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BIRTHDAY SPECIAL: लाल बहादुर शास्त्री को यूं ही नहीं कहा जाता है भारत का ‘लाल’, ईमानदारी और सादगी के लिए आज भी हर हिंदुस्तानी के दिल में बसते हैं!

Lal Bahadur Shastri Jayanti : उनकी सादगी और साहस से हर कोई परिचित है…उनकी एक आवाज से देशवासियों ने एक वक्त का खाना तक छोड़ दिया था…वो विश्व की शांति…विकास और कल्याण में ही विश्वास रखते थे…देखने में तो सधारण थे…लेकिन उनका व्यक्तित्व अद्भुत था…वो देश के ऐसे प्रधानंमत्री थे…जो केवल लोगों के लिए जीते थे…वो आर्दश जीवन की पहचान थे…कौन थे वो…जानिए

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जिनका नाम सुनते ही असीम श्रद्धा का भाव उमड़ पड़ता है, जो बाहर से विनम्र पर दिखते थे और भीतर से दृढ़ निश्चयी थे, जिन्होंने देश के लिए की निस्वार्थ सेवा की, जिन्होनें देश के जवानों और किसानों को सफलता का मंत्र दिया, जो आज भी सादगी की मिसाल हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं लाल बहादुर शास्त्री की।जिन्होंने 18 महीने के कार्यकाल में देश के सत्ताधीशों को मानो ये समझा दिया था की देश के बड़े और संवैधानिक पद पर बैठने से और लोगों के बीच बड़ी- बड़ी बातें करने से कुछ नहीं होता। अगर आपको जनता ने चुना है, और इस उम्मीद के साथ चुना है की आप उनके हक की बात करेंगे।तो फिर आपको लोगों के लिए काम करना होगा। क्योंकि उनको आपसे एक आस रहती, की जिसको हमने चुना है वो हमारे साथ कुछ गलत नहीं होने देगा।

यू हीं कोई लाल बहादुर शास्त्री नहीं बन जाता

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म मुगलसराय की रेलवे कॉलोनी में शारदा प्रसाद और रामदुलारी देवी के घर में 2 अक्तूबर 1904 को हुआ था। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण लोग प्यार से इन्हें नन्हे कहकर बुलाया करते थे। लाल बहादुर शास्त्री जब 18 महीने के हुए तब उनके पिता का निधन हो गया। पति की मौत के बाद इनकी मां रामदुलारी अपने पिता हजारीलाल के घर मिर्जापुर चली गईं। जहां ननिहाल में रहते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने प्राथमिक शिक्षा ली। वे नदी तैरकर स्कूल जाते थे।

अपने पिता की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री का बचपन उनके ननिहाल में ही गुजरा, एक बार की बात है जब शास्त्री जी अपने ममेरे भाईयों के साथ बगीचे में फल तोड़ने गए, लेकिन तभी वहां अचानक माली आ गया…जिसको देखकर सभी वहां से भा गए, लेकिन छोटा होने के कारण शास्त्री जी को माली ने पकड़ लिया, और एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। जिससे शास्त्री जी रोने लगे। अपने आंसु पोछते हुए माली से कहा –कि तुमने मुझे मारकर अच्छा नहीं किया, क्या तुम्हें मालूम नहीं की मेरे पिता नहीं है। नन्हे बालक के इन शब्दों को सुनकर माली को बड़ी दया आ गईय़ उसने शास्त्री जी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा की तब तो मेरे बेटे तुम्हें और भी भले काम करने चाहिएमाली के इन शब्दों ने शास्त्री जी के जीवन में इतनी गहरी छाप छोड़ी की उस माली की बात उन्हें हमेशा याद आती थी…

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अध्यापक ने लिया था शास्त्री जी के लिए एक संकल्प

कहते है कि समय सदैव बदलता रहता है। लाल बहादुर शास्त्री के जीवन में भी बदलाव आया।जब शास्त्री जी ने हरिशचंद्र हाइस्कूल में प्रवेश लिया…ये वो भूमि थी। जहां से कई राष्ट्रवादी नेता निकले। वास्तव में हरिशचंद्र हाइस्कूल शास्त्री जी के जीवन में भी मील का पत्थर साबित हुआ। निशकामेश्वर प्रसाद मिश्र शास्त्री जी के टीचर थे। उन्होनें मन ही मन ये संक्लप ले लिया था। की मैं इस बालक को जब तक जिदंगी के एक अच्छे मुकाम तक नहीं पहुंचा दूंगा। तब तक चैन से नहीं बैठूंगा और हुआ भी कुछ ऐसा ही निशकामेश्वर प्रसाद मिश्र ही वो व्यक्ति थे। जिन्होनें शास्त्री जी के मन में देशभक्ति की भावना को जगाया था।

