ट्रेंडिंग

क्या इंडिया गठबंधन से अलग होगी सीपीएम ?

Political News: राजनीति तभी तक साझे की चलती है जब तक मकसद पूरा होता रहता है। मकसद जैसे साझेदारी अक्सर ख़त्म कर दी जाती है। भारत की राजनीति का यह बड़ा सच है। चुकी राजनीति का कोई चरित्र नहीं होता इसलिए राजनीति करने वाले भी चरित्रहीन ही होते हैं। उनका पूरा जीवन पाखंड में ही चलता है। झूठ इतना बोलते हैं जिसकी कल्पना भी आप नहीं कर सकते। नेता हर आदमी को सलाम करता है और पीछे गाली भी देता है। नेता उसी की बात ज्यादा मानता है जो उसके काम के लायक हो और जो उसे लाभ पहुंचाए .लाभ का मतलब नकदी और वोट भी। नेताओं की यही दो कमजोरी है। जैसे ही ये सब बढ़ते हैं नेताओं की राजनीति चरम पर होती है। नकदी और वोट घाटे हैं तो नेताओं की नेतागिरी ख़त्म हो जाती है। यह राजनीति विचित्र है।

Read More: Hindi Samachar Lifestyle | Latest News
खेल देखिये। बीजेपी को घेरने के लिए जब नीतीश कुमार विपक्षी एकता की तैयारी कर रहे थे तब सबसे पहले उनकी मुलाकात सीपीएम नेता सीताराम येचुरी से ही हुई थी। येचुरी देश के सम्मानित नेता है। काफी पढ़े लिखे भी है और देश के मिजाज को जानते भी हैं। इसके साथ ही वे अपनी पार्टी के बड़े चेहरे हैं। एक समय था जब सीपीएम की भारतीय राजनीति में बड़ी पकड़ थी। बंगाल ,त्रिपुरा ,केरल और दक्षिण के कई राज्यों समेत उत्तरा भारत में भी उसकी काफी पैठ थी। कई सालों तक उसका राज भी चला। कई केंद्र की सरकार को बनाने और गिराने में उसकी भूमिका भी रही। कई बड़े नेता इस पार्टी ने देश को दिए हैं। लेकिन आज सीपीएम राजनीतिक रूप से काफी कमजोर हो चुकी है।
खेल देखिये। इंडिया गठबंधन की बात हुई। सब मिले भी। सबने कसम भी खाई। लेकिन अब सीपीएम को लेकर कई जगह से कई और पार्टी को परेशानी हो रही है। सीपीएम का गढ़ कभी बंगाल था। लेकिन आज बंगाल में ममता का राज है और विपक्ष में बीजेपी है। ममता वाम दलों के सभी लोगों को तोड़कर अपनी पार्टी में मिला चुकी है। ममता के सामने अभी किसी की कोई हस्ती नहीं नहीं। यह हस्ती कभी सीपीएम की हुआ करती थी। अब खेल यह है कि अपने सबसे मजबूत आधार वाले राज्य बंगाल से सीपीएम चुनाव लड़ने को तैयार है। वह चाहती है कि उसे भी कई सीटें मिले लेकिन ममता गठबंधन के तहत उसे कोई सीट देने को तैयार नहीं है। अगर सीपीएम को सीट नहीं मिलेगी तो उसकी राजनीति का क्या होगा? उसके नेता फिर क्या करेंगे उसके वोटर फिर किधर जायेंगे ? लेकिन ममता मान नहीं रही है। और सीपीएम अगर चुनाव अकेले लड़ती है तो फिर गठबंधन का क्या मतलब ? खेल अद्भुत है और निराला भी।

Also Read: Latest Hindi News Entertainment | Hindi ki Samachar
लेकिन खेल और भी है। केरल में भी उसकी लड़ाई कांग्रेस के साथ है। केरल में अभी लेफ्ट की ही सरकार है लेकिन वहाँ आमने सामने की लड़ाई कांग्रेस से ही है। केरल में वह सीट कांग्रेस को देना नहीं चाहती। या फिर कांग्रेस सीपीएम को देना नहीं छाती। खेल गड़बड़ हो गया है। अब आगे क्या होगा कहना मुश्किल है। कहा जा रहा है कि सीपीएम अपनी राजनीति को बचाने के लिए या तो अकेले भी चुनाव लड़ सकती है या फिर कोई नया मोर्चा भी तैयार कर सकती है। यह भी कह जा रह अहइ कि देश की जो आधा दर्जन पार्टियां किसी भी गठबंधन में नहीं है उसे मिलकर कोई तीसरा मोर्चा भी तैयार हो सकता है। अब देखना है कि अक्टूबर महीने में क्या कुछ होता है। लेकिन एक बात साफ़ है कि इंडिया गठबंधन के भीतर सब कुछ ५थिक नहीं। वजह है कि इस गठबंधन में जितने दल है सबके अपने वोट बैंक है जबकि एनडीए में अधिकतर दलों के पास कोई वोट बैंक ही नहीं नहीं है। वह लोकसभा चुनाव लड़ती भी नहीं है।

Akhilesh Akhil

Political Editor

Show More

Akhilesh Akhil

Political Editor

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button