूष ऐसा करते हैं। आप भले ही इसे वैचारिक पिछड़ापन माने मगर आधुनिक तौर तरीकों के बीच आज भी ये प्रथा जीवित है। इसके पीछे की वजह जानकर भी आप हैरान हो जाएंगे, दरअसल ये पुरूष मां जगधारी देवी को प्रसन्न करने के लिए ये सब करते हैं। ये परंपरा कोई दस बीस साल पुरानी नहीं है बल्कि पिछले सवा दो सौ वर्षों से ऐसा हो रहा है।

पश्चिमी बंगाल राज्य के जनपद हुगली अंतर्गत चदंननगर नामक शहर में आज भी मां जगधारी देवी की पूजा-अर्चना औरविसर्जन पुरुष करते हैं। वे इस दौरान महिलाओं की तरह साड़ी पहनते हैं, श्रंगार करते और सिंदूर लगाये रखते हैं। आप भले ही इसे आस्था कहें या अंधविश्वास लेकिन पिछले सवा दो सौ वर्ष से ये सिलसिला यूं ही बदस्तूर जारी है। आधुनिक युग में पुरुषों का साड़ी पहनकर देवी पूजा करनाभले ही अजीब लगता हो, परइस परम्परा को मानने वालेपुरूषको इसमें कुछ भी गलत नजर नहीं आता। यही वजह है कि धर्मगुरु भी इस मामले में चुप हैं।

इस परम्परा की शुरुआत क़रीब ढाई सौ साल पहले तत्कालीन बंगाल के राजा कृष्णचंद दीवान दाताराम सूर की बेटी की ससुराल चंदननगर के गौरहाटी से हुई,  वो मां जगधारी की पूजा करती थी। एक बार राजा की बेटी ने आम लोगों से भी देवी मां की पूजा करने की अपील की। उस समय महिलाओंके लिए पर्दा करना जरूरीथा। उन दिनों अंग्रेजों के डर से महिलाएंशाम के बाद घर से बाहर नहीं निकलती थीं। उनके लिएदेवी विसर्जन के लिए घर से बाहर निकलना संभव नहीं था।तब माता के पुरूष भक्तों ने काफी सोच विचार के बादसाड़ी पहनकर पूजा-विसर्जन करने का निर्णय लिया। 

जो पुरुष इस जिम्मेदारी को उठाने के लिए सहमत थे,तब पहली बार उन्होने साड़ी पहनकर सिन्दूर के साथ मां जगधारी देवीकी पूजा कर विसर्जन किया था।  तभी से यह परम्परा शुरु हो गयी, जो आज तक चली आ रही है।

admin

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