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क्यों लगाया जाता है माथे पर तिलक, शास्त्रों में मिलता है इसका वर्णन ?

Dharam karam News: हिंदू धर्म में प्रत्येक शुभ अवसर पर माथे पर तिलक लगाना प्रसन्नता व सफलता का सूचक माना जाता है। किसी भी महत्वपूर्ण कार्य के लिए घर से निकलने पर रोली, हल्दी, चन्दन या कुंकुम का तिलक लगाया जाता है। तिलक लगाने का तरीका भी अलग-अलग है, कुछ लोग अंगूठे से तिलक लगाते हैं तो कुछ लोग अनामिका उंगली से तिलक लगाते हैं।
भारतीय ज्योतिष के मुताबिक प्रत्येक राशि मानव शरीर के किसी न किसी अंग का प्रतिनिधित्व करती है, जैसे मेष राशि सिर-माथा, वृष राशि मुख, मिथुन राशि बाहें, कर्क हृदय, सिंह उदर इत्यादि। ज्योतिष शास्त्र की प्रसिद्ध प्राचीन लाल किताब मंगल ग्रह को बलवान करने के लिए माथे पर तिलक लगाने का सुझाव देती है। माथा राशि चक्र की प्रथम मेष राशि का सूचक है, मेष राशि में सूर्य उच्च का होता है तथा मेष राशि मंगल की स्वराशि यानी खुद की राशि है। माथे पर तिलक लगाने से मंगल को अपनी राशि में स्थापित किया जाता है।
मंगल शक्ति, पराक्रम का ग्रह है, मंगल बलवान होने से व्यक्ति पराक्रमी, शूरवीर होता है। अगर किसी का मंगल कमजोर है, तो माथे पर रोली आदि से लाल रंग का तिलक लगाकर मंगल के बल की वृद्धि की जा सकती है, ऐसा प्राचीन लाल किताब का मत है। प्राचीन काल से ही किसी भी शुभ कार्य से पहले तिलक लगाने की परम्परा चली आ रही है। तिलक लगाकर उस पर चावल के दाने लगाना बेहद कल्याणकारी माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से देखें तो चावल का संबंध चन्द्रमा से है। जहां चन्द्रमा शांतिप्रिय शीतल ग्रह है, वहीं मंगल शक्ति, पराक्रम का ग्रह है, दोनों की ऊर्जा मिलने से शांतप्रिय ढंग से व्यक्ति न्यायपूर्ण कार्य कर सफलता हासिल करता है।


भारतीय संस्कृति में सदियों से प्रत्येक शुभ कार्य, पूजा-अर्चना, प्रमुख संस्कारों में, शुभ यात्रा के प्रारम्भ पर माथे पर तिलक लगाकर उसे अक्षत से विभूषित किया जाता है। धर्मशास्त्रों में अलग-अलग उंगली से तिलक लगाने का अलग-अलग फल वर्णित है, जैसे अंगूठे से तिलक लगाना पुष्टिदायक माना गया है। मान्यताओं के अनुसार देवकार्य में अनामिका उंगली का प्रयोग, पितृ कार्य में मध्यमा उंगली का प्रयोग, ऋषि कार्य में कनिष्ठिका उंगली का प्रयोग तथा तंत्र कार्य में प्रथमा उंगली का प्रयोग किया जाता है। ब्रहम्वैवर्त पुराण में कहा गया है कि स्नान, होम, देव और पितृकर्म करते समय यदि तिलक न लगा हो, तो यह सब कार्य निष्फल हो जाते हैं। पूजा-पाठ करने वाले कर्मकाण्डी ब्राह्मण को चाहिए कि वह तिलक धारण करने के बाद ही संध्या तर्पण आदि सम्पन्न करे। आमतौर पर चन्दन, कुकुंम, केसर, हल्दी, भस्म आदि का तिलक लगाया जाता है, चन्दन का तिलक लगाने से संकटों से रक्षा एवं चन्दन के तिलक की सुगन्ध लक्ष्मी को आकर्षित करती है।

भक्तों के द्वारा अपने मस्तिष्क पर, भगवान पर चढ़ाने से बचे हुए चन्दन को लगाना बहुत शुभ माना जाता है। कुकुंम में हल्दी मिलाकर तिलक लगाने से मस्तिष्क के स्नायुओं का संयोजन प्राकृतिक रूप से हो जाता है। यज्ञ भस्म लगाने से सौभाग्य की वृद्धि होती है। ज्योतिष शास्त्र के निर्देश अनुसार विभिन्न प्रकार के तिलक लगाने से उनसे सम्बन्धित ग्रह शांत होते हैं। ललाट पर टीका, तिलक जिस स्थान पर लगाया जाता है, वह स्थान आज्ञा चक्र है। इस केन्द्र में जब टीका, तिलक लगाया जाता है तो उसके प्रभाव से मानव शरीर में विद्यमान आज्ञाचक्र को नियमित रूप से शुभ उर्जा प्राप्त होती रहती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मनुष्य के मस्तिष्क के माध्य भाग में श्री हरि नारायण भगवान विष्णु का निवास है, इसलिए तिलक ठीक इसी स्थान पर लगाया जाता है।

Prachi Chaudhary

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