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Swaroopanand Saraswati दुनिया को कह गए अलविदा, नरसिंहपुर में ली अंतिम सांस

नई दिल्ली: द्वारका एवं शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Swaroopanand Saraswati ) का रविवार को निधन हो गया। उन्होंने 99 साल की उम्र में मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में आखिरी सांस ली। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती (Swaroopanand Saraswati ) को हिंदुओं का सबसे बड़ा धर्मगुरु माना जाता था। वे गुजरात में द्वारका शारदा पीठम और 1982 में बद्रीनाथ में ज्योतिर मठ के शंकराचार्य बने।

Swaroopanand Saraswati चार मठों में से दो के स्वामी थे

1300 साल पहले आदि गुरु भगवान शंकराचार्य ने हिंदुओं और धर्म के अनुयायियों को संगठित करने और धर्म के उत्थान के लिए पूरे देश में 4 धार्मिक मठ बनाए। इन चार मठों में से एक के शंकराचार्य जगतगुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Swaroopanand Saraswati ) थे, जिनके पास द्वारका मठ और ज्योतिर मठ दोनों थे। 2018 में, जगतगुरु शंकराचार्य का 95 वां जन्मदिन वृंदावन में मनाया गया।

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जगतगुरु स्वरूपानंद जी सरस्वती ने हरियाली तीज के दिन अपना 99वां जन्मदिन मनाया। उनका जन्म सिवनी जिले के जबलपुर के निकट दिघोरी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

9 साल की उम्र में घर छोड़कर उन्होंने हिंदू धर्म को समझने और उत्थान के लिए धर्म की यात्रा शुरू की। एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे स्वरूपानंद सरस्वती ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी पहुंचने के बाद स्वामी करपात्री महाराज से वेद और शास्त्र सीखे।

स्वरुपानंद सरस्वती (Swaroopanand Saraswati ) स्वतंत्रता संग्राम में जेल भी गए थे, इस दौरान उन्हें एक क्रांतिकारी साधु के रूप में जाना जाता था। उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में भी योगदान दिया।

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