लाल बहादुर शास्त्री को पैसों से कोई प्यार नहीं था। वो हमेशा ये सोचते थे., की जितने में घर का गुजारा हो जाए बस उतना ही खर्च करना चाहिए। इसी से जुड़ा एक किस्सा आपको बताते है। जब शास्त्री जी PEOPLE OF THE SERVENT SOCIETY से जुड़े तो इन्हे हर महीने 60 रुपये मिलते थे। एक बार शास्त्री जी के घर उनका एक दोस्त आया जिसे अपने बेटे की शादी करनी थी। और वह शास्त्री जी से 100 रुपये की मदद मांगी…लेकिन शास्त्री जी ने उसे ये कहकर मना कर दिया की मैने तो कभी 100 रुपये देखे ही नहीं। इसलिए मै तुम्हें नहीं दे सकता।

जब प्रधानमंत्री होते हुए भी लिखे अखवारों में लेख

आज के राजनेताओं की छवि लंबे-चौड़े काफिले के साथ गाड़ियों में बैठे शख्स के तौर पर होती है। लेकिन लालबहादुर शास्त्री ऐसे नहीं थे। उन्होंने प्रधानमंत्री होते हुए एक भी रुपये का गलत फायदा नहीं उठाया।धानमंत्री रहने के दौरान उन्हें 500 रुपए तनख्वाह मिलती। लेकिन इतने में उनके घर के सभी सदस्यों का गुजर-बसर संभव नही था। इसलिए वे पद पर रहते हुए भी अखबारों में लेख लिखा करते थे।

भारत-पाक युद्ध के दौरान जब अमेरिका से शास्त्री जी को धमकी मिली कि अगर आप युद्ध बंद नहीं करेंगे तो हम भारत को गेहूं भेजना बंद कर देंगे। दरअसल, उस वक्त भारत गेहूं उत्पादन में आत्मनिर्भर नही था। इस समस्या का समाधान खोजने लिए उन्होंने सबसे पहले अपने घर के सदस्यों से कहा कि हम लोग हफ्ते में एक वक्त भोजन नहीं करेंगे।. इसी फॉर्मूले को उन्होंने भारत की जनता से अपनाने की अपील की ताकि अमेरिका के आगे झुकना न पड़े। शास्त्री जी की अपील का असर ऐसा हुआ.की लोगों ने व्रत रखकर कई किलो अनाज देश के लिए बचाया।

जितना चर्चित नाम उतनी चर्चित हुई मृत्यु

कुछ राज़ वक्त के साथ हमेशा के लिए दफन हो जाते हैं,जिनका कोई पुख्ता सबूत हमें इतिहास उपलब्ध नहीं करा पाता है। ताशकंद में उस रात ऐसा क्या हुआ था कि अचानक शास्त्री जी की मौत हो गई…ये आज भी हिंदुस्तान में चर्चा का विषय है। बता दें कि साल 1965 की भारत-पाक लड़ाई के बाद ताशकंद में समझौता हो रहा था। जहां 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर करार के महज 12 घंटे बाद 11 जनवरी की सुबह अचानक शास्त्री जी की मौत हो गई थी।कहा जाता है कि उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई। 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच अप्रैल से 23 सितंबर के बीच 6 महीने तक युद्ध चला था…युद्ध खत्म होने के 4 महीने बाद जनवरी 1966 में भारत-पाकिस्तान के शीर्ष नेता तब के रूसी क्षेत्र में आने वाले ताशकंद में शांति समझौते के लिए इकट्ठा हुए थे…पाकिस्तान की ओर से राष्ट्रपति अयूब खान वहां गए थे। जबकि भारत की तरफ से तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पहुंचे थे…10 जनवरी को दोनों देशों के बीच शांति समझैता हो गया… ताशकंद में भारत-पाकिस्तान समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद शास्त्री पर काफी दबाव था…पाकिस्तान को हाजी पीर और ठिथवाल वापस देने के कारण शास्त्री जी की भारत में काफी अलोचना हुई ।

लाल बहादुर शास्त्री की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई या फिर किसी और कारण से, ये सवाल आज भी देश के लोगों के लिए एक गुत्थी बनी हुई है, लेकिन लाल बहादुर शास्त्री आज भी जिंदा है।

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