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मध्यप्रदेश में कमलनाथ और शिवराज आमने-सामने, जानिए कौन किस पर भारी?

Madhya Pradesh: अंधभक्तों की हमेशा यही चाहत होती है कि जिसकी वे भक्ति कर रहे हैं सब कुछ उसके फेवर में ही हो और उसकी पार्टी और उसके नेता सदा आगे बढ़ते रहे। लेकिन ऐसा होता कहां है। यही वजह है कि नेता और पार्टियां अंधभक्तों की राह पर नहीं चलते। उनकी सीख को भी नहीं मानते और उनके बताये रास्ते पर भी नहीं चलते। नेता जानते हैं कि यह आदमी उसकी भक्ति में लीन है। यह भक्ति कुछ लाभ के लिए है तो कुछ विश्वास के साथ है। यह हाल सभी नेताओं के साथ है और सभी पार्टियों के साथ भी।

Madhya Pradesh

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लेकिन बीजेपी के साथ अंधभक्तों की टोली बड़ी है। बीजेपी से भी बड़ी टोली पीएम मोदी, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ के साथ है। बीजेपी में दो चार और और ही हिंदुत्व के चेहरे के रूप में सामने प्रकट हो रहे हैं। कह सकते हैं कि कई नेता हिंदुत्व का चेहरा बनने की कतार में खड़े हैं। एक तो असम के मुख्यमंत्री सरमा है तो दो से तीन दिल्ली के नेता है। हालांकि इन नेताओं को भी बीजेपी के भीतर कोई बड़ी मान्यता नहीं है। क्योंकि इनमें से कई बीजेपी के ओरिजनल नहीं है। कोई कांग्रेस से आयातित है तो कोई अन्य दूसरी पार्टियों से। याद कीजिये उस कपिल मिश्रा को। जब आम आदमी पार्टी की राजनीति वे करते थे तो किस तरह की बात करते थे और आज उनका हिंदुत्व जितना जाग्रत हो गया है?

मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) हिंदुत्व की प्रयोगशाला रहा है। इस सूबे में संघ की सबसे ज्यादा पैठ है और बीजेपी की मजबूती भी। एक ज़माना था जब कांग्रेस की यहां टूटी बोलती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है। कह सकते हैं पिछले 20 सालों में अधिकतर एमपी बीजेपीमय हो गया है। यह सब क्यों हुआ यह कोई नहीं जानता। इस सूबे की मीडिया तो पहले ही सत्ता सरकार के हाथ चली गई थी। कभी भी इस प्रदेश के अधिकतर पत्रकारों ने कोई पहली खबर यहां से ब्रेक नहीं किया। परिपाटी यही है कि यहां का सरकारी पीआरडी विभाग पत्रकारों के लिए खबर का श्रोत है। सरकारी विज्ञप्ति पत्रकार लाते हैं और फिर आगे कुछ लिखते हैं। अधिकतर मामले में यही सब चलता है।

Kamal Nath and Shivraj face to face in Madhya Pradesh

पिछले 20 सालों से बीजेपी की यहां सरकार है। पत्रकार बीजेपी के लिए बहुत कुछ करते रहे हैं। दोनों एक दूसरे के रहे हैं। अन्य राज्यों के पत्रकारों की तरह यहां के पत्रकार दुखी नहीं है। आर्थिक परेशानी से नहीं जूझते। लेकिन अब पत्रकार भी बीजेपी के निशाने पर हैं। पत्रकारों के कुछेक समूह ने अब बीजेपी को घेरना शुरू किया है। उनकी नीतियों पर सवाल उठाये जाने लगे हैं। अब बीजेपी बिलबिला रही है। पत्रकारों को भी टारगेट कर रही है। यह हाल कमलनाथ के समय भी था। कमलनाथ भी पत्रकारों को मिलकर ही शासन करते रहे। उनकी भी कई योजना ठीक नहीं थी। लेकिन पत्रकारों ने उसे दबा दिया।

अब कमलनाथ और सीएम शिवराज (Madhya Pradesh) आमने-सामने है। बीजेपी के कई नेता परीत्य से बाहर निकल गए हैं। और यह लगातर जारी भी है। कह सकते हैं कि हर दिन और हर सप्ताह बीजेपी के कई नेता कांग्रेस में समा रहे हैं। पिछले 20 सालों तक यही सब कांग्रेस के साथ भी हो रहा था। कांग्रेस के नेता निकलकर बीजेपी में चले जा रहे थे। लेकिन अब सब कुछ उलटा पड़ता जा रहा है। शिवराज सिंह आंखों के सामने सब कुछ देख रहे हैं। पार्टी की मजबूती के लिए वह सब कुछ हैं लेकिन खेल जमता नहीं दिखता उधर कमलनाथ अभी पूरी ताकत के साथ बीजेपी के साथ न सिर्फ मुकाबला कर रहे हैं बल्कि बीजेपी को निपटाने में लगे हैं।

खबर आ रही है कि इसी महीने में करीब दर्जन भर बीजेपी विधायक कांग्रेस (Madhya Pradesh) के साथ जुड़ने वाले हैं। खबर ये भी है कि सिंधिया समर्थक भी कई नेता अब कमलनाथ के साथ बैठकें कर रहे हैं। ऐसे में शिवराज की मुश्किले बढ़ी हुई है। हालांकि संगठन के स्तर पर बीजेपी अभी भी कांग्रेस पर भारी पड़ती दिख रही है लेकिन जनता का जो मिजाज है वह बीजेपी के खिलाफ ही है। लोग कहते जा रहे हैं कि शिवराज दो दशक से राज्य के सीएम है लेकिन राज्य में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है जिसपर गुमान किया जाए। घोटाले तो खूब हुए हैं और बेरोजगारी खूब बढ़ी है। महिलाओं के साथ अभद्रता यहां सबसे ज्यादा है और गरीबी भी कम नहीं। सरकारी योजना चलाकर सबका पेट भरा तो जाता है लेकिन स्थाई निदान कुछ भी नहीं। लोगों के ये बयान अब बीजेपी पर भारी पड़ रहे हैं। शिवराज सिंह कुछ बोल नहीं पाते। पार्टी के भीतर भी शिवराज के खिलाफ खेमेबंदी बढ़ी हुई है। उधर संघ के लोग भी शिवराज से अब बहुत खुश नहीं है। हालांकि अभी भी शिवराज के नाम पर कुछ वोट मिल सकते हैं। बाकी नेताओं की कोई भूमिका नहीं है। जनता की नजरों में बाकी नेताओं की कोई अहमियत भी नहीं।

कमलनाथ खुश है लेकिन चुनौतियों से भरे हुए हैं। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती टिकट वितरण की है। बीजेपी उम्मीदवारों की एक सूची निकाल चुकी है लेकिन सामने सूची जारी करने की बड़ी चुनौती है। लेकिन खबर आ रही है कि इसी महीने में कांग्रेस भी सौ सीटों पर उम्मीदवारों काे उतारने का फरमान जारी करेगी। बीजेपी भी देखना चाहती है। लेकिन बीजेपी और कांग्रेस की यह लड़ाई जनता के लिए काफी मनोरंजक भी है और लुभावनी भी। जनता को कई तरह के लाभ जो मिल रहे हैं।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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