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Chhatt Puja 2022: इस वजह से इतनी धूमधाम से मनाई जाती है छठ पूजा, ये है पूजा के पीछे का इतिहास और महत्व

छठ पूजा (Chhatt Puja 2022) की परंपरा को लेकर कई बातें कही जाती है. एक मान्यता के अनुसार जब राम-सीता 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया

नई दिल्ली: बिहार में छठ पूजा धूमधाम से मनाई जाती है. छठ (Chhatt Puja 2022) सिर्फ एक पर्व नहीं है, बल्कि महापर्व है, जो पूरे चार दिन तक चलता है. नहाए-खाए से इसकी शुरुआत होती है, जो डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होती है. ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है. पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक मास में. पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए ये पर्व मनाया जाता है. वहींं चलिए छठ पूजा के आज पहले दिन के मौके पर आपको बताते हैं आखिर क्यों मनाया जाता है ये त्योहार?

छठ पूजा (Chhatt Puja 2022) की परंपरा को लेकर कई बातें कही जाती है. एक मान्यता के अनुसार जब राम-सीता 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया. पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया. मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया. इससे सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी. सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था. इसलिए ये पूजा की जाती है।

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इस काल से हुई थी छठ पूजा की शुरूआत

वहीं हिंदू मान्यता के अनुसार कथा प्रचलित है कि छठ (Chhatt Puja 2022) पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी. इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था. कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे. सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने. छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है. कहा जाता है कि जब पांडव सारा राजपाठ जुए में हार गए, तब द्रोपदी ने छठ व्रत रखा था. इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया था. लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है. इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई.

ये कहानी भी बहुत प्रचलित

इतना ही नहीं इन कथाओं के अलावा एक और किवदंती भी प्रचलित है. पुराणों के अनुसार, प्रियव्रत नामक एक राजा की कोई संतान नहीं थी. इसके लिए उसने हर जतन कर कर डाले, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. तब उस राजा को संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने उसे पुत्रयेष्टि यज्ञ करने का परामर्श दिया. यज्ञ के बाद महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मरा पैदा हुआ. राजा के मृत बच्चे की सूचना से पूरे नगर में शोक छा गया.

कहा जाता है कि जब राजा मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे, तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा. इसमें बैठी देवी ने कहा, ‘मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं.’ इतना कहकर देवी ने शिशु के मृत शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो उठा. इसके बाद से ही राजा ने अपने राज्य में यह त्योहार मनाने की घोषणा कर दी।

छठ पूजा का ये है महत्व

हिंदी पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य भगवान स्वास्थय संबंधी कई समस्याओं को ठीक करते हैं और साथ ही सुख समृद्धि भी देते हैं. लोग सूर्य देवता से स्वास्थय व समृद्धि के लिए कठिन व्रत व पूजन करते हैं.
इसमें व्रत, नदी के पावन जल में नहाना, सूर्योदय पर पूजा और सूर्यास्त पर पूजा और साथ ही सूर्य को जल चढ़ाना शामिल होता है. चार दिनों के इस पर्व में 36 घंटों का उपवास भी रखा जाता है.

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Team News Watch India

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