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विपक्षी एकता की राजनीति को आगे बढ़ाती कांग्रेस असम में एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन नहीं करेगी |

Political News: विपक्षी एकता भी नफे -नुकसान को देखकर ही किया जा रहा है। जब किसी पार्टी को लगता है कि गठबंधन के सहारे सामने वाले को पस्त किया जा सकता है तो गठबंधन बनने में कोई अड़चन नहीं आते। लेकिन जब वोटों को लेकर लाभ -हानि का अंक गणित विपरीत जाता दिखता है तो कोई भी पार्टी गठबंधन से गुरेज करने लगता है। कुछ इसी तरह की कहानी असम में देखने को मिल रही है।


पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने 11 विपक्षी दलों के साथ गठबंधन किया था. इस गठबंधन में एआईयूडीएफ पार्टी भी शामिल थी। यह पार्टी अजमल की है। असम की राजनीति में इस पार्टी की अपनी हैसियत है और हर बार वह चुनाव जीतती रही है। पिछले 2021 के चुनाव में भी इस पार्टी को 13 सीटें मिल गई थी। लेकिन अब कांग्रेस इस पार्टी को गठबंधन में शामिल करने से इंकार कर दिया है। हालांकि अभी यह शुरुआत है। आगे क्या होगा इसे देखने की जरूरत है लेकिन असम के कांग्रेस नेताओं ने जो केंद्र को रिपोर्ट दिया है, उसमे कहा गया है कि अजमल की पार्टी के साथ अगर गठबंधन होता है तो पार्टी को नुकसान हो सकता है। बता दें कि कांग्रेस असम में सरकार रही है लेकिन जब से हिमंत ने कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी का दामन पकड़ा है कांग्रेस काफी कमजोर हुई है। कांग्रेस के कई और बनता बीजेपी के साथ चले गए हैं (Congress )

लेकिन कांग्रेस को यह लग रहा है कि संगठन को मजबूत करके अगर चुनाव लड़ा जाए तो परिणाम बेहतर आ सकते हैं।
असंम में लोकसभा की 14 सीटें हैं। पिछले 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 9 सीटें मिले थी जबकि कांग्रेस 3 सीट जीतने में सफल हुई और एक सीट पर एआईयूडीएफ और एक सीट पर निर्दलीय चुनाव जीतने में सफल हुए थे। अब कांग्रेस की नजर सभी 14 सीटों पर टिकी हुई है। कांग्रेस को लग रहा है कि अजमल की पार्टी को अलग करके बाकी की 11 पार्टियों के साथ गठबंधन करके असम की सभी लोकसभा सीटों को साधा जा सकता है।असम को लेकर कांग्रेस के भीतर कुछ ज्यादा ही मंथन जारी है। कांग्रेस की समझ है कि असम के कई इलाकों में वाम दल भी मजबूत हैं और बाकी कि कुछ पार्टियां भी अपने अपने इलाके में काफी मजबूत है। ऐसी हालत में सूबे की सभी सीटें जीती जा सकती है। लेकिन यह सब इतना आसान है ?

लेकिन असली कि असम(Assam) में अजमल की पार्टी से गठबंधन करने से कांग्रेस क्यों पीछे हट रही है ?असम के प्रभारी जीतेन्द्र सिंह ने इसको लेकर एक रिपोर्ट पार्टी अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे को दिया है जिसमे कहा गया है कि बदले माहौल में अजमल की पार्टी से गठबंधन करना ठीक नहीं होगा। उन्होंने साफ़ तौर पर इसका ऐलान भी कर दिया है। कहा जा रहा है कि विधान सभा चुनाव में अजमल गठबंधन में रहकर चुनाव लड़े थे और 13 सीट भी जीत गए थे। लेकिन चुनाव के तुरंत बाद कांग्रेस ने अजमल बदरुद्दीन की पार्टी से नाता तोड़ लिया था। कहा गया कि यह एक मुस्लिम पार्टी है और केवल मुसलमानो के लिए काम करती है। जबकि कांग्रेस सेक्युलर राजनीति में यकीन करती है और समाज के सभी लोगों को साथ लेकर चलती है।

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उधर असम के राज्य प्रमुख भूपेन बोरा ने कहा है कि कांग्रेस अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले वोटों के विभाजन की जांच करेंगे। क्योंकि गैर बीजेपी दलों के बीच वोटों के विभाजन के कारण बीजेपी को हमेशा चुनावी लाभ मिलता रहा है। कांग्रेस को लग रहा है कि बीजेपी को लाभ पहुंचाने में अजमल की पार्टी काम करती रही है। और यही वजह है कि कांग्रेस अब अजमल की पार्टी से बचना चाहती है।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